Haridwar: एक माह पहले लिखी बेटे ने पिता की हत्या की पटकथा, तमंचे का लिया था ट्रायल, फिर उतार दिया मौत के घाट
रिटायर्ड एयरफोर्स कर्मी भगवान सिंह की हत्या का पुलिस और सीआईयू की टीम ने खुलासा कर दिया है। हत्या किसी लिफ्ट मांगने वाले बदमाश ने नहीं, बल्कि भगवान सिंह के अपने ही बेटे ने रची थी। करोड़ों की संपत्ति पर कब्जा जमाने की नीयत से बेटे ने अपने दो दोस्तों के साथ मिलकर पूरे घटनाक्रम की पटकथा लिखी और पिता को मौत के घाट उतरवा दिया।
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वायुसेना के पूर्व कर्मचारी भगवान की हत्या का ताना-बुना उनके इकलौते बेटे यशपाल ने एक महीने पहले ही अपने दोस्तों के साथ मिलकर बुन दिया था। इसके लिए बकायदा यशपाल, राजन और ललित ने मिलकर एक साथ तमंचे का ट्रायल भी लिया था। तमंचे से ठीक तरीके से गोली चलने के बाद ही वारदात को अंजाम देने की तारीख तय की गई।
शूटर की भूमिका निभाने वाला राजन उर्फ ललित मोहन अपराधी प्रवृत्ति का है और पहले भी फायरिंग की वारदात में शामिल रह चुका है। गलत संगत में पड़ने के बाद यशपाल इनके संपर्क में आया था। पुलिस की जांच में इसका खुलासा हुआ है।
पुलिस की मानें तो आरोपी यशपाल ने बीबीए की पढ़ाई की है, जबकि राजन 12वीं पास है। मूल रूप से अमरोहा यूपी का रहने वाला शेखर भगवानपुर के एक कॉलेज से पॉलिटेक्निक कर रहा है। उसका परिवार 15 साल से अधिक समय से यहां रह रहा है। राजन शुरुआत से गुंडागर्दी में रहा है। ज्वालापुर क्षेत्र में फायरिंग के मामले में उसका नाम पहले सामने आ चुका है।
सितंबर में तीनों ने आरोपियों ने हत्या की प्लानिंग शुरू की
गलत संगत में पड़ चुके यशपाल का इनसे मिलना-झुलना हो गया था। दोस्ती बढ़ गई। पिता की करोड़ों की संपत्ति के बारे में दोस्तों को भी पता चला। दोनों ने उसे संपत्ति नाम कराने के लिए भी कहा। उसने पिता से संपत्ति उसके नाम करने की जिद की, मगर गलत आदतों का पता चलने के बाद पिता ने बेटे के नाम न करने की बात कही।
इसी वजह से यशपाल ने दोस्तों के साथ बैठकर संपत्ति उसके नाम हो जाएगी और पिता भी कुछ न कर पाए इस पर चर्चा की। तब तीनों ने मिलकर भगवान सिंह हत्या की योजना बनाई। बहादराबाद थानाध्यक्ष अंकुर शर्मा के मुताबिक, एक महीने पहले हत्या की पटकथा लिखी गई। सितंबर में तीनों ने आरोपियों ने हत्या की प्लानिंग शुरू की और मौके की तलाश में जुट गए। इस बीच दोनों के दोस्तों के सामने राजन ने तमंचे का ट्रायल भी किया। देखा कि गोली चल रही है या नहीं। जब गोली सही चली तो फिर 29 नवंबर की रात का समय और नहर पटरी वारदात का स्थान चुना। मगर भगवान सिंह वहां तक कैसे लाया जाए, इसके लिए भूमिका बनाई।
व्हाट्सएप पर कॉल की, मैसेज फोन से डिलीट कर दिए
एसओ अंकुर शर्मा ने आरोपियों के फोन कब्जे में लेने के बाद चेक किए तो सामने आया कि व्हाट्सएप कॉल और मैसेज में ही वारदात से पहले और बाद बातचीत की गई। यशपाल और राजन के बीच व्हाट्सएप कॉलिंग कई बार हुई थी। फोन से मैसेज तो डिलीट कर दिए, लेकिन कॉल की डिटेल नहीं हटा पाए थे। अब पुलिस और जानकारी जुटाने के लिए मोबाइल फोन एफएसएल जांच के लिए भेजेगी।
शेखर राजन को घटनास्थल ले गया और फिर वापस लाया
एसओ अंकुर शर्मा ने बताया कि आरोपी शेखर मोटरसाइकिल पर आरोपी राजन को पहले नहर पटरी पर लेकर गया था। वह कार में सवार हो गया तो पास में ही खड़ा रहा। तब हत्या की वारदात को अंजाम दे दिया तो फिर उसे बाइक पर घटनास्थल लेकर आया। इसके बाद दोनों यहां से फरार हो गए।
खुद बनना चाहता था मालिक, बहनों को हिस्सा नहीं देना चाहता था
आरोपी यशपाल की दो बहनें दामिनी सिंह और काजल की शादी हो रखी है। दोनों नोएडा और गुरुग्राम में रहती हैं। एक सरकारी शिक्षक तो दूसरी बैंक में अधिकारी के तौर पर तैनात है। आरोपी ये मानता था कि पिता के जीवित रहते हुए बहनों को भी संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। इसलिए उसने पिता को रास्ते से हटाकर