आज सुबह इस समाचार ने मन को विषाद से भर दिया कि कथक नृत्य के प्रतीक माने जानेवाले बिरजू महाराज का हृदय गति के रुक जाने से निधन हो गया। 4 फरवरी, 1938 को जन्में और 17 जनवरी, 2022 को अंतिम यात्रा पर जाने वाले पंडित बिरजू महाराज, जिनका मूल नाम पंडित बृजमोहन मिश्र था, अपने तिरासी वर्षीय जीवन में कथक के पर्याय हो गए थे। उनका ताल्लुक लखनऊ कालिका बिंदादीन घराने से था।
वे उन प्रसिद्ध कथक महाराजों की परम्परा से आते थे जिनमें उनके चाचा और ताऊ क्रमशः शम्भू महाराज तथा लच्छू महाराज शामिल थे। उनके पिता और गुरु पंडित अच्छन महाराज भी कथक की बड़ी विभूतियों में एक थे। कथक नृत्य के साथ वे कुशल शास्त्रीय गायक भी थे और अच्छे पद रचनाकार भी।
न जाने उनकी कितनी प्रस्तुतियां देखीं और उनको हमेशा एक जीवित किंवदंती के रूप में पाया। नृत्य, संगीत के साथ भारतीय कला परम्परा और उसके अवबोध की जितनी गहरी समझ उनमें थी, शायद ही लोगों में होती है। उन्हें हमेशा अपने देश की कला और संस्कृति की अवनति पर क्षुब्ध होते देखा और उसके लिए जी जान से लगकर काम करते भी। यही कारण है कि उन्होंने अपने पीछे लगभग चार पीढ़ियों को तैयार कर कथक की एक समृद्ध विरासत हमें सौंपी है, जिस पर हम गर्व और सन्तोष, दोनों कर सकते हैं।
उनसे अंतिम भेंट नवम्बर 15, 2021 को हुई थी , जब रज़ा फाउंडेशन ने इंडिया इंटर नेशनल सेंटर, दिल्ली में दो दिवसीय युवा कार्यक्रम का आयोजन किया था। इसमें सात कला मूर्धन्यों पर युवाओं का सम्वाद था जिसमें अंतिम जीवित मूर्धन्य बिरजू महाराज ही थे। उन्होंने बड़े उत्साह से युवाओं द्वारा अपने काम पर की गई टिप्पणियों को सुना और स्वास्थ्य ठीक न होने पर भी कुछ प्रेरक शब्द कहे थे।
यह समय उनके मूल्यांकन का नहीं है, उनको भरे मन से याद करने और अपनी प्रणति देने का है। मैं उन्हें प्रणाम करता हूं और आश्वस्त होता हूं कि वे हमेशा अपने कृतित्व से हमारे बीच बने रहेंगे।
सादर नमन
ॐ शांति शांतिः
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
विस्तार
आज सुबह इस समाचार ने मन को विषाद से भर दिया कि कथक नृत्य के प्रतीक माने जानेवाले बिरजू महाराज का हृदय गति के रुक जाने से निधन हो गया। 4 फरवरी, 1938 को जन्में और 17 जनवरी, 2022 को अंतिम यात्रा पर जाने वाले पंडित बिरजू महाराज, जिनका मूल नाम पंडित बृजमोहन मिश्र था, अपने तिरासी वर्षीय जीवन में कथक के पर्याय हो गए थे। उनका ताल्लुक लखनऊ कालिका बिंदादीन घराने से था।
वे उन प्रसिद्ध कथक महाराजों की परम्परा से आते थे जिनमें उनके चाचा और ताऊ क्रमशः शम्भू महाराज तथा लच्छू महाराज शामिल थे। उनके पिता और गुरु पंडित अच्छन महाराज भी कथक की बड़ी विभूतियों में एक थे। कथक नृत्य के साथ वे कुशल शास्त्रीय गायक भी थे और अच्छे पद रचनाकार भी।
दरअसल, उनकी सबसे बड़ी खासियत कथक को समयानुकूल बनाना तथा उसे नृत्य नाटिकाओं से जोड़ना था। कथक केंद्र से अवकाश लेने के बाद उन्होंने कलाश्रम की स्थापना करके कथक में अनेक बड़ी प्रतिभाओं को जन्म दिया था। पदम् विभूषण अलंकरण, संगीत नाटक अकादेमी सम्मान,कालिदास सम्मान, लता मंगेशकर पुरस्कार, भरत मुनि सम्मान, विश्वरूपम फ़िल्म में नृत्य निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार सहित 2016 में बाजीराव मस्तानी फ़िल्म में 'मोहे रंग दो लाल ' गाने पर नृत्य निर्देशन के लिए उनको फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी मिला था।
न जाने उनकी कितनी प्रस्तुतियां देखीं और उनको हमेशा एक जीवित किंवदंती के रूप में पाया। नृत्य, संगीत के साथ भारतीय कला परम्परा और उसके अवबोध की जितनी गहरी समझ उनमें थी, शायद ही लोगों में होती है। उन्हें हमेशा अपने देश की कला और संस्कृति की अवनति पर क्षुब्ध होते देखा और उसके लिए जी जान से लगकर काम करते भी। यही कारण है कि उन्होंने अपने पीछे लगभग चार पीढ़ियों को तैयार कर कथक की एक समृद्ध विरासत हमें सौंपी है, जिस पर हम गर्व और सन्तोष, दोनों कर सकते हैं।
उनसे अंतिम भेंट नवम्बर 15, 2021 को हुई थी , जब रज़ा फाउंडेशन ने इंडिया इंटर नेशनल सेंटर, दिल्ली में दो दिवसीय युवा कार्यक्रम का आयोजन किया था। इसमें सात कला मूर्धन्यों पर युवाओं का सम्वाद था जिसमें अंतिम जीवित मूर्धन्य बिरजू महाराज ही थे। उन्होंने बड़े उत्साह से युवाओं द्वारा अपने काम पर की गई टिप्पणियों को सुना और स्वास्थ्य ठीक न होने पर भी कुछ प्रेरक शब्द कहे थे।
यह समय उनके मूल्यांकन का नहीं है, उनको भरे मन से याद करने और अपनी प्रणति देने का है। मैं उन्हें प्रणाम करता हूं और आश्वस्त होता हूं कि वे हमेशा अपने कृतित्व से हमारे बीच बने रहेंगे।
सादर नमन
ॐ शांति शांतिः
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।