उनकी शख्सियत में एक खास किस्म की रूमायित और सादगी थी। उनके भीतर इस उम्र में भी एक छोटा बच्चा था। उनके कथक की बारीकियां और उनकी भाव भंगिमाएं तो सबने देखीं और दुनिया ने उन्हें कथक सम्राट का दर्जा भी दिया, लेकिन अस्सी पार करने के बाद भी उनके भीतर का वो बच्चा कृष्ण के नन्हें अवतार की तरह उनके नृत्य में, उनके चेहरे पर, उनकी आंखों में मचलता रहता था।
बिरजू महाराज की यादें
मस्तमौला मिजाज के धनी और अपनी चुटीली बातों से सबको हंसाने वाले पंडित बिरजू महाराज को मंच पर देखने का मौका एकाध बार ही मिला। दिल्ली के कमानी सभागार के एक कार्यक्रम में उनका परफॉर्मेंस याद आता है, साथ ही उनके 80 साल पूरा करने पर कमानी में ही उनकी बेटी कविता जब परफॉर्म कर रही थीं तब पंडित जी तबला बजा रहे थे।
करीब 15 मिनट तक पंडित बिरजू महाराज लगातार तबला बजाते रहे, उनका साथ तबले पर ही दे रहे थे उनके बड़े बेटे। परफॉर्मेंस के बाद पंडित जी से चलते चलाते एकाध लाइनों की बात हुई-
इससे पहले पंडित जी से कोई दस साल पहले एक अच्छी मुलाकात हुई थी। लखनऊ में हमने ज़ी न्यूज़ यूपी की तरफ से अवध सम्मान का आयोजन किया था, जिसमें सुर साम्राज्ञी और ठुमरी, टप्पा, दादरा की मशहूर गायिका गिरिजा देवी भी थीं और पंडित बिरजू महाराज भी। अब दोनों ही हस्तियां हमारे साथ नहीं हैं। उस दौरान पंडित जी कह रहे थे-
क्लासिकल डांस को लेकर नई पीढ़ी और खासकर लड़कों की दिलचस्पी के बारे में पूछे गए एक सवाल पर पंडित जी ने कहा था-
उस वक्त हमारी मुलाकात के दौरान पंडित जी माधुरी दीक्षित के नृत्य की खूब तारीफ करते थे। तबतक वो फिल्म देवदास का नृत्य निर्देशन कर चुके थे।
कहते थे-
बाद में पंडित जी ने बाजीराव मस्तानी के मशहूर गीत ‘मोहे रंग दो लाल’ के डांस सीक्वेंस में दीपिका पाडुकोण को नृत्य की बारीकियां बताईं और यह गीत भी जबरदस्त हिट हुआ। जाहिर है शास्त्रीय गीतों और नृत्य संरचनाओं का कोई तोड़ नहीं है और कितना भी वक्त गुज़र जाए, इन्हें हमेशा पसंद किया जाता रहेगा।
बहुत योगदान रहा पंडित जी का
पंडित जी के इस फिल्मी योगदान को अगर किनारे भी कर दें तो वो लगातार एक संस्था रहे। जगह-जगह उन्होंने नृत्य और हमारी शास्त्रीय परंपराओं के प्रति नई पीढ़ी को जागरूक करने की हर संभव कोशिश की। पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी जैसे पुरस्कारों की लंबी फेहरिस्त तो उनके साथ है ही, उनकी सहजता, सरलता और एकदम अपना सा हो जाना उनकी खासियत थी।
पंडित जी 83 साल के थे। कोरोना काल के पिछले दो सबसे खतरनाक सालों में बेशक उनकी सक्रियता उतनी नहीं थी और उनका ज्यादातर वक्त घर में ही कटता था। करीब एक महीने से उनकी तबीयत कुछ ठीक नहीं चल रही थी। दरअसल पंडित जी ने एक बार कहा था कि कलाकार के लिए काम, रियाज, मंच, दर्शक और लोगों के प्यार सम्मान से बड़ा कुछ नहीं।
