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ICE: ईवी को लेकर असमंजस बढ़ा, दुनिया भर में कार खरीदार दोबारा पेट्रोल-डीजल वाहनों की ओर लौट रहे हैं
ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अमर शर्मा
Updated Tue, 09 Dec 2025 01:32 PM IST
सार
बदलती नीतियों और ईवी की अनिश्चितताओं की वजह से दुनिया भर में कार खरीदने वाले पेट्रोल और डीजल मॉडल की तरफ लौट रहे हैं। जिससे ग्लोबल ऑटोमोटिव डिमांड बदल रही है।
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Volkswagen Touareg
- फोटो : Volkswagen
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विस्तार
अर्न्स्ट एंड यंग (EY) की एक नई वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में कार खरीदार इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड मॉडलों से हटकर फिर से इंटरनल कम्बशन इंजन (ICE) (आईसीई) यानी पेट्रोल-डीजल वाहनों को प्राथमिकता देने लगे हैं। यह बदलाव ऐसे समय में हो रहा है जब कई देशों की सरकारें अपने जलवायु लक्ष्यों पर पुनर्विचार कर रही हैं। और उपभोक्ता ईवी की लागत, व्यवहारिकता और भविष्य की विश्वसनीयता को लेकर अनिश्चित महसूस कर रहे हैं।
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नीतिगत बदलावों ने खरीदारों की सोच बदली
पश्चिमी देशों में पिछले कुछ महीनों में कई नीतिगत पलटफेर हुए हैं, जिनका सीधा असर वाहन खरीदारी पर दिख रहा है। अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पूर्व प्रशासन द्वारा तय किए गए फ्यूल-इकोनॉमी मानकों को कम करने का प्रस्ताव दिया है। जिससे वाहन निर्माताओं पर अनुपालन का दबाव घटेगा और पेट्रोल गाड़ियों को अधिक किफायती विकल्प के रूप में देखा जा सकेगा।
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पश्चिमी देशों में पिछले कुछ महीनों में कई नीतिगत पलटफेर हुए हैं, जिनका सीधा असर वाहन खरीदारी पर दिख रहा है। अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पूर्व प्रशासन द्वारा तय किए गए फ्यूल-इकोनॉमी मानकों को कम करने का प्रस्ताव दिया है। जिससे वाहन निर्माताओं पर अनुपालन का दबाव घटेगा और पेट्रोल गाड़ियों को अधिक किफायती विकल्प के रूप में देखा जा सकेगा।
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2025 Mercedes-Benz GLS 4MATIC AMG Line
- फोटो : Mercedes-Benz
यूरोप भी अपने ईवी रोडमैप को दोबारा संतुलित कर रहा है। यूरोपीय संघ 2035 से नए पेट्रोल-डीजल वाहनों पर प्रस्तावित प्रतिबंध को नरम करने की तैयारी में है। बढ़ती लागत, संभावित रोजगार हानि और सप्लाई-चेन की चुनौतियों ने नीति-निर्माताओं को यह एहसास कराया है कि ईवी संक्रमण वैश्विक स्तर पर अनुमान से धीमी गति से हो रहा है।
EY (ईवाई) के ग्लोबल मोबिलिटी हेड कॉन्सटैन्टिन एम. गाल ने कहा कि ये नीतिगत बदलाव इस बात का संकेत हैं कि सरकारें अब वैज्ञानिक तथ्यों पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं और मान रही हैं कि ईवी परिवर्तन "धीरे-धीरे" ही संभव है। उन्होंने यह भी बताया कि चीन में ईवी बिक्री बढ़ने के बावजूद खरीदार अब वाहन के तकनीकी फीचर और कनेक्टिविटी को ज़्यादा महत्व दे रहे हैं, न कि केवल इंजन तकनीक को।
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EY (ईवाई) के ग्लोबल मोबिलिटी हेड कॉन्सटैन्टिन एम. गाल ने कहा कि ये नीतिगत बदलाव इस बात का संकेत हैं कि सरकारें अब वैज्ञानिक तथ्यों पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं और मान रही हैं कि ईवी परिवर्तन "धीरे-धीरे" ही संभव है। उन्होंने यह भी बताया कि चीन में ईवी बिक्री बढ़ने के बावजूद खरीदार अब वाहन के तकनीकी फीचर और कनेक्टिविटी को ज़्यादा महत्व दे रहे हैं, न कि केवल इंजन तकनीक को।
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ईवी को लेकर झिझक क्यों बढ़ रही है
चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, ऊंची कीमतें और वैश्विक राजनीति ये तीनों कारक ईवी अपनाने की गति को धीमा कर रहे हैं। कई देशों में चार्जिंग नेटवर्क पर्याप्त नहीं हैं, जिसके कारण उपभोक्ताओं को लंबी दूरी की यात्रा को लेकर संदेह रहता है। वहीं, ईवी मॉडलों की कीमतें अभी भी पारंपरिक कारों से अधिक हैं, और कई बाजारों में सरकारी सब्सिडी भी कम हो रही है।
