आकलन: चमकदार उपलब्धियों के बीच घरेलू बाजार को दिखानी होगी मजबूती
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विस्तार
केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने पिछले दिनों 2023-24 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े प्रस्तुत किए। पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रही। उम्मीद की जा रही है कि कुछ यही रफ्तार पूरे वित्त वर्ष 2023-24 में भी बरकरार रहेगी। इसके बाद जुलाई से सितंबर, 2023 (2023-24 की दूसरी तिमाही) के लिए जीडीपी के तिमाही के आंकड़े 30 नवंबर को जारी किए जाएंगे। पहली तिमाही में जीडीपी की जो वृद्धि दिख रही है, वह वाकई काफी प्रभावशाली है। कई विश्लेषकों ने टिप्पणी की है कि पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर पूरे वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की सर्वाधिक तिमाही वृद्धि दर साबित होगी।
इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि कोरोना महामारी के बाद से वैश्विक अर्थव्यवस्था कई तरह के व्यवधानों से जूझ रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध, कुछ देशों में खाद्य व ऊर्जा संकट और पर्यावरणीय आपदाओं से संबंधित चुनौतियां पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाल रही हैं। इस पृष्ठभूमि में, भारत के लिए मध्यम अवधि में सात से आठ प्रतिशत से ज्यादा की विकास दर से आगे बढ़ने के लिए निजी निवेश में सतत वृद्धि और खासकर, उपभोग-पिरामिड में सबसे नीचे के स्तर से मांग पैदा करनी होगी।
हालांकि यह भी सच है कि त्रैमासिक डाटा बहुत कम समय-सीमा का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन, इससे यह तो पता चलता ही है कि उस एक वर्ष के भीतर अर्थव्यवस्था की हालत कैसी रही। इस दृष्टिकोण से तिमाही आंकड़े यह संकेत जरूर देते हैं कि किसी विशेष वर्ष के दौरान, अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक प्रदर्शन के क्या नतीजे रहे। पहली तिमाही में दिख रही वृद्धि सेवा क्षेत्र और खेती की वजह से है। रियल एस्टेट समेत वित्तीय सेवाएं इस तिमाही में 12 प्रतिशत से ज्यादा की दर से बढ़ीं। अगर पिछले वर्ष की इसी तिमाही से तुलना करें, तो विनिर्माण की वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत से गिरकर 4.7 प्रतिशत रह गई।
किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक विकास निवेश से प्रेरित होता है। निवेश या सकल स्थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) में हाल के वर्षों में लगातार गिरावट आई है। अब महसूस होता है कि इसकी स्थिति में बदलाव आया है। ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (जीएफसीएफ) यानी ‘सकल स्थायी पूंजी निर्माण’ सरकारी और निजी क्षेत्र की अचल संपत्ति पर किया जाने वाला शुद्ध पूंजीगत व्यय का एक आकलन है। अचल संपत्ति का अर्थ ऐसी मूर्त/अमूर्त परिसंपत्तियों से है, जिन्हें एक साल से ज्यादा अवधि तक लगातार या कभी-कभी इस्तेमाल के लिए सृजित किया जाता है। इसमें किसी कंपनी, सरकार या स्थानीय निकाय द्वारा एक साल या तिमाही में मशीनरी, वाहन, सॉफ्टवेयर, नई रिहायशी इमारतों व अन्य बिल्डिंग तथा सड़क निर्माण पर किया गया पूंजीगत व्यय शामिल है।
पहली तिमाही में निवेश 2021-22 के लिए जीडीपी के 28 प्रतिशत की तुलना में अब जीडीपी का 29.3 प्रतिशत अनुमानित किया गया है। बैंक जमा और बैंक ऋण, दोनों ने 2022-23 की पहली तिमाही की तुलना में ज्यादा वृद्धि दिखाई है। ये सकारात्मक संकेत हैं। और, अगर चीजें इसी तरह से होती रहीं, तो मध्यम से लंबी अवधि के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था सात से आठ प्रतिशत से ज्यादा गति से विकास करेगी। भारत में केंद्र और राज्यों के स्तर पर सरकारों द्वारा बजट के जरिये पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी देखी गई है। बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश द्वारा निजी निवेश को आकर्षित करने की कोशिश करनी चाहिए। यह समझना होगा कि विकास के लिए निजी क्षेत्र की तरफ से निवेश सबसे महत्वपूर्ण है।
हालांकि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है, फिर भी कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं, जिनसे आगे बढ़ने से पहले निपटना जरूरी है। घरेलू बचत में वृद्धि द्वारा समर्थित निवेश चक्र को बेहतर ढंग से जारी रखने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए। यह समझना चाहिए कि भारत के विकास के लिए जरूरी वित्त ज्यादातर घरेलू क्षेत्र की बचतों से मिलता है। इसलिए, लंबे समय के लिए विकास का प्रमुख निर्धारक घरेलू बचत ही होगा। जाहिर है कि वित्तीय क्षेत्र की नीतियों द्वारा घरेलू बचत को प्रोत्साहित करना चाहिए और छोटे बचतकर्ताओं के हितों की रक्षा करनी चाहिए।
रोजगार परिदृदश्य में बड़े पैमाने पर वृद्धि के लिए विनिर्माण क्षेत्र का विकास जरूरी है। विनिर्माण क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा, तभी गुणवत्तापूर्ण रोजगार पैदा हो सकेंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि निवेश चक्र में तेजी विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि और रोजगार सृजन को बढ़ावा देगी। दूसरी बात यह कि कृषि क्षेत्र ने, जिसने कोविड काल में भी धनात्मक वृद्धि दर दिखाई थी, प्रतिवर्ष चार फीसदी की दर से वृद्धि जारी रखी है। इस वर्ष कुछ क्षेत्रों में बारिश कम होने से इस वृद्धि को बनाए रखना चुनौती पूर्ण हो सकता है।
इसके अलावा कुछ बाहरी चुनौतियां भी हैं, जो भारत के नियंत्रण से बाहर हैं, और विकास पर प्रतिकूल असर डाल सकती हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर इसके असर को अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न व्यापक आर्थिक अनिश्चिंताएं और आपूर्ति शृंखला पर इनका असर महंगाई के मोर्चे पर दबाव बढ़ा सकता है। अगर मुद्रास्फीति और बढ़ती है, तो चुनावी वर्ष को देखते हुए, व्यापक आर्थिक नीति को विकास के बजाय महंगाई के प्रबंधन पर केंद्रित होना होगा। ऐसे विपरीत हालात से देश के दीर्घकालीन हितों को सुरक्षित रखना, वाकई एक चुनौती होगा।।
फिर, वैश्विक मांग में गिरावट के संकेत शेष विश्व की शुद्ध निर्यात मांग में आई कमी से भी परिलक्षित हुए हैं। इतना ही नहीं, इस दौरान शुद्ध आयात मांग में भी कमी प्रदर्शित हुई है। ऐसे में, यह देखते हुए, कि वैश्विक आर्थिक माहौल निकट भविष्य में अनिश्चित बना रहेगा, भारत के घरेलू बाजार को एक ढाल की तरह कार्य करना होगा। और यह ज्यादा नौकरियों, ज्यादा मांग और ज्यादा खपत के सृजन के जरिये हो सकता है।
-लेखक एनआईपीएफपी के पूर्व निदेशक हैं।