जब तक वो सक्रिय है तब तक उसकी कला बरकरार है। बेशक इन दो सालों में पंडित जी शायद इस सक्रियता से मजबूरन दूर महसूस कर रहे थे। फिर भी वो अपने घर में ही अपनी आंखों से, भाव भंगिमाओं से बैठे बैठे ही रियाज करते रहते थे।
पंडित जी के बारे में तमाम लोगों ने अपने अपने अनुभव सोशल मीडिया पर साझा किए हैं, उनकी सरलता के तमाम किस्से बताए हैं। संगीत और संस्कृति के तमाम आयामों को बारीकी से समझने और लगातार इनके तमाम पहलुओं पर लिखने वाले यतीन्द्र मिश्र पंडित जी पर किताब लिख रहे थे। पिछले छह महीनों से लगातार पंडित जी के जीवन, संस्मरण, साधना और नृत्य के तमाम पक्षों को जमा कर रहे थे।
बेशक बीच में ही पंडित जी के छोड़ जाने की पीड़ा यतीन्द्र की भी है और उनके परिजनों की तो है ही। लेकिन उससे भी बड़ा शून्य नृत्य और संगीत की दुनिया के उन करोड़ों चाहने वालों के लिए है जिनके लिए पंडित बिरजू महाराज एक आइकॉन रहे हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें
[email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
विस्तार
उनकी शख्सियत में एक खास किस्म की रूमायित और सादगी थी। उनके भीतर इस उम्र में भी एक छोटा बच्चा था। उनके कथक की बारीकियां और उनकी भाव भंगिमाएं तो सबने देखीं और दुनिया ने उन्हें कथक सम्राट का दर्जा भी दिया, लेकिन अस्सी पार करने के बाद भी उनके भीतर का वो बच्चा कृष्ण के नन्हें अवतार की तरह उनके नृत्य में, उनके चेहरे पर, उनकी आंखों में मचलता रहता था।
वो कहते और डूब जाते, ‘कान्हा की लीलाएं और चपलता तो कमाल की है, लगता है वो मेरे भीतर कहीं गहराई तक बसे हैं।‘ कुछ ही देर में वो राधा को महसूस करते और उनकी तरह शरमाने लगते। बैठे बैठे भी अपनी अदाओं से आपको बांध लेते।
बिरजू महाराज की यादें
मस्तमौला मिजाज के धनी और अपनी चुटीली बातों से सबको हंसाने वाले पंडित बिरजू महाराज को मंच पर देखने का मौका एकाध बार ही मिला। दिल्ली के कमानी सभागार के एक कार्यक्रम में उनका परफॉर्मेंस याद आता है, साथ ही उनके 80 साल पूरा करने पर कमानी में ही उनकी बेटी कविता जब परफॉर्म कर रही थीं तब पंडित जी तबला बजा रहे थे।
करीब 15 मिनट तक पंडित बिरजू महाराज लगातार तबला बजाते रहे, उनका साथ तबले पर ही दे रहे थे उनके बड़े बेटे। परफॉर्मेंस के बाद पंडित जी से चलते चलाते एकाध लाइनों की बात हुई-
कहने लगे ‘अब नई पीढ़ी को ही बहुत कुछ करना है। हम तो अस्सी के हो गए, चाहते हैं अंत समय तक हाथ-पांव चलते रहें।‘
इससे पहले पंडित जी से कोई दस साल पहले एक अच्छी मुलाकात हुई थी। लखनऊ में हमने ज़ी न्यूज़ यूपी की तरफ से अवध सम्मान का आयोजन किया था, जिसमें सुर साम्राज्ञी और ठुमरी, टप्पा, दादरा की मशहूर गायिका गिरिजा देवी भी थीं और पंडित बिरजू महाराज भी। अब दोनों ही हस्तियां हमारे साथ नहीं हैं। उस दौरान पंडित जी कह रहे थे-
नृत्य हमेशा लड़कियों के लिए ही नहीं होता। अगर आपमें लचक है, आंखों में भाव हैं, सुर की समझ है तो फिर कोई भी इसे कर सकता है।