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रिश्वतखोरी मामला: PU के पूर्व एग्जीक्यूटिव इंजीनियर व सब डिवीजनल इंजीनियर 12 साल बाद दोषी करार

संवाद न्यूज एजेंसी, चंडीगढ़ Published by: ajay kumar Updated Wed, 17 Aug 2022 03:27 PM IST
सार

सीबीआई ने पीयू में तैनात तत्कालीन एग्जीक्यूटिव इंजीनियर सतीश पदम और सब डिवीजनल ऑफिसर नंदलाल कौशल के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 120 बी, 7, 13 (2), 13(1) (डी) के तहत मामला दर्ज किया था।

PU X Executive Engineer and Sub Divisional Engineer convicted after 12 years
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : istock

विस्तार

सीबीआई की विशेष अदालत ने पंजाब यूनिवर्सिटी के पूर्व एग्जीक्यूटिव इंजीनियर सतीश पदम और सब डिवीजनल इंजीनियर नंदलाल कौशल को 35 हजार रुपये की रिश्वतखोरी के मामले में दोषी करार दिया। दोनों ने वर्ष 2010 में बिल पास करने के लिए एक निजी ठेकेदार से रिश्वत ली थी। 150 से अधिक सुनवाई के बाद अदालत ने दोनों को दोषी करार देते हुए जेल भेज दिया। सजा का फैसला 20 अगस्त को आ सकता है।



सीबीआई ने यह मामला 2010 में निजी ठेकेदार प्रदीप कुमार की शिकायत पर दर्ज किया था। मामले के अनुसार, दोषी सतीश पदम ने निजी ठेकेदार प्रदीप कुमार से पीयू में किए गए सिविल काम के बिल को पास कराने के एवज में 35 हजार रुपये की रिश्वत मांगी थी। इस पूरे लेनदेन में दोषी नंदलाल कौशल ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी। 


ठेकेदार प्रदीप कुमार को कुल 16 लाख रुपये का भुगतान किया जाना था। जब बिल पास कराने के लिए रिश्वत मांगी गई तो प्रदीप ने इसकी शिकायत सीबीआई को दे दी। सीबीआई ने जाल बिछाकर दोषी सतीश पदम को रिश्वत की रकम लेते रंगेहाथ गिरफ्तार कर लिया था। सीबीआई ने पीयू में तैनात तत्कालीन एग्जीक्यूटिव इंजीनियर सतीश पदम और सब डिवीजनल ऑफिसर नंदलाल कौशल के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 120 बी, 7, 13 (2), 13(1) (डी) के तहत मामला दर्ज किया था।

वर्ष 2018 में हाईकोर्ट से मिला था स्टे 
वर्ष 2010 में इस मामले में हुई गिरफ्तारी के दो साल बाद 02 जनवरी 2012 को अदालत में चालान पेश हुआ था। ट्रायल शुरू होने के बाद सतीश पदम जुलाई 2018 में हाईकोर्ट पहुंच गया, जहां से इस मामले में स्टे मिल गया था। स्टे मिलने के कुछ महीने पहले मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि किसी भी मामले पर छह माह से अधिक स्टे नहीं लिया जा सकेगा। इसके आधार पर सीबीआई ने अदालत में आवेदन देकर मामले की सुनवाई फिर से कराने की मांग की थी। लगभग चार साल तक इस मामले में स्टे रहने के बाद दो महीने पहले मामले की सुनवाई फिर शुरू हुई। हाईकोर्ट के आदेश पर इस मामले की सुनवाई तेजी से की गई ,लिहाजा दो महीने में ही मामले का फैसला हो गया।

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