एक कॉमेडियन की लाइन बड़ी वायरल हुई थी जिसमें वो कह रहे हैं कि – “लोग यूनीवर्स की बात करते हैं कि हम इस ब्रह्मांड के सामने धूल की कण के समान हैं बहुत छोटे हैं, तो मैं क्या करूं अपनी जॉब छोड़ दूं?”
बात तो ठीक है कि भले यूनीवर्स में खरबों तारों की बात की जाए, ग्रहों की खोज कर ली जाए लेकिन जीना तो धरती पर है तो उसी नियम से काम भी करने होंगे। परंतु, सोचिए कि हम अपनी दिनचर्या में व्यस्त हों, मानव-जीवन की हर साधारण गतिविधि में उलझे हों मसलन- जॉब, शादी, प्रेम, ब्रेकअप बगैरह और तभी कोई आकर आपको ब्रह्मांड के विस्तार के बारे में बताने लगे तो आपको लगेगा कि किसी ने गहरी नींद से जगा दिया है।
किसी रोज़ हम अपनी छत्त पर जाकर सिर्फ़ चांद को न देखें और विचार करें कि इस आसमान के पार जो जहान है वो कितना बड़ा है। हमारे जैसे खरबों ग्रह हैं, उतने ही तारे भी, इन्हीं से मिलकर बनी है आकाशगंगा यानी हमारी गैलेक्सी और ऐसी ही खरबों आकाशगंगा हैं या शायद उससे भी ज़्यादा?
डार्क मेटर का पता चला
कुछ और भी शक्तिशाली है जिससे यूनीवर्स विस्तृत हो रहा है, इसी क्रम में डार्क मैटर का पता चला। डार्क इसलिए कि दिखाई नहीं देता, न प्रकाश फेंकता है, न भीतर लेता है। यह दूसरी चीज़ों पर जिस तरह का प्रभाव डालता है, उससे पता चला कि ऐसा कुछ है जो अदृश्य है लेकिन अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है। जो इतना शक्तिशाली है कि उससे पूरे ब्रह्मांड का क्रम सुचारु रहता है लेकिन यह उदासीन है।
कार्ल सैगन ने ब्रह्मांड के बारे में यही कहा था कि यह हमारे प्रति उदासीन है। इतने बड़े ब्रह्मांड में हमारा अस्तित्व कुछ भी नहीं और इससे इस कॉस्मॉस जगत को फ़र्क़ भी नहीं पड़ता। वॉयजर की तस्वीर का मैं अक्सर ज़िक्र करती हूं और कार्ल सैगन के उस भाषण का भी जिसमें वह किसी बिंदु के समान दिखाई देती धरती के लिए कहते हैं कि धर्म, राजनीति, भूगोल आदि के सब झगड़े इस एक छोटे बिंदु के लिए हैं।
पैरेलल यूनीवर्स की थ्योरी
यह बातें एक बार के लिए ज़हन को दूसरे डाइमेंशन में ले जाती हैं, पैरेलल यूनीवर्स की उस थ्योरी में जहां शायद हम जैसा कोई है जो अपने होने भर से दुनिया को बेहतर करना चाहता है लेकिन हम फिर लौटते हैं इसी थ्री डी वर्ल्ड में अपने द्वेष, गुस्से और समस्याओं के साथ अपने समूचे अस्तित्व को विस्मृत करते। भूलते जाते हैं कि एक दिखाई न देने वाले किसी पदार्थ से जुड़ा है हमारा ब्रह्मांड।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें
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एक कॉमेडियन की लाइन बड़ी वायरल हुई थी जिसमें वो कह रहे हैं कि – “लोग यूनीवर्स की बात करते हैं कि हम इस ब्रह्मांड के सामने धूल की कण के समान हैं बहुत छोटे हैं, तो मैं क्या करूं अपनी जॉब छोड़ दूं?”
बात तो ठीक है कि भले यूनीवर्स में खरबों तारों की बात की जाए, ग्रहों की खोज कर ली जाए लेकिन जीना तो धरती पर है तो उसी नियम से काम भी करने होंगे। परंतु, सोचिए कि हम अपनी दिनचर्या में व्यस्त हों, मानव-जीवन की हर साधारण गतिविधि में उलझे हों मसलन- जॉब, शादी, प्रेम, ब्रेकअप बगैरह और तभी कोई आकर आपको ब्रह्मांड के विस्तार के बारे में बताने लगे तो आपको लगेगा कि किसी ने गहरी नींद से जगा दिया है।
किसी रोज़ हम अपनी छत्त पर जाकर सिर्फ़ चांद को न देखें और विचार करें कि इस आसमान के पार जो जहान है वो कितना बड़ा है। हमारे जैसे खरबों ग्रह हैं, उतने ही तारे भी, इन्हीं से मिलकर बनी है आकाशगंगा यानी हमारी गैलेक्सी और ऐसी ही खरबों आकाशगंगा हैं या शायद उससे भी ज़्यादा?
फिर कुछ तो है जो सब कुछ बांधे हुए है जिसके बल पर सब वैसे ही व्यवस्थित है जैसे होना चाहिए। एक तारे के चारों ओर घूमते पिंड, किसी दिशा में दौड़ रहा यह ब्रह्मांड। वह तत्व क्या है, उसकी खोज जारी है। ब्लैकहोल से निकलकर ये रिसर्च डार्क मैटर तक पहुंची, माना जाता था कि ब्लैकहोल के गुरुत्वाकर्षण से ही सारी गैलेक्सी आपस में जुड़ी हुई हैं लेकिन एक प्रयोग के दौरान पता चला कि मात्र ब्लैकहोल से यह संभव नहीं है।
डार्क मेटर का पता चला
कुछ और भी शक्तिशाली है जिससे यूनीवर्स विस्तृत हो रहा है, इसी क्रम में डार्क मैटर का पता चला। डार्क इसलिए कि दिखाई नहीं देता, न प्रकाश फेंकता है, न भीतर लेता है। यह दूसरी चीज़ों पर जिस तरह का प्रभाव डालता है, उससे पता चला कि ऐसा कुछ है जो अदृश्य है लेकिन अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है। जो इतना शक्तिशाली है कि उससे पूरे ब्रह्मांड का क्रम सुचारु रहता है लेकिन यह उदासीन है।