हम शहरी लोगों के लिए भारत में पहाड़ी लोगों के जीवन को समझना भी बहुत मुश्किल है। मुझे हमेशा लगता है कि आप जितने गरीब होते हैं उतने ही विनम्र होते हैं और आप जितने अमीर होते हैं उतने ही अहंकारी होते जाते हैं।
खैर, हमेशा अपवाद होते हैं लेकिन आज हमारे इस तेज गति वाले शहर के जीवन में हम एक चूहे की दौड़ में हैं और अधिक कमाते हैं ताकि इस ब्रह्मांड में हम भी कुछ हों।
एक कहावत है जो कहती है कि पैसा ही सब कुछ नहीं होता।
एक घटना जो मेरे साथ घटी
अपने सभी ट्रैक में मैं आमतौर पर एक गरीब व्यक्ति के घर जाकर चाय पीने की कोशिश करता हूं और फिर उन्हें एक अच्छी रकम का भुगतान करता हूं और उनके जीवन में अंतर्दृष्टि प्राप्त करने का भी प्रयास करता हूं। वैसे मैं स्वभाव से जिज्ञासु हूं और मेरा यही स्वभाव मुझे इन गांव के लोगों के साथ बातचीत करने के लिए प्रेरित करता है।
दो साल पहले ब्रह्म ताल झील के अपने ट्रैक पर हम एक बहुत छोटे से गांव को पार कर रहे थे, जो कि 9000 फीट से ऊपर था और मुश्किल से ही कुछ घर थे, जब एक बूढ़ी और बहुत कमजोर महिला कुत्ते के भौंकने की आवाज की दिशा से मेरी ओर आई। उसे देखते हुए
मैंने उससे पूछा-
हमे आश्चर्य हुआ.! जब वह हमें झोपड़ी जैसे अपने घर में लेकर गई। वहां कुछ ही बर्तन और सिर्फ एक लकड़ी का बक्सा था जिसमें उसके सांसारिक सामान थे। उसने तुरंत कुछ टहनियां लीं और चाय बनाना शुरू किया और बात करने लगी। जब उसे पता चला कि हम मुंबई से हैं तो वह इतनी उत्साहित हो गई कि उसका बेटा भी मुंबई में था और वहां काम कर रहा था।
मैंने उससे पूछा कि मुंबई में कहां है और उसने जवाब दिया कि उसे कुछ नहीं पता है और वह दो साल में एक बार ही आता है। मैंने उससे पूछा कि फिर वह इस जगह पर अकेली क्यों रहती है। जिसपर उसने जवाब दिया कि वह यहां बहुत खुश है क्योंकि उसके पास एक गाय है और उसका अपना छोटा सा खेत (जो 200 वर्ग फुट भी नहीं था) भी है। फिर उसने कहा कि बड़े शहर में वह क्या कर सकती है? बूढ़ी औरत ने कहा कि शहर तो उसके लिए जेल की तरह है और इसलिए वह मुंबई नहीं आना चाहती। फिर अगले आधे घंटे तक हम उसके कठिन जीवन पर चर्चा करते रहे कि कैसे सर्दियों में यहां बहुत ठंडा हो जाता है और कैसे उसके बुढ़ापे के कारण उसे चलना और अपना काम करना मुश्किल हो रहा है।
चाय पीने के बाद मैंने उसे 100 रुपये का नोट दिया, जिसे उसने लेने से पूरी तरह से मना कर दिया। उसे समझाने की मेरी तमाम कोशिशों के बावजूद वह मानने से इंकार कर रही थी। फिर मैंने उससे कहा कि जब उसके नाती-पोते उससे मिलने आते हैं तो वह इन पैसे से कुछ खरीद कर उन्हें दे देगी। इतना कहकर हमने बस नमस्ते किया और आगे चल दिए।
मैं चौंक गया और एक मिनट के लिए समझ ही नहीं पाया कि उससे क्या कहूं। मैंने उसे सिर्फ 100 रुपये दिए थे और वह मुझे पूरी बोरी दे रही थी जिसका वजन 3 से 4 किलो से अधिक था और जिसका मूल्य कहीं ज्यादा था। मैं इसलिए भी अचरज में था कि वह गरीब थी और यह अनाज लगभग एक महीने तक उसके काम आ सकता था, लेकिन वह यह हमें दे रही थी। हाथ जोड़कर मुझे उसे समझाना पड़ा कि आगे के सफर के लिए हमने पहले ही सामान ले लिया है और वापस जाते समय मैं उससे यह ले लूंगा।
