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Rice Export: भारी टैरिफ से अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए भारतीय चावल महंगा, देश के निर्यात तलाश रहे नया बाजार

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: रिया दुबे Updated Tue, 09 Dec 2025 01:41 PM IST
सार

भारतीय चावल निर्यात महासंघ (IREF) ने कहा है कि अमेरिका द्वारा भारतीय चावल पर शुल्क बढ़ाने से भारतीय किसानों को बड़ा नुकसान नहीं होगा, बल्कि इसका भार अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। फेडरेशन के अनुसार भारतीय चावल की वैश्विक मांग मजबूत है और भारत नए बाजारों में निर्यात बढ़ाने पर काम कर रहा है।

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Heavy tariffs make Indian rice expensive for US consumers, prompting the country's exporters to seek new marke
चावल (सांकेतिक तस्वीर) - फोटो : Adobe stock
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विस्तार
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भारतीय चावल पर उच्च टैरिफ से अमेरिकी उपभोक्ताओं पर बोझ पड़ेगा। भारतीय चावल निर्यात महासंघ (आईआरईएफ) ने यह चिंता जताई। इसमें कहा गया है कि भारत अन्य देशों के साथ व्यापार साझेदारी को गहरा करना जारी रखेगा व भारतीय चावल के लिए नए बाजारों का विस्तार करेगा। 

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भारतीय किसानों पर टैरिफ का असर सीमित 

IREF ने कहा कि भारतीय चावल निर्यात मजबूत है और अमेरिका सहित दुनिया के कई बाजारों में इसकी मांग बनी हुई है। फेडरेशन का कहना है कि अमेरिकी उपभोक्ता पहले ही बढ़ी हुई कीमतों का बोझ उठा रहे हैं, जबकि भारतीय किसानों और निर्यातकों पर इसका सीमित असर पड़ता है।

भारत नए बाजार खोलने पर काम कर रहा है

फेडरेशन के उपाध्यक्ष देव गर्ग ने कहा कि भारतीय चावल निर्यात उद्योग मजबूत और प्रतिस्पर्धी है। अमेरिका एक महत्वपूर्ण बाजार है, लेकिन हमारे निर्यात विश्व स्तर पर विविधीकृत हैं। सरकार के साथ मिलकर हम मौजूदा बाजारों को मजबूत करने और नए बाजार खोलने पर काम कर रहे हैं।

अमेरिका में कीमतों का बोझ उपभोक्ताओं पर

IREF का कहना है कि भारतीय चावल पर पहले से लगे 10% शुल्क को बढ़ाकर 50% कर दिया गया, जिसके बाद 40 प्रतिशत की अतिरिक्त बढ़ोतरी हुई। इसके बावजूद निर्यात में बड़ी गिरावट नहीं हुई क्योंकि मूल्य वृद्धि का बड़ा हिस्सा अमेरिकी खुदरा कीमतों पर डाल दिया गया।

फेडरेशन के मुताबिक, अमेरिका में भारतीय बासमती मुख्य रूप से खाड़ी और दक्षिण एशियाई समुदायों द्वारा खरीदा जाता है। बिरयानी जैसी डिश में बासमती की जगह अन्य चावल विकल्प नहीं हो सकते। IREF के अनुसार अमेरिकी चावल सुगंध, स्वाद और लंबाई के मामले में भारतीय बासमती का विकल्प नहीं है।

जीटीआरआई ने कहा कि ट्रंप ने अमेरिकी किसानों पर साधने की कोशिश की

थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने कहा कि ट्रंप का कदम व्यापार नीति से अधिक घरेलू राजनीति का हिस्सा लगता है और अमेरिकी किसानों को साधने की कोशिश है। 

थिंक टैंक का कहना है कि अगर शुल्क बढ़ता भी है, तो भारत को बड़ा नुकसान नहीं होगा क्योंकि भारतीय चावल की वैश्विक मांग मजबूत है, जबकि बढ़ी हुई कीमतों का असर अमेरिकी परिवारों पर अधिक पड़ेगा।

भारत से निर्यात: आंकड़े बताते हैं मजबूती

आईआरईएफ के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024-2025 में अमेरिका भारत का चौथा सबसे बड़ा बाजार रहा, जहां भारत ने बासमती चावल के 337.10 मिलियन डॉलर (2.74 लाख टन) का निर्यात किया। वहीं गैर-बासमती चावल के 54.64 मिलियन डॉलर (61,341.54 टन) का निर्यात हुआ, जिसमें अमेरिका 24वां सबसे बड़ा बाजार रहा।


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