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व्यापार: निर्यात पर जोर देने से बनेगी बात, अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए अभी कई पहलू पक्ष में
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सार
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विस्तार
विभिन्न क्षेत्रों के अभूतपूर्व योगदान की वजह से इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था 37.5 खरब डॉलर तक पहुंच गई है और इसे 50 खरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य है। जाहिर है कि इसके लिए तेजी से प्रयास करने होंगे। भारतीय अर्थव्यवस्था निर्यातोन्मुखी होने के बजाय घरेलू खपत पर ज्यादा आधारित है। लेकिन चुनौती यह है कि भारतीयों की प्रति व्यक्ति आय को देखते हुए सिर्फ घरेलू खपत के बल पर इस लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल है। इसके लिए एक ही रास्ता है कि निर्यात को जबर्दस्त ढंग से बढ़ावा दिया जाए। चीन की अर्थव्यवस्था एक समय हमारे बराबर ही थी, सिर्फ निर्यात के बूते वह हमसे कई गुना आगे बढ़ गया।चीन ने अपने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सप्लाई चेन मैनेजमेंट का बेहतरीन उदाहरण पेश किया। बड़े-बड़े बंदरगाह, हवाई अड्डे और राजमार्ग बनाए। उसने न सिर्फ टेक्नोलॉजी का सहारा लिया, बल्कि नौकरशाही को भी चुस्त-दुरुस्त बनाया, ताकि निर्यात में कोई बाधा न आए। इसके बाद राजनीतिक प्रयास के जरिये उसने निर्यात के बड़े-बड़े ऑर्डर लिए। बड़े पैमाने पर उत्पादन के कारण चीन बहुत ही सस्ती दरों पर सामान बेचने में सक्षम हुआ, जिससे बहुत से देशों का घरेलू उत्पादन ठप हो गया, क्योंकि उन देशों में उत्पादित सामान कीमतों के मामले में चीनी सामान से टक्कर नहीं ले पाए। यह काफी हद तक भारत में भी हुआ और यहां भी हजारों छोटे कारखाने बैठ गए। इसलिए हमें अपना निर्यात बढ़ाने के लिए चीन से बहुत-सी चीजें सीखने की जरूरत है।
हमारे देश में बुनियादी ढांचों पर काफी काम हो रहा है। राजमार्ग तथा बंदरगाहों के विकास के साथ-साथ कई नए हवाई अड्डे भी बन रहे हैं, जिनसे माल की आवाजाही में आसानी होगी। भारतीय निर्यात संवर्धन परिषद के महानिदेशक तथा सीईओ डॉ. अजय सहाय बताते हैं कि हमें निर्यात का स्वरूप बदलना होगा और दुनिया भर के ट्रेंड को देखना होगा। यह टेक्नोलॉजी का जमाना है और हम जो निर्यात कर रहे हैं, वह परंपरागत है।
वह बताते हैं कि अब टेक्नोलॉजिकल सामान के निर्यात का बाजार बहुत बड़ा हो गया है और इनमें हमारा योगदान एक फीसदी का भी नहीं है, जबकि यह बाजार सात अरब डॉलर का है। इस दिशा में प्रयास करके हम अपना निर्यात काफी बढ़ा सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक पीएमआई में हमारा निर्यात बढ़ रहा है, मोबाइल फोन इसका बड़ा उदाहरण है। इसके अलावा फार्मा क्षेत्र में भी हम आगे हैं। यही नहीं, जो ग्लोबल कंपनियां भारत आना चाह रही हैं, वे यहां से निर्यात भी करेंगी। उनके भारत आने से निर्यात बढ़ेगा, जैसा कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र में हम देख रहे हैं। फार्मा क्षेत्र में भी भारत का निर्यात बढ़ रहा है। अजय सहाय बताते हैं कि 14 सेक्टरों में प्रॉफिट लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) लागू है, जिससे उन क्षेत्रों को सहारा मिला। कुछ सेक्टरों में टैक्स ज्यादा है, लेकिन आने वाले समय में उसके कम होने के आसार हैं।
भारत कृषि उत्पादों का बड़ा निर्यातक देश है। हमारा कृषि का निर्यात बढ़कर 52 अरब डॉलर हो गया है। कृषि निर्यात को बढ़ाकर दोगुना किया जा सकता है। लेकिन इसके रास्ते में चुनौतियां बहुत हैं। भारत सरकार ने कीमतों पर नियंत्रण के लिए बासमती चावल, दालों, गेहूं, चीनी, लॉन्ग ग्रेन व्हाइट राइस वगैरह के निर्यात पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे हमारा निर्यात प्रभावित हो रहा है। आयातक अब वियतनाम, थाईलैंड, पाकिस्तान आदि से चावल खरीद रहे हैं। ताजा खबरों के अनुसार, सरकार नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट्स लिमिटेड के जरिये 11 देशों को 12 लाख टन लॉन्ग ग्रेन राइस का निर्यात करेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे छोटी राइस मिलों और निर्यातकों को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा।
उधर अमेरिका और यूरोप चाह रहे हैं कि विश्व बाजार में चीन की जगह कोई दूसरा देश ले ले। यह भारत के लिए बड़ा अवसर है। कारोबार सुगमता सूचकांक में भारत ने अपनी स्थिति सुधारी है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थायी सरकार, स्थिर अर्थव्यवस्था और श्रमिकों की उपलब्धता भारत के पक्ष में हैं। इन सबसे भारत में कारोबार करना आसान है। इन्फ्रास्ट्रक्चर पर काम, टैक्स कानूनों और व्यापारिक नियम-कानूनों में सुधार से यहां निवेश बढ़ रहा है, जिसका फायदा आने वाले समय में मिलेगा।