बिहार चुनाव परिणाम 2025: न रोजगार, न विकास, शराबबंदी ने पहनाया एनडीए और नीतीश के सिर जीत का सेहरा
शराबबंदी का फैसला सामाजिक रूप से साहसिक तो है, लेकिन राजस्व की दृष्टि से जोखिम भरा है। राज्य सरकार को इससे हर साल 5,000-6,000 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होता है। शराबबंदी की घोषणा के समय स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि यह नीति मैं महिलाओं के आग्रह पर ला रहा हूं। मैं जानता हूं कि इससे हमें राजस्व की हानि होगी, लेकिन यह समाज की बेहतरी के लिए है। इस बयान ने नीतीश कुमार को महिला समर्थक नेता के रूप में स्थापित किया। शराबबंदी ने इस बार भी महिला मतदाताओं के बीच एनडीए को अद्भुत समर्थन दिलाया।
शराबबंदी का फैसला सामाजिक रूप से साहसिक तो है, लेकिन राजस्व की दृष्टि से जोखिम भरा है। राज्य सरकार को इससे हर साल 5,000-6,000 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होता है। शराबबंदी की घोषणा के समय स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि यह नीति मैं महिलाओं के आग्रह पर ला रहा हूं। मैं जानता हूं कि इससे हमें राजस्व की हानि होगी, लेकिन यह समाज की बेहतरी के लिए है। इस बयान ने नीतीश कुमार को महिला समर्थक नेता के रूप में स्थापित किया। शराबबंदी ने इस बार भी महिला मतदाताओं के बीच एनडीए को अद्भुत समर्थन दिलाया।
विस्तार
पिछले दिनों बिहार से लौटे भाजपा के एक नेता से जब मैंने चुनाव का हाल पूछा तो उनका स्पष्ट कहना था कि वहां सबसे बड़ा मुद्दा न रोजगार है, न विकास, बल्कि शराबबंदी है। महिलाओं ने 10 हजार रुपए के बजाय शराबबंदी के नाम पर वोट दिया है। यही एनडीए और नीतीश कुमार की जीत का बड़ा कारण बना है। दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह नीति, जो वर्ष 2016 में महिलाओं की मांग पर लागू की गई थी, आज नौ साल बाद बिहार की राजनीति में सबसे भावनात्मक मुद्दा है। यह महिलाओं के लिए सुरक्षा, सम्मान और पारिवारिक स्थिरता का प्रतीक है। शराबबंदी के बाद बिहार में महिलाओं का वोट प्रतिशत अप्रत्याशित रूप से बढ़ रहा है।
पहले बात बिहार में वोटिंग को लेकर जागरूक होतीं महिला वोटरों की करते हैं। राज्य में पिछले तीन विधानसभा चुनावों (2015, 2020 और 2025) को देखें तो महिलाओं की अभूतपूर्व भागीदारी दिखी है। पिछले दस वर्षों में राज्य की राजनीति में महिलाओं ने न केवल मतदान का स्वरूप बदला है, बल्कि उन्होंने एक ऐसा मतदाता वर्ग तैयार किया है, जो अब चुनावी परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित करता है।
वर्ष 2015 में जब नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव का महागठबंधन जीता था, तब महिलाओं (60.48 प्रतिशत) ने पहली बार पुरुषों (53.32 प्रतिशत) को मतदान में पीछे छोड़ दिया था। इस परिवर्तन का सीधा असर चुनाव परिणाम पर पड़ा था। हालांकि, उस समय तक शराबबंदी लागू नहीं हुई थी, लेकिन महिलाओं को उम्मीद थी कि अगर नीतीश कुमार सत्ता में लौटे तो वह शराब पर रोक लगाएंगे। नीतीश कुमार ने इसी महिला समर्थन को साइलेंट रिवोल्यूशन कहा था और यही भावनात्मक जुड़ाव वर्ष 2016 में शराबबंदी लागू होने की पृष्ठभूमि बना।