मेरे सभी ट्रैकों में मैं जिन विशाल पहाड़ों से गुजरता हूं, वे मुझे छोटा, बेकार और असुरक्षित महसूस कराते हैं और मुझे ऐसा महसूस कराते हैं कि मैं बस एक छोटा सा कण हूं। खैर इस घटना ने मुझे अंदर से झकझोर कर रख दिया और मैंने महसूस किया कि मैं पहाड़ों से नहीं बल्कि एक बूढ़ी औरत से विनम्र हूं, जिसने उपरोक्त कहावत का सही अर्थ समझा।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें
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विस्तार
हम शहरी लोगों के लिए भारत में पहाड़ी लोगों के जीवन को समझना भी बहुत मुश्किल है। मुझे हमेशा लगता है कि आप जितने गरीब होते हैं उतने ही विनम्र होते हैं और आप जितने अमीर होते हैं उतने ही अहंकारी होते जाते हैं।
खैर, हमेशा अपवाद होते हैं लेकिन आज हमारे इस तेज गति वाले शहर के जीवन में हम एक चूहे की दौड़ में हैं और अधिक कमाते हैं ताकि इस ब्रह्मांड में हम भी कुछ हों।
एक कहावत है जो कहती है कि
पैसा ही सब कुछ नहीं होता।
हममें से कितने लोग इस पर विश्वास करते हैं? मैंने एक छोटी सी घटना देखी, जिसने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि इस तरह की बातों का कोई मतलब है। हालांकि आज की दुनिया में इस तरह की बातों का कोई स्थान नहीं है। जब कोई उपरोक्त कहावत कहता है तो हमारी तत्काल प्रतिक्रिया होती है, पहले पैसा कमाओ और फिर कहो। या हमें लगता है कि वह ऐसा इसलिए कह रहा है क्योंकि उसके पास यह नहीं है।
एक घटना जो मेरे साथ घटी
अपने सभी ट्रैक में मैं आमतौर पर एक गरीब व्यक्ति के घर जाकर चाय पीने की कोशिश करता हूं और फिर उन्हें एक अच्छी रकम का भुगतान करता हूं और उनके जीवन में अंतर्दृष्टि प्राप्त करने का भी प्रयास करता हूं। वैसे मैं स्वभाव से जिज्ञासु हूं और मेरा यही स्वभाव मुझे इन गांव के लोगों के साथ बातचीत करने के लिए प्रेरित करता है।
दो साल पहले ब्रह्म ताल झील के अपने ट्रैक पर हम एक बहुत छोटे से गांव को पार कर रहे थे, जो कि 9000 फीट से ऊपर था और मुश्किल से ही कुछ घर थे, जब एक बूढ़ी और बहुत कमजोर महिला कुत्ते के भौंकने की आवाज की दिशा से मेरी ओर आई। उसे देखते हुए
मैंने उससे पूछा-
मांं जी कैसे हो और उसने तुरंत ट्रैक पर हम में से सिर्फ 3 को देखकर हमें चाय पीने के लिए कहा। हालांकि मेरे दोस्त दिलचस्पी नहीं ले रहे थे और यात्रा जारी रखना चाहते थे, मैंने कहा- चलो चलते हैं और चाय पीते हैं।
हमे आश्चर्य हुआ.! जब वह हमें झोपड़ी जैसे अपने घर में लेकर गई। वहां कुछ ही बर्तन और सिर्फ एक लकड़ी का बक्सा था जिसमें उसके सांसारिक सामान थे। उसने तुरंत कुछ टहनियां लीं और चाय बनाना शुरू किया और बात करने लगी। जब उसे पता चला कि हम मुंबई से हैं तो वह इतनी उत्साहित हो गई कि उसका बेटा भी मुंबई में था और वहां काम कर रहा था।
मैंने उससे पूछा कि मुंबई में कहां है और उसने जवाब दिया कि उसे कुछ नहीं पता है और वह दो साल में एक बार ही आता है। मैंने उससे पूछा कि फिर वह इस जगह पर अकेली क्यों रहती है। जिसपर उसने जवाब दिया कि वह यहां बहुत खुश है क्योंकि उसके पास एक गाय है और उसका अपना छोटा सा खेत (जो 200 वर्ग फुट भी नहीं था) भी है। फिर उसने कहा कि बड़े शहर में वह क्या कर सकती है? बूढ़ी औरत ने कहा कि शहर तो उसके लिए जेल की तरह है और इसलिए वह मुंबई नहीं आना चाहती। फिर अगले आधे घंटे तक हम उसके कठिन जीवन पर चर्चा करते रहे कि कैसे सर्दियों में यहां बहुत ठंडा हो जाता है और कैसे उसके बुढ़ापे के कारण उसे चलना और अपना काम करना मुश्किल हो रहा है।