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मुद्दा: नए कानूनों का लाभ अंतिम श्रमिक तक पहुंचे
सजी नारायणन सी के
Published by: लव गौर
Updated Tue, 02 Dec 2025 06:12 AM IST
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चार नए श्रम कानून लागू
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विस्तार
भारत आज अपने श्रम परिदृश्य में एक गहन रूपांतरण की दहलीज पर खड़ा है। चार श्रम संहिताओं का अधिनियमन स्वतंत्रता के बाद किए गए सबसे दूरगामी सुधारों में एक है। स्वतंत्रता के अठहत्तर वर्ष बाद पहली बार भारत ने न्यूनतम वेतन के सार्वभौमीकरण का लक्ष्य प्राप्त किया है। पहले जो असमानताएं और विसंगतियां थीं-न्यूनतम वेतन का केवल कुछ क्षेत्रों तक सीमित होना, उद्योगों के अनुसार वेतन-दरों में व्यापक अंतर, तथा एक ही क्षेत्र में समान कार्य के लिए भिन्न वेतन-ये सब अब समाप्त कर दी गई हैं।संहिता पांच वर्षों के भीतर न्यूनतम वेतन के अनिवार्य पुनरीक्षण की बात करती है, ताकि वेतन आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप बना रहे। संहिता पारिश्रमिक, भर्ती प्रक्रिया और सेवा शर्त में लिंग आधारित भेदभाव को निषिद्ध घोषित करती है। साथ ही, आपराधिक शिकायत दायर करने का अधिकार केवल निरीक्षकों तक सीमित न रखते हुए श्रमिकों तथा उनके ट्रेड यूनियनों को भी प्रदान किया गया है। वेतन-प्राप्ति के दावों की वैध अवधि छह महीने से बढ़ाकर तीन वर्ष कर दी गई है, जिससे न्याय प्राप्ति के अवसर मजबूत हुए हैं। न्यूनतम वेतन का आश्वासन सामान्य नागरिक की औसत क्रय-शक्ति को बढ़ाएगा, जिससे बाजार सक्रिय होंगे और विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलेगा।
पहले कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) और कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) योजनाएं केवल उन क्षेत्रों में लागू होती थीं, जो संबंधित अधिनियमों की अनुसूचियों में सम्मिलित थे। इन अनुसूचियों की समाप्ति ईएसआई और ईपीएफ को प्रत्येक श्रमिक तक पहुंचाने की दिशा में पहला निर्णायक कदम है। ईएसआई योजना अब किसी भी खतरनाक व्यवसाय पर लागू है, भले ही वहां केवल एक श्रमिक कार्यरत हो। ईएसआई अब पूरे भारत में लागू है, जबकि पहले यह केवल 565 पूर्णत: अधिसूचित और 103 आंशिक रूप से अधिसूचित जिलों तक ही सीमित थी। संहिता सुनिश्चित करती है कि यदि नियोक्ता श्रमिक का बीमाकरण, प्रतिष्ठान का पंजीकरण या अंशदान का भुगतान करने में विफल भी हो जाए, तब भी श्रमिक को ईएसआई के सभी लाभ मिलेंगे। कर्मचारी भविष्य निधि, कर्मचारी पेंशन योजना और कर्मचारी जमा-लिंक्ड बीमा योजना अब प्रत्येक ऐसे प्रतिष्ठान पर लागू हैं, जहां बीस या अधिक श्रमिक कार्यरत हों।
पूरा असंगठित क्षेत्र अब एक ऐसे सामाजिक सुरक्षा तंत्र के अंतर्गत आ गया है, जिसमें बारह उन्नत लाभ शामिल हैं। साथ ही, गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिए छह विशिष्ट लाभ भी जोड़े गए हैं। सामाजिक सुरक्षा संहिता गिग श्रमिकों, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म श्रमिकों, अंतर-राज्यीय प्रवासी श्रमिकों, घरेलू श्रमिकों, गृह-आधारित श्रमिकों और निश्चित अवधि के कर्मचारियों को भी अपने दायरे में लेती है। यह अनुबंध श्रमिकों के अंशदान का भुगतान न करने पर ठेकेदार के स्थान पर प्रधान नियोक्ता को उत्तरदायी ठहराती है। प्रवासी श्रमिकों के लिए आधार-लिंक्ड सामाजिक सुरक्षा के माध्यम से लाभों की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित की गई है। निश्चित अवधि के रोजगार में पांच वर्ष की अवधि पूर्ण न होने पर भी ग्रेच्युटी का लाभ प्रदान किया गया है। संहिता नियमित स्वास्थ्य परीक्षणों के अधिकार की पुष्टि करती है।
औद्योगिक संबंध संहिता संघर्ष से सामंजस्य की ओर परिवर्तन का संकेत देती है। ‘औद्योगिक विवाद अधिनियम’ की जगह ‘औद्योगिक संबंध संहिता’ नाम अपनाकर सौहार्द व सहयोग को प्राथमिकता दी गई है। यह ‘बदली’ श्रमिकों की नियुक्ति अवधि को केवल एक वर्ष तक सीमित करती है। ‘द्विपक्षीय मंचों’ के जरिये विवादों का समाधान श्रमिक और नियोक्ता के प्रत्यक्ष संवाद से किया जा सकेगा। श्रम न्यायालय और औद्योगिक अधिकरण का द्विभाजन समाप्त कर अब उन्हें एकीकृत कर ‘औद्योगिक अधिकरण’ बनाया गया है। संहिता केंद्रीय और राज्य ट्रेड यूनियनों की मान्यता के लिए प्रावधान प्रस्तुत करती है और अधिकरण को अंतरिम राहत देने का अधिकार प्रदान करती है। भारतीय मजदूर संघ ने औद्योगिक संबंध संहिता के संदर्भ में बारह महत्वपूर्ण बिंदु तथा व्यावसायिक सुरक्षा संहिता के संदर्भ में बारह अन्य बिंदु सरकार के समक्ष रखे। संगठित क्षेत्र को प्रभावित करने वाले अनेक प्रावधानों को कई राज्य सरकारें पहले ही निवेश आकर्षित करने के नाम पर लागू कर चुकी हैं।
वेतन संहिता और सामाजिक सुरक्षा संहिता-ये दोनों न केवल श्रमिकों के जीवन-स्तर को ऊपर उठाने का वादा करती हैं, बल्कि राष्ट्र की आर्थिक नींव को भी सुदृढ़ बनाती हैं। यह भारत के श्रम सुधारों के इतिहास का एक निर्णायक मोड़ है। भारत की श्रमिक जनसंख्या आज पचास करोड़ से अधिक है, और प्रत्येक श्रमिक तक पहुंचना संगठित राष्ट्रीय प्रयास की मांग करता है। ट्रेड यूनियन, नियोक्ता संगठन और सरकार को निकट सहयोग में कार्य करना होगा, और अन्य सामाजिक संगठनों को भी अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करना होगा, क्योंकि इसी संकल्प पर सच्चे राष्ट्रीय पुनर्जागरण का भविष्य निर्भर है। -लेखक भारतीय मजदूर संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।edit@amarujala.com