इसके अलावा, पश्चिमी देशों और चीन के बीच बढ़ते तनाव ने चीनी ईवी पर लगे शुल्कों को बढ़ा दिया है। यह कदम घरेलू ऑटो कंपनियों की सुरक्षा के लिए उठाया गया है, लेकिन इससे भविष्य में ईवी की कीमत और उपलब्धता को लेकर और असमंजस पैदा हो गया है। दूसरी ओर, चीनी कंपनियां सस्ते पेट्रोल-डीजल वाहनों का निर्यात बढ़ा रही हैं, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्धा और तीव्र हो गई है।
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चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, ऊंची कीमतें और वैश्विक राजनीति ये तीनों कारक ईवी अपनाने की गति को धीमा कर रहे हैं। कई देशों में चार्जिंग नेटवर्क पर्याप्त नहीं हैं, जिसके कारण उपभोक्ताओं को लंबी दूरी की यात्रा को लेकर संदेह रहता है। वहीं, ईवी मॉडलों की कीमतें अभी भी पारंपरिक कारों से अधिक हैं, और कई बाजारों में सरकारी सब्सिडी भी कम हो रही है।
इसके अलावा, पश्चिमी देशों और चीन के बीच बढ़ते तनाव ने चीनी ईवी पर लगे शुल्कों को बढ़ा दिया है। यह कदम घरेलू ऑटो कंपनियों की सुरक्षा के लिए उठाया गया है, लेकिन इससे भविष्य में ईवी की कीमत और उपलब्धता को लेकर और असमंजस पैदा हो गया है। दूसरी ओर, चीनी कंपनियां सस्ते पेट्रोल-डीजल वाहनों का निर्यात बढ़ा रही हैं, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्धा और तीव्र हो गई है।
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Audi RSQ8 Performance
- फोटो : Audi India
इस बदलाव का महत्व क्या है
ईवी की जगह आईसीई वाहनों की ओर वापसी वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि सड़क परिवहन अभी भी उत्सर्जन के सबसे बड़े स्रोतों में शामिल है। जिन ऑटोमोबाइल कंपनियों ने ईवी विकास में भारी निवेश किया है, उन्हें अब अपनी रणनीतियों में संतुलन बनाना पड़ सकता है। पर्यावरण समूहों का कहना है कि ईवी संक्रमण में देरी का मतलब लंबे समय तक अधिक उत्सर्जन और जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में बड़ी चुनौतियां।
ऑटो कंपनियों के लिए इसका अर्थ यह है कि उन्हें अभी कुछ और वर्षों तक पेट्रोल-डीजल और इलेक्ट्रिक दोनों मॉडल समानांतर रूप से विकसित करने पड़ेंगे। जिससे लागत बढ़ेगी और भविष्य की योजना बनाना और मुश्किल हो जाएगा।
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ऑटो कंपनियों के लिए इसका अर्थ यह है कि उन्हें अभी कुछ और वर्षों तक पेट्रोल-डीजल और इलेक्ट्रिक दोनों मॉडल समानांतर रूप से विकसित करने पड़ेंगे। जिससे लागत बढ़ेगी और भविष्य की योजना बनाना और मुश्किल हो जाएगा।
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ईवाई अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
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- वैश्विक स्तर पर 50 प्रतिशत खरीदार चाहते हैं कि उनकी अगली कार, नई हो या पुरानी, आईसीई हो। यह 2024 की तुलना में 13 प्रतिशत अंक की बढ़त है।
- बैटरी-इलेक्ट्रिक वाहनों की पसंद घटकर 14 प्रतिशत रह गई है, जो साल-दर-साल 10 प्रतिशत अंक की गिरावट है।
- हाइब्रिड कारों में रुचि घटकर 16 प्रतिशत रह गई है।
- जो ग्राहक पहले ईवी खरीदने का विचार कर रहे थे, उनमें से 36 प्रतिशत अब भू-राजनीतिक अनिश्चितता के कारण निर्णय टाल रहे हैं।
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Ford Car
- फोटो : Ford
वैश्विक मोबिलिटी के लिए निर्णायक मोड़
यह रिपोर्ट दिखाती है कि दुनिया भर का ऑटो उद्योग बदलती नीतियों, आर्थिक दबावों और उपभोक्ता अपेक्षाओं के बीच एक जटिल संक्रमण काल से गुजर रहा है। भले ही लंबी अवधि में ईवी टिकाऊ परिवहन के लिए महत्वपूर्ण बने रहें। लेकिन फिलहाल स्थिति स्पष्ट तौर पर असमान और धीमी है। जहां कई खरीदार लागत, भरोसेमंद इंफ्रास्ट्रक्चर और राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए एक बार फिर पेट्रोल-डीजल वाहनों की ओर लौट रहे हैं।
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यह रिपोर्ट दिखाती है कि दुनिया भर का ऑटो उद्योग बदलती नीतियों, आर्थिक दबावों और उपभोक्ता अपेक्षाओं के बीच एक जटिल संक्रमण काल से गुजर रहा है। भले ही लंबी अवधि में ईवी टिकाऊ परिवहन के लिए महत्वपूर्ण बने रहें। लेकिन फिलहाल स्थिति स्पष्ट तौर पर असमान और धीमी है। जहां कई खरीदार लागत, भरोसेमंद इंफ्रास्ट्रक्चर और राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए एक बार फिर पेट्रोल-डीजल वाहनों की ओर लौट रहे हैं।
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