Bihar Election : औरंगाबाद की बदल सकती है तस्वीर, सभी सीटों पर हो सकते अप्रत्याशित परिणाम; जानिए जनता की बात
Bihar Election : बिहार के एक जिले में महागठबंधन का पूरी तरह से कब्ज़ा है, लेकिन दोनों गठबंधन जाति और वर्तमान हालात की वजह से अपेक्षा के विपरीत अप्रत्याशित परिणाम की भी आशंका कर रहे हैं। राजनीतिक जानकार कह रहे हैं कि दोनों ओर की तस्वीर बदल सकती है।
विस्तार
पहले और दूसरे चरण का मतदान संपन्न होने के बाद बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। राज्य में दो चरणों में मतदान संपन्न होने के बाद एग्जिट पोल ने एनडीए की सत्ता में वापसी की भविष्यवाणी की है, लेकिन औरंगाबाद जिले की छह विधानसभा सीटों पर हालात कुछ अलग नजर आ रहे हैं। यहां राजनीतिक समीकरण इतने उलझे हुए हैं कि हंगामा मचने की पूरी संभावना है। पारंपरिक गढ़ों में अप्रत्याशित उलटफेर, जातीय समीकरणों का बदलता खेल और स्थानीय मुद्दों का उबाल, यह सब मिलकर जिले को चुनावी नजरिए से हॉट स्पॉट बना रहे हैं। 2020 में यहां महागठबंधन ने सभी छः विधानसभा सीटो पर जीत हासिल की थीं, और एनडीए का सुपड़ा साफ हो गया था। लेकिन इस बार एग्जिट पोल्स के मुताबिक, एनडीए की लहर राज्य स्तर पर मजबूत है, फिर भी औरंगाबाद में करीबी मुकाबले और आश्चर्यजनक परिणाम की उम्मीद है। आइए, जिले की सभी छह सीटो-गोह, ओबरा, नबीनगर, कुटुम्बा(एससी), औरंगाबाद और रफीगंज का विस्तृत आकलन करते है।
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गोह विधानसभा सीट
बीजेपी की मजबूत पकड़, लेकिन राजद की चुनौती- गोह सीट पर 2020 में राजद के भीम कुमार ने जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार भाजपा ने मजबूत दांव खेलते हुए डॉ. रणविजय कुमार को उम्मीदवार बनाकर नया गेम खेला। यही वजह रही कि उम्मीदवारों में भाजपा के प्रत्याशी को स्थानीय समर्थन मिला माना जा रहा है, जबकि भीम कुमार का टिकट काट कर राजद प्रत्याशी बनाए गए अमरेंद्र कुमार मुस्लिम, यादव और कुशवाहा के मजबूत जातीय समीकरण वोटों पर ही निर्भर हैं। एग्जिट पोल और ग्राउंड रिपोर्ट्स के अनुसार, यहां भजापा और राजद दोनों में ही कांटे का मुकाबला है, लेकिन महिला मतदाताओं की रिकॉर्ड भागीदारी (करीब 69 प्रतिशत) अप्रत्याशित मोड़ ला सकती है। अगर युवा और ईबीसी वोटर एनडीए की ओर शिफ्ट हुए होंगे, तो भाजपा की जीत तय हो सकती है। लेकिन अगर राजद के यादव-मुस्लिम-कुशवाहा गठजोड़ ने मजबूती दिखाई, तो हंगामा मचना तय है। अनुमान के मुताबिक दोनों में से ही किसी की जीत होगी, लेकिन मार्जिन 5,000 तक या उससे कम हो सकता है।
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ओबरा विधानसभा सीट:
राजद का गढ़, एनडीए की सेंधमारी- ओबरा में 2020 में राजद के ऋषि यादव ने कब्जा जमाया था। इस बार भी वह उम्मीदवार हैं और राजद मजबूत तो लग रहा है, लेकिन एनडीए के पिछली बार से ज्यादा मजबूत गठबंधन के वजह से एलजेपीआर प्रत्याशी डॉ. प्रकाश चंद्रा का भी बड़ा उभार हुआ और उनके पक्ष में भी राजद प्रत्याशी के बराबर वोट आए माने जा रहे है। एग्जिट पोल में यहां महागठबंधन को बढ़त दिख रही है, लेकिन जन सुराज पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के भूमिहार जाति से आने वाले उम्मीदवार एनडीए के कोर वोटर अपने स्वजाति भूमिहार वोट काटने में बहुत ज्यादा सेंध लगाने में कामयाब नही हुए होंगे। वहीं बसपा प्रत्याशी संजय कुमार को अगर दलित वोट मिले होंगे, तो अप्रत्याशित परिणाम आ सकता है। इस स्थिति में शायद राजद की हार हो सकती है। ग्राउंड पर चर्चा है कि नीतीश कुमार की महिला कल्याण योजनाओं ने यहां असर दिखाया है। अनुमान: राजद आगे, लेकिन क्लोज फाइट में एनडीए आश्चर्यजनक परिणाम दे सकता है। जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार सुधीर शर्मा और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार संजय कुमार हैं।
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नबीनगर विधानसभा सीट:
जेडीयू की उम्मीद, लेकिन महागठबंधन भी कमतर नही- नबीनगर की सीट पर 2020 में राजद के विजय कुमार सिंह उर्फ डबल्यू सिंह विजयी रहे थे। इस बार राजद ने उनका टिकट काट कर नए समीकरण का दांव खेलते हुए अमोद चंद्रवंशी को उम्मीदवार बनाया है। वहीं जदयू ने पिछली बार के प्रत्याशी पूर्व विधायक वीरेंद्र कुमार सिंह का टिकट काट कर बिहार के बड़े राजपूत नेता आनंद मोहन और शिवहर की सांसद लवली आनंद के बेटे चेतन आनंद को बतौर मजबूत प्रत्याशी मैदान में उतारा। वोटिंग के दिन भी यहां राजपूतों और एनडीए के समर्थक जातियों में चेतन आनंद की लहर साफ नजर आई, लेकिन राजद प्रत्याशी को भी कमतर नही आंका जा रहा क्योकि नए दांव के मजबूत समीकरण की वजह से उनके खाते में भी अच्छे वोट आए माने जा रहे है। इस वजह से यहां मुकाबला दिलचस्प हो गया है। इसकी वजह यह भी है कि यादव जाति से आने वाली जन सुराज की प्रत्याशी अर्चना चन्द्र और इसी जाति से आने वाले निर्दलीय मृत्युंजय कुमार ने भी इस यादव जाति के वोटों में जो सेंधमारी की होगी उसका फायदा फिर चेतन आनंद कोही मिलता लग रहा है। हालांकि एग्जिट पोल्स एनडीए को 140-155 सीटें दे रहे हैं, जिसमें नबीनगर की सीट भी शामिल हैं। लेकिन स्थानीय स्तर पर अगर चंद्रवंशी, मुस्लिम और यादव वोट एकजुट रहे, तो अप्रत्याशित उलटफेर हो सकता है। महिला मतदाताओं की उच्च भागीदारी (67 प्रतिशत से अधिक) नीतीश कुमार के पक्ष में जा सकती है। अनुमानत: जदयू की जीत प्रबल दिख रही है, लेकिन 10 प्रतिशत स्विंग से महागठबंधन के भी जीतने की उम्मीद की जा रही है।
कुटुम्बा (एससी)
विधानसभा सीट: कांग्रेस की चुनौती, एनडीए का दबदबा- अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कुटुम्बा विधानसभा सीट से जहां 2015 से कांग्रेस के राजेश कुमार चुनाव जीत रहे हैं, जो फिलहाल बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं। इस बार भी वह महागठबंधन समर्थित दमदार प्रत्याशी हैं, जो समीकरणों के लिहाज से भी बेहद मजबूत हैं, लेकिन एनडीए की ओर से हम पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे पूर्व विधायक ललन राम जमीनी नेता है, जिनकी दलित वोटों पर पकड़ मजबूत है। एग्जिट पोल में महागठबंधन को यहां बढ़त मिलती दिख रही है, लेकिन यहां वोटो का बिखराव भी हुआ है। अगर एससी वोटरों में विभाजन हुआ, तो अप्रत्याशित रिजल्ट यानी ललन राम का उभार हो सकता है। अनुमानत: यहां कांग्रेस आगे है, लेकिन एनडीए की सेंध से तस्वीर बदल सकती है।
औरंगाबाद विधानसभा सीट:
भाजपा के मजबूत पुराने किले पर दो बार से कांग्रेस का दबदबा, इस बार मजबूत चुनौती - औरंगाबाद की सीट 10 साल पहले तक एनडीए की गढ़ थी। लेकिन 2015-2020 में कांग्रेस के आनंद शंकर सिंह ने कब्ज़ा कर लिया। इस बार भी कांग्रेस के आनंद शंकर सिंह मैदान में हैं, और महागठबंधन के जातीय समीकरणों और अपनी स्वजाति राजपूत पर दांव लगाया है। वहीं एनडीए की ओर से बतौर भाजपा प्रत्याशी त्रिविक्रम नारायण सिंह ने यहां चुनाव में हर तरह से साधा है। एग्जिट पोल यहां एनडीए को बढ़त दे रहे हैं, लेकिन स्थानीय रिपोर्ट्स में क्लोज कॉन्टेस्ट की बात है। अगर ऊपरी जाति और युवा वोट भाजपा के साथ रहे, तो जीत तय; वरना अप्रत्याशित हार भी हो सकती है। मतदान 11 नवंबर को हुआ है, और रिजल्ट्स 14 नवंबर को आने वाले हैं। अनुमान: भाजपा की जीत, लेकिन मार्जिन कम होने से आश्चर्यजनक परिणाम मिल सकते हैं।
रफीगंज विधानसभा सीट:
आरजेडी की पकड़, एनडीए की कोशिश-रफीगंज में 2020 में राजद के मोहम्मद नेहालुद्दीन ने कब्जा जमाया। इस बार नेहालुद्दीन का टिकट कटा और डॉ. गुलाम शाहिद राजद के उम्मीदवार बने, जबकि एनडीए की ओर से जदयू ने भी अपने पूर्व के प्रत्याशी पूर्व विधायक अशोक कुमार सिंह का टिकट काटा और एलजेपीआर से लाकर प्रमोद कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया। बदले में पुइर्व विधायक रहे अशोक सिंह ने जदयू के औरंगाबाद जिला अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दे डाला। हालांकि इस्तीफा देने के बाद भी वह खुले तौर पर तो बागी नहीं हुए, लेकिन चुनाव मैदान में भी जदयू उम्मीदवार के पक्ष में क्षेत्र में उनकी सक्रियता नजर नहीं आई जो अलग तरह का सन्देश दे रहा है। इस बार भी समीकरणों के लिहाज से महागठबंधन मजबूत है, लेकिन एनडीए उम्मीदवार ने अपने व्यक्तिगत प्रभाव से मुस्लिम-यादव गठजोड़ में सेंध लगाने की कोशिश की है। एग्जिट पोल में महागठबंधन को बढ़त दिखाया जा रहा है, लेकिन अप्रत्याशित परिणाम के रूप में शायद एनडीए की जीत हो सकती है। वजह उच्च मतदान प्रतिशत (68.94 प्रतिशत) यहां बदलाव ला सकता है। अनुमानत: राजद भले आगे लग रहा है, लेकिन क्लोज फाइट है और परिणाम भी अप्रत्याशित हो सकते हैं।
अस्वीकरण-यह रिपोर्ट वोटरो के रुझान, दलों के कार्यकर्ताओं से बातचीत और एग्जिट पोल में दिखाए जा रहे आंकड़ो पर आधारित है। ये अनुमान गलत भी साबित हो सकते है। वास्तविक परिणाम 14 नवम्बर को होनेवाले मतगणना से ही सामने आएंगे।
इनपुट : गणेश प्रसाद, संवाददाता, औरंगाबाद