वर्ष 2020 के चुनाव में भी महिलाओं का मतदान प्रतिशत 59.58 और पुरुषों का 54.68 रहा था। महिला मतदाताओं की एकजुटता ने एनडीए और नीतीश कुमार को चुनौतीपूर्ण संघर्ष में जीत दिलाई थी। इस बार भी महिला वोटर एनडीए के लिए सत्ता की धुरी बनी हैं। जहां महिलाओं का वोट प्रतिशत 71.6 रहा, वहीं 62.8 प्रतिशत पुरुषों ने ही वोट डाला। यह अब तक का सबसे बड़ा अंतर है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि महिलाओं ने न केवल मतदान किया, बल्कि अपनी राजनीतिक चेतना को नए स्तर पर पहुंचाया है।
अब बात शराबबंदी की। शराबबंदी का फैसला सामाजिक रूप से साहसिक तो है, लेकिन राजस्व की दृष्टि से जोखिम भरा है। राज्य सरकार को इससे हर साल 5,000-6,000 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होता है। शराबबंदी की घोषणा के समय स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि यह नीति मैं महिलाओं के आग्रह पर ला रहा हूं। मैं जानता हूं कि इससे हमें राजस्व की हानि होगी, लेकिन यह समाज की बेहतरी के लिए है। इस बयान ने नीतीश कुमार को महिला समर्थक नेता के रूप में स्थापित किया। शराबबंदी ने इस बार भी महिला मतदाताओं के बीच एनडीए को अद्भुत समर्थन दिलाया।
दरअसल, शराबबंदी के मुद्दे को विपक्ष ठीक से समझ नहीं पाया। नवोदित नेता प्रशांत किशोर ने तो शराबबंदी को खत्म करने का ऐलान तक कर दिया था। राजद और कांग्रेस ने शराबबंदी को नीतीश कुमार की सबसे बड़ी नीतिगत विफलता बताया था। हालांकि, नीतीश कुमार इसे अपनी नैतिक उपलब्धि मानते हैं। उनका स्पष्ट तौर पर कहना है कि शराबबंदी से घरेलू हिंसा घटी, महिलाओं की स्थिति सुधरी और पारिवारिक माहौल बेहतर हुआ। सवाल यह नहीं कि शराबबंदी नीति का उद्देश्य क्या था? बल्कि यह है कि उसका परिणाम क्या हुआ? बिहार में हुए हालिया सर्वे के अनुसार 95–99 प्रतिशत महिलाएं शराबबंदी का समर्थन करती हैं। उनका मानना है कि इस कानून ने घर की शांति लौटाई है। पति की आमदनी अब बच्चों की पढ़ाई में लगती है। सड़क पर महिलाओं की सुरक्षा बेहतर हुई है।
बिहार में शराबबंदी के मुद्दे को भाजपा के चाणक्य और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी अच्छी तरह समझते हैं। तभी उन्होंने चुनाव प्रचार के बीच कहा कि देशभर में शराबबंदी लागू होनी चाहिए। दरअसल, उनका यह केवल सामाजिक नहीं, बल्कि चुनावी संकेत भी था। अमित शाह का यह बयान मुख्यतः बिहार की महिला मतदाताओं को संदेश देने के लिए था कि केंद्र सरकार भी नैतिक समाज की पक्षधर है। भाजपा इस नीति के सिद्धांत से सहमत है। वैसे जिस गुजरात से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह आते हैं, वहां भी वर्षों से शराबबंदी लागू है।
इस बार बिहार में जाति या विकास से अधिक नीतीश कुमार की शराबबंदी नीति अंडरकरेंट के रूप में दौड़ी है। महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहना केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। महिलाएं एनडीए और नीतीश कुमार के पक्ष में साइलेंट वेव साबित हुई हैं। बिहार की राजनीति में यह परिवर्तन इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह जाति और धर्म से ऊपर उठकर लिंग आधारित वोटिंग पैटर्न का निर्माण कर रहा है। महिलाएं अब परिवार या जाति के मत से नहीं, बल्कि अपनी सोच से वोट डाल रही हैं।