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जी-20 देशों के लिए सबक: भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत को सभी ने स्वीकारा

Ajay Bagga अजय बग्गा
Updated Wed, 01 Mar 2023 05:53 AM IST
सार
भारत की जी-20 की अध्यक्षता के सकारात्मक प्रभाव और भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत को स्वीकार किया गया है। हम उम्मीद करते हैं कि अगले कुछ महीनों में एफआईआई से बाजार में निवेश फिर से शुरू हो जाएगा, क्योंकि सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में निवेश का आकर्षण वैश्विक नकारात्मकता से अधिक है।
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india lessons for the g20 countries indian economy growth foreign investment
G20 Meet - फोटो : ANI

विस्तार
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सितंबर, 2022 के आसपास इस बात को लेकर भारी सहमति थी कि वर्ष 2023 में वैश्विक आर्थिक मंदी आएगी। 2023 के आर्थिक विकास में तेजी से गिरावट शीघ्र ही इतिहास की सबसे अनुमानित मंदी बन गई। वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी और निश्चित आय एवं इक्विटी बाजारों, दोनों में तेज नुकसान के बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था 2022 में बढ़ती रही। आशंका यह थी कि मंदी 2023 में आएगी और पहले बाजार में गिरावट आएगी और फिर दूसरी छमाही में उछाल आएगा।



लेकिन जैसा कि आम तौर पर बाजारों में होता है, हमने जनवरी में ही बाजारों में उछाल देखा, क्योंकि अमेरिकी बाजारों में इस उम्मीद से आठ फीसदी की वृद्धि हुई कि आसन्न मंदी और गिरती मुद्रास्फीति मार्च तक फेड (अमेरिकी केंद्रीय बैंक) को ब्याज दर बढ़ाने से रोक देगी। इसके बाद फरवरी में गिरावट आई, क्योंकि मजबूत अर्थव्यवस्था, तंग श्रम बाजार और मुद्रास्फीति में धीमी गिरावट से यह डर पैदा हुआ कि फेड के ब्याज दरों में ठहराव स्थगित हो जाएगा। यहां तक कि अमेरिका और यूरोप में उपभोक्ता और व्यापार के विश्वास में सुधार और पीएमआई (पर्चेजिंग मैनेजर इंडेक्स) की संख्या बढ़ने के साथ बहुप्रतीक्षित मंदी की आशंका भी घटती प्रतीत होती है।


यह देखना सुखद है कि बाजार और फेड की अपेक्षा बेहतर ढंग से संबद्ध हैं, मजबूत आर्थिक विकास से पता चलता है कि मुद्रास्फीति को उन स्तरों पर वापस आने में अधिक समय लग सकता है, जो एफओएमसी के अनुरूप हैं। फेड का 'हाइयर फॉर लॉन्गर' का संदेश अंततः बाजारों में परिलक्षित हो रहा है। फरवरी, 2020 से पहले के तीन वर्षों के दौरान बाजार को प्रभावित करने वाली घटनाओं को देखते हुए हम बाजार की उलझनों को समझ सकते हैं। कोविड लॉकडाउन, तेजी से बदलते श्रम बाजार, मौद्रिक नीति में बड़े पैमाने पर उतार-चढ़ाव और यूरोप में युद्ध के साथ-साथ चीनी नेताओं के कामकाज की अनिश्चितता, सभी ने आर्थिक चक्र की स्थिति को पेचीदा बना दिया है।

इस सब में, भारतीय बाजार ने फरवरी में ही निवेशकों के 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति को नष्ट होते देखा है, क्योंकि बीएसई सेंसेक्स में लगभग 2,500 अंक की गिरावट आई है। एनएसई निफ्टी 17,350 के बजट दिन के निचले स्तर के करीब है। भारतीय शेयर बाजार के कमजोर प्रदर्शनों के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं।

सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक कारक मुद्रास्फीति है, जो फेड और अन्य केंद्रीय बैंकों द्वारा उच्च दरों और ब्याज दरों में और वृद्धि के पूर्वानुमान के लिए जिम्मेदार है। जनवरी में मजबूती दिखने के बाद अमेरिकी बाजारों में पिछले चार हफ्तों से गिरावट जारी है। दूसरा कारक, अमेरिकी डॉलर में नए सिरे से मजबूती है। जब अमेरिकी डॉलर अन्य मुद्राओं की तुलना में ऊपर जाता है, तो हम उभरते हुए बाजारों में मुद्रा का आउटफ्लो (बहिर्वाह) देखते हैं। इन्हीं दोनों कारकों से जुड़ा तीसरा कारक, भारत में विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) की बिकवाली के कारण जारी बहिर्वाह है। बीते एक जनवरी से पिछले हफ्ते तक एफआईआई की बिकवाली के कारण 32,000 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी हुई है। यह निवेशकों की धारणा को कमजोर कर रहा है।

जनवरी में मासिक आधार पर भारत की मुद्रास्फीति में वृद्धि ने यह आशंका बढ़ा दी है कि रिजर्व बैंक अप्रैल की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में दरों में और वृद्धि करने के लिए मजबूर होगा। यह अर्थव्यवस्था में विकास की गति को कम कर सकता है, जो वैश्विक कारकों के साथ-साथ आरबीआई द्वारा दरों में वृद्धि के कारण पहले से ही धीमा रहा है।

खपत के मोर्चे पर ग्रामीण खपत अब भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। पिछले साल की तरह इस साल भी असामान्य गर्मी गेहूं की उपज को कम कर सकती है। इससे खाद्यान्न की कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है और यह उच्च मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है। मानसून को लेकर ज्यादा चिंताएं हैं, जहां अल नीनो के साथ लू की शुरुआत खराब मानसून का संकेत दे रही है। हमने हाल ही में बंगलूरू में वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की जी-20 बैठक में अपने देश की प्रशंसा सुनी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने कहा कि व्यापक आर्थिक संतुलन और सुधारों पर विशेष सामंजस्य ने भारत को बेहतर स्थान बनने में मदद की है। उन्होंने भारत द्वारा डिजिटलाइजेशन को आगे बढ़ाने के तरीके की सराहना करते हुए कहा कि इसने भारत के विकास में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। भारत को सार्वजनिक सेवाओं में सुधार और निजी क्षेत्र के फलने-फूलने, दोनों के लिए आधार रूप में डिजिटल बुनियादी ढांचे का उपयोग करने के उदाहरण के रूप में देखा जाता है। जी-20 देश भारत के इन सबक को साझा करने के इच्छुक हैं।

बैठक में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि एक नियम आधारित विश्व व्यवस्था में वैश्वीकरण और आपूर्ति शृंखला के जुड़ाव से लाभ उठाना किस तरह से पोषण और निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। पिछले तीस वर्षों में वैश्विक अर्थव्यवस्था तीन गुना बढ़ी है। इसके सबसे बड़े लाभार्थी चीन और उभरते बाजार रहे हैं, जो बड़े पैमाने पर चौगुनी हुई है, जिससे गरीबी में कमी आई है। विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं दोगुनी हुई हैं। बैठक में एक ऐसी वैश्विक अर्थव्यवस्था की रक्षा करने की आवश्यकता जताई गई, जो सामंजस्यपूर्ण तरीके से कार्य करे। इसे आकार देने में भारत की भूमिका को स्वीकार किया गया। बैठक में क्रिप्टो सुरक्षा, स्थिर सिक्कों और विकेंद्रीकृत वित्त के वैश्विक विनियमन के लिए रूपरेखा बनाने, साइबर सुरक्षा, आसान और सस्ते सीमा पार भुगतान पर भी चर्चा हुई। बैठक के शीर्ष एजेंडे में जलवायु वित्तपोषण और विकास बैंकों की मजबूती भी शामिल था।

कुल मिलाकर, भारत की जी-20 की अध्यक्षता के सकारात्मक प्रभाव और 2023 एवं उसके बाद सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत को स्वीकार किया गया है। हम लचीली भारतीय अर्थव्यवस्था की उम्मीद करते हैं। भारतीय बाजार वैश्विक घटनाक्रमों के अनुरूप ही आगे बढ़ेंगे। हम उम्मीद करते हैं कि अगले कुछ महीनों में एफआईआई से बाजार में निवेश फिर से शुरू हो जाएगा, क्योंकि सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में निवेश का आकर्षण वैश्विक नकारात्मकता से अधिक है।

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