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शीत सत्र: समन्वय की दरकार... सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चले यह दोनों की साझा जिम्मेदारी
अमर उजाला
Published by: लव गौर
Updated Tue, 02 Dec 2025 06:18 AM IST
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संसद का शीतकालीन सत्र
- फोटो :
ANI
विस्तार
सोमवार से शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र का पहला दिन विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ जाना जहां संसदीय मर्यादा और सदन की गरिमा के लिए चिंतनीय है, वहीं आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा और बहस नहीं हो पाने से करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग भी है। 19 दिसंबर तक चलने वाले इस शीतकालीन सत्र में संसद की मात्र 15 बैठकें ही होने वाली हैं, अगर यह भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के गतिरोध की भेंट चढ़ जाएगा, तो निश्चित रूप से यह बेहद दुखद है।विपक्ष जहां एकजुट होकर मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर), हाल में हुए लाल किला बम धमाके के संदर्भ में राष्ट्रीय सुरक्षा, वायु प्रदूषण, विदेश नीति जैसे मुद्दों पर चर्चा और बहस की मांग कर रहा है, वहीं सरकार ने वंदे मातरम पर वैकल्पिक चर्चा का प्रस्ताव रखा है और कहा है कि वह एसआईआर एवं चुनाव सुधार के मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन विपक्ष बहस के लिए समयसीमा न थोपे। ऐसे में, विपक्ष को भी अपने रुख में नरमी लानी चाहिए।
गौरतलब है कि संसद का पिछला सत्र भी एसआईआर के मुद्दे को लेकर पूरी तरह बाधित रहा था। एक अनुमान के अनुसार, संसद की कार्यवाही पर हर मिनट में करीब ढाई लाख रुपये खर्च होते हैं, जो सदस्यों के हंगामे के कारण बर्बाद हो जाते हैं और इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तल्खी इतनी ज्यादा है कि सर्वदलीय बैठक और बिजनेस एडवायजरी बोर्ड की बैठक में हुई बातचीत भी दोनों के बीच गतिरोध को खत्म नहीं कर सकी।
हालांकि, सत्र के पहले दिन विपक्ष के हंगामे के बीच ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ‘मणिपुर गुड्स एंड सर्विस टैक्स’ (दूसरा संशोधन) विधेयक सदन में पेश किया, जिससे सत्ता पक्ष राहत महसूस कर सकता है, लेकिन पूरे शीतकालीन सत्र को लेकर आसार अच्छे नहीं दिख रहे हैं। दरअसल, संसदीय लोकतंत्र सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों के समन्वय से चलता है और सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चले, यह भी दोनों पक्षों की साझा जिम्मेदारी होती है।
इसलिए दोनों पक्षों को लचीला रुख अपनाते हुए सदन में मुद्दों के ऊपर बहस करनी चाहिए और पेश किए जाने वाले विधेयकों के गुण-दोषों पर चर्चा करनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत छींटाकशी में उलझना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि सत्ता पक्ष भी विपक्ष की मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगा और विपक्ष भी हंगामे की हठधर्मिता छोड़कर सदन के इस सत्र में सार्थक बहस और जनहितैषी मुद्दों पर विमर्श के लिए सकारात्मक रुख अपनाएगा।