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Report: एनएसई की 52% कंपनियों में 10% से भी कम महिला कर्मचारी, दावा- वर्कफोर्स में भागीदारी की धीमी है रफ्तार

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कुमार विवेक Updated Tue, 02 Dec 2025 07:01 PM IST
सार

Report: गैर-लाभकारी संस्था 'उदैती' की आरे से जारी 'क्लोज द जेंडर गैप (CGG) डैशबोर्ड 2024-25' के अनुसार, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज  में लिस्टेड 52 प्रतिशत कंपनियों में महिला कर्मचारियों की संख्या कुल वर्कफोर्स का 10 प्रतिशत से भी कम है। यह रिपोर्ट 1,386 कंपनियों के 'बिजनेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्ट्स' और वार्षिक रिपोर्ट के आंकड़ों पर आधारित है। रिपोर्ट में क्या-क्या दावे किए गए हैं यहां जानिए।

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Women in the Workforce: Over 52% of NSE-Listed Companies Have Less Than 10% Female Employees
वर्किंग महिलाएं - फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
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कार्यस्थलों पर लैंगिक समानता की तमाम चर्चाओं के बीच, एक नई रिपोर्ट ने कॉरपोरेट जगत की जमीनी हकीकत का खुलासा किया है। गैर-लाभकारी संस्था 'उदैती' की आरे से जारी 'क्लोज द जेंडर गैप (CGG) डैशबोर्ड 2024-25' के अनुसार, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज  में लिस्टेड 52 प्रतिशत कंपनियों में महिला कर्मचारियों की संख्या कुल वर्कफोर्स का 10 प्रतिशत से भी कम है। यह रिपोर्ट 1,386 कंपनियों के 'बिजनेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्ट्स' और वार्षिक रिपोर्ट के आंकड़ों पर आधारित है। रिपोर्ट में बताया गया है कि लगातार दूसरे साल, कुल वर्कफोर्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 18 प्रतिशत पर स्थिर बना हुआ है।

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देश की कुल वर्कफोर्स में धीमी वृद्धि के बारे रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक साल में इसमें महज 6% की बढ़ोतरी हुई, जबकि महिलाओं के रोजगार में केवल 7% का ही इजाफा हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक, यह रफ्तार इतनी धीमी है कि इससे राष्ट्रीय आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करना मुश्किल है।

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हॉस्पिटल्स और लैब्स जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी

रिपोर्ट के अनुसार, हॉस्पिटल्स और लैब्स जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी 45% से बढ़कर 48% हो गई है। वहीं, कंज्यूमर सर्विसेज में यह आंकड़ा 30% से बढ़कर 34% हुआ है। दूसरी ओर, आईटी (34%) और बैंकिंग (26%) जैसे बड़े सेक्टर, जिन्हें महिलाओं के लिए बेहतर माना जाता है, वहां पिछले साल के मुकाबले महिला कार्यबल में कोई सुधार नहीं देखा गया है।


रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2024 से 2025 के बीच जेंडर पे-गैप (वेतन का अंतर) 6.7% से घटकर 3.3% रह गया है, जो थोड़ी राहत की बात है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि फार्मा सेक्टर (8%) और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स (7%) में 'रिवर्स पे-गैप' देखने को मिला है, यानी इन क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों की तुलना में औसतन ज्यादा कमा रही हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि टेक्स्टाइल्स (30.4%), डायवर्सिफाइड सेक्टर्स (28.5%) और मेटल्स एंड माइनिंग (17%) में वेतन का अंतर अब भी काफी अधिक है। रिपोर्ट में कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा पर भी टिप्पणी की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में कंपनियों में जागरुकता बढ़ी है। यौन उत्पीड़न (POSH) की शिकायतों में 16% की बढ़ोतरी हुई है, जो दर्शाता है कि महिलाएं अब निडर होकर शिकायत दर्ज करा रही हैं। हालांकि, चिंताजनक बात यह है कि लंबित मामलों (Pending cases) में भी 28% की वृद्धि हुई है, जो यह बताता है कि शिकायतों के निपटारे का सिस्टम अब भी धीमा है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

उदैती की संस्थापक सीईओ पूजा शर्मा गोयल का कहना है, " महिला कार्यबल के मामले में पिछले पांच वर्षों में प्रगति तो हुई है, लेकिन बदलाव की गति भारत के वर्कफोर्स के विकास से मेल नहीं खा रही है। पारदर्शिता की कमी एक बड़ी चुनौती है क्योंकि लगभग आधी कंपनियां ही जेंडर-आधारित डेटा रिपोर्ट करती हैं।" उन्होंने जोर देकर कहा कि 2047 तक 'विकसित भारत' के लक्ष्य को पाने के लिए कंपनियों और सरकार को महिलाओं की सुरक्षा, समान अवसर और वर्कप्लेस डिजाइन पर मिलकर काम करना होगा।

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