{"_id":"69167123d2dc12453c061f77","slug":"india-stands-out-in-global-slowdown-india-s-strong-growth-despite-tariff-and-investment-challenges-2025-11-14","type":"story","status":"publish","title_hn":"India GDP Growth: वैश्विक सुस्ती के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज, टैरिफ और धीमा निजी निवेश बनी चुनौती","category":{"title":"Business Diary","title_hn":"बिज़नेस डायरी","slug":"business-diary"}}
India GDP Growth: वैश्विक सुस्ती के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज, टैरिफ और धीमा निजी निवेश बनी चुनौती
अमर उजाला नेटवर्क, लंदन/ वाशिंगटन
Published by: शिवम गर्ग
Updated Fri, 14 Nov 2025 05:46 AM IST
विज्ञापन
जीडीपी
- फोटो : एएनआई
विज्ञापन
वैश्विक जीडीपी में सुस्ती के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था ने बीती तिमाही भी अच्छी रफ्तार दिखाई है। फाइनेंशियल टाइम्स और ब्लूमबर्ग के ताजा विश्लेषण में कहा गया है कि भारत की वृद्धि चीन, यूरोप और अमेरिका से बेहतर है। सेवा और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र ने प्रदर्शन सुधारा है, मगर उच्च अमेरिकी टैरिफ एवं निजी निवेश की कमी आगे चुनौती मानी जा रही है।
फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार, भारत की जीडीपी वृद्धि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग ही रफ्तार दिखाती है, जिसे विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। दोनों ने अपनी रिपोर्टों में कहा, आईटी-सर्विसेज, बैंकिंग-फाइनेंस, ई-कॉमर्स, और लॉजिस्टिक्स सेक्टर की वृद्धि दोहरे अंक में रही, जिससे सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी दर्ज हुई। मैन्युफैक्चरिंग में इलेक्ट्रॉनिक्स, इंजीनियरिंग सामान, रसायन व मशीनरी उत्पादन में ठोस सुधार देखने को मिला। इससे घरेलू मांग के साथ निर्यात ऑर्डरों में अपेक्षाकृत स्थिरता बताई गई। इस बीच, वैश्विक तुलना में चीन अब भी रियल एस्टेट संकट और घटते निवेश के दबाव में है। यूरोप ऊर्जा कीमतों और कमजोर औद्योगिक मांग से उबर नहीं पा रहा, जबकि अमेरिका में उपभोक्ता खर्च मजबूत जरूर है लेकिन फेड की ऊंची ब्याज दरों ने निवेश चक्र को सीमित कर दिया है। ऐसे माहौल में भारत को अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ स्टेबल परफॉर्मर और ग्लोबल ब्राइट स्पॉट बता रहे हैं। यानी दुनिया की असमान रिकवरी के बीच भारत ने अपनी पकड़ बनाए रखी है।
उभरते देशों में भारत की सबसे आक्रामक प्रतिक्रिया
फाइनेंशियल टाइम्स ने लिखा, टैरिफ के बाद भारत ने निर्यातकों को राहत देने के लिए जिस पैमाने पर तैयारी की है, वह उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे आक्रामक प्रतिक्रिया मानी जा रही है। भारत ने प्रमुख प्रभावित क्षेत्रों को राहत देने के लिए 45,000 करोड़ की विस्तृत योजना तैयार की है, जिसमें से 25,060 करोड़ रुपये का निर्यात समर्थन मिशन और 20,000 करोड़ रुपये की क्रेडिट गारंटी पहल शामिल है।
जीडीपी वृद्धि की आगे की राह में तीन बड़ी चुनौतियां
Trending Videos
फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार, भारत की जीडीपी वृद्धि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग ही रफ्तार दिखाती है, जिसे विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। दोनों ने अपनी रिपोर्टों में कहा, आईटी-सर्विसेज, बैंकिंग-फाइनेंस, ई-कॉमर्स, और लॉजिस्टिक्स सेक्टर की वृद्धि दोहरे अंक में रही, जिससे सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी दर्ज हुई। मैन्युफैक्चरिंग में इलेक्ट्रॉनिक्स, इंजीनियरिंग सामान, रसायन व मशीनरी उत्पादन में ठोस सुधार देखने को मिला। इससे घरेलू मांग के साथ निर्यात ऑर्डरों में अपेक्षाकृत स्थिरता बताई गई। इस बीच, वैश्विक तुलना में चीन अब भी रियल एस्टेट संकट और घटते निवेश के दबाव में है। यूरोप ऊर्जा कीमतों और कमजोर औद्योगिक मांग से उबर नहीं पा रहा, जबकि अमेरिका में उपभोक्ता खर्च मजबूत जरूर है लेकिन फेड की ऊंची ब्याज दरों ने निवेश चक्र को सीमित कर दिया है। ऐसे माहौल में भारत को अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ स्टेबल परफॉर्मर और ग्लोबल ब्राइट स्पॉट बता रहे हैं। यानी दुनिया की असमान रिकवरी के बीच भारत ने अपनी पकड़ बनाए रखी है।
विज्ञापन
विज्ञापन
उभरते देशों में भारत की सबसे आक्रामक प्रतिक्रिया
फाइनेंशियल टाइम्स ने लिखा, टैरिफ के बाद भारत ने निर्यातकों को राहत देने के लिए जिस पैमाने पर तैयारी की है, वह उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे आक्रामक प्रतिक्रिया मानी जा रही है। भारत ने प्रमुख प्रभावित क्षेत्रों को राहत देने के लिए 45,000 करोड़ की विस्तृत योजना तैयार की है, जिसमें से 25,060 करोड़ रुपये का निर्यात समर्थन मिशन और 20,000 करोड़ रुपये की क्रेडिट गारंटी पहल शामिल है।
जीडीपी वृद्धि की आगे की राह में तीन बड़ी चुनौतियां
- निजी निवेश की सुस्ती: अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों ने कहा कि भारत की वृद्धि स्थिर है, लेकिन निजी निवेश अब भी संतोषजनक गति नहीं पकड़ पाया है। कई घरेलू कंपनियां वैश्विक अनिश्चितता के कारण वेट-एंड-सी रणनीति पर कायम हैं। बड़ी परियोजनाओं की स्वीकृति दर और पूंजीगत खर्च में अभी वह तेजी नहीं दिखी है, जिसकी उम्मीद महामारी बाद सुधार के दौर में की जा रही थी।
- रुपये पर नजर और फेड रिजर्व का असर: डॉलर की मजबूती, बढ़ता आयात बिल और फेड के ब्याज दरें ऊंचे स्तर पर बनाए रखने के संकेतों ने रुपये पर दबाव बढ़ाया है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। विशेषज्ञों के अनुसार, फेड की नीति लंबे समय तक सख्त रहती है, तो उभरते देशों पर पूंजी निकासी का खतरा बढ़ेगा।
- अमेरिकी टैरिफ का दोहरा प्रभाव: अमेरिकी टैरिफ भारत के कुछ निर्यात क्षेत्रों इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स और कपड़ा पर लागत दबाव बढ़ा सकती है। लेकिन, यह बड़ा अवसर भी खोल सकती है, क्योंकि अमेरिकी कंपनियां सप्लाई-चेन को चीन से हटाकर भारत जैसे देशों में लाना चाहती हैं।