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ECI Bihar Election: महागठबंधन ने बिहार चुनाव में हार के लिए पांच गलतियां कीं; एनडीए से लड़ाई में उतरा ही नहीं

सार

Bihar Election Result : बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की प्रचंड जीत देख ईवीएम में गड़बड़ी और वोट चोरी की बात आने लगी है। हार घोषित होने पर समीक्षा की बात भी आएगी। हम ग्राउंड जीरो की बात कर रहे कि आखिर यह हार हुई क्यों?

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mgb fighting with election commission of india not with jdu party bjp in bihar election 2025
राहुल गांधी ने वोटर अधिकार यात्रा शुरू की तो अंत में तेजस्वी को किनारे लगाने की कोशिश भी दिखी। - फोटो : अमर उजाला डिजिटल
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जीत के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने क्या-क्या किया, यह दोनों पक्ष बता रहे हैं। एनडीए इस प्रचंड जीत के लिए विकास और सेवा को क्रेडिट दे रहा है। दूसरी तरफ, महागठबंधन के नेता बार-बार कह रहे कि सरकार ने महिलाओं को 10 हजार घूस देकर यह वोट लिया। लेकिन, यह जानना भी रोचक है कि बिहार चुनाव में हारने के लिए महागठबंधन ने क्या-क्या किया? फरवरी से शुरुआत हुई और नवंबर तक अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारते रहे महागठबंधन के दल। सबसे बड़ी बात, एनडीए से तो लड़ाई तो कभी दिखाई ही नहीं। कैसे, यह समझें।
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पहली गलती : राहुल गांधी ने फरवरी से पकड़ी अलग राह

बड़े राजनीतिक दल व्यापक पैमाने पर समीक्षा करते हैं। करने की बात आएगी ही रात तक। वैसे, इस हार के लिए तैयारी फरवरी में राहुल गांधी ने शुरू कर दी थी। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बिहार चुनाव की तैयारी फरवरी में शुरू की थी। बिहार आना शुरू किया। महागठबंधन के अंदर रहेंगे, यह कभी लगने ही नहीं दिया। लगा जैसे कि राष्ट्रीय जनता दल के कोर वोटरों को निशाना बनाने के लिए संगठन में फेरबदल कर रहे हैं। प्रदेश प्रभारी अल्लावरु को लाया गया। प्रदेश अध्यक्ष की कमान राजेश राम को दे दी गई।

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दूसरी गलती : महागठबंधन की जगह I.N.D.I.A. की तैयारी
देश स्तर पर विपक्षी दलों के गठबंधन की शुरुआत 2023 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने की थी। यह गठबंधन बन भी गया, लेकिन सीएम नीतीश कुमार ने जनादेश 2020 की वापसी कराते हुए जनवरी 2024 में एनडीए सरकार बनाकर उन बातों को भुला दिया। यह गठबंधन- I.N.D.I.A. दिल्ली तक में फेल हुआ, लेकिन राहुल गांधी यहां राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन की जगह उसे लाने की कोशिश में कूद गए। इसके लिए नए दलों को लाना था, जो कांग्रेस को नेतृत्व के लिए आगे बढ़ाते। लोकसभा चुनाव में राजद और तेजस्वी यादव ने महागठबंधन की कमान संभाली थी, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव के लिए राहुल गांधी की तैयारी ही दूसरी थी। 

तीसरी गलती : चुनाव आयोग से लड़ाई, उसी पर समय भी दिया
जब भी चुनाव होता है, कुछ जीवित मतदाताओं के नाम गायब होने की खबर आती है और कुछ मृत का नाम वोटर लिस्ट में रहता ही है। लेकिन, बिहार में जब इन स्थितियों को सुधारने के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने मतदाताओं का विशेष गहन पुनरीक्षण कराना शुरू किया तो महागठबंधन के निशाने पर चुनाव आयोग आ गया। राहुल गांधी ने इस मुद्दे को बिहार में I.N.D.I.A. की एंट्री का रास्ता बनाने की कोशिश की। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने करीब डेढ़ महीने चुनाव आयोग से इस बात की लड़ाई में गुजार दिए। यह भी नहीं देखा कि आम जनता इसे कैसे देख रही है। प्रियंका गांधी ने जिसे वोटर लिस्ट में 'भूत' बताया, वह जिंदा मिली। जिसे राहुल गांधी ने वोटर लिस्ट से गायब बताया, वह भी मतदाता सूची में निकल आया। यह कुछ केस ही सामने आए। लेकिन, इसके लिए डेढ़ महीने का समय चुनाव आयोग को निशाना बनाने में लगाना महागठबंधन के नेताओं को भी नहीं पच रहा था। बस, आवाज नहीं उठ रही थी क्योंकि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने कमान संभाल रखी थी। 

चौथी गलती : चुनाव की घोषणा हो गई, लेकिन सीटें नहीं बांट सके
लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव अपनी पाटी- राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं को बगैर कांग्रेस से सीट बंटवारा हुए ही सिम्बल बांटा था। राहुल गांधी ने फरवरी में सक्रियता दिखाते हुए बताया कि इस बार ऐसा नहीं होगा। कांग्रेस 243 में 75 से ज्यादा सीटें लेने की जिद पर अड़ी रही। इस कारण महागठबंधन में कई दलों को प्रवेश भी नहीं मिला। पशुपति पारस, हेमंत सोरेन से लेकर असददुद्दीन ओवैसी तक की पार्टी कतार में रही, लेकिन महागठबंधन में पहले से रहे दलों में ही सीट बंटवारा नहीं हुआ। सीटों पर बंटवारा नहीं हुआ तो अंतत: राजद और फिर कांग्रेस ने भी एलान बगैर ही प्रत्याशियों को सिम्बल देना शुरू कर दिया। अराजकता की स्थिति यह रही कि नामांकन के बाद भी सूची का एलान किया गया।

पांचवीं गलती : सीएम का चेहरा घोषित करने की जिद और मनमानी
महागठबंधन में राजद लगातार तेजस्वी यादव को सीएम का चेहरा बताता रहा, जबकि कांग्रेस ने मतदान से कुछ दिन पहले आकर इसे स्वीकार किया। डिप्टी सीएम के रूप में मुकेश सहनी का चेहरा घोषित करने की भी जिद ऐसी ही रही। इसी कारण यह मांग उठने लगी कि मुसलमान सिर्फ राजद-कांग्रेस को वोट देंगे और कुर्सी उन्हें नहीं मिलेगी! यह आवाज महागठबंधन ने दबा दी। अगर घोटाले में आरोपित होने और एनडीए की ओर से जंगलराज का मुद्दा उठाए जाने के कारण कांग्रेस तेजस्वी यादव के चेहरे पर मुहर नहीं लगाना चाहती थी तो इसपर बात कर बीच का रास्ता निकाला जा सकता था। लेकिन, सभी अपनी-अपनी जिद पर रहे। यहां तक कि घोषणापत्र भी कई बार आए। ज्यादातर बार तेजस्वी अकेले लेकर आए और एक बार कांग्रेस के साथ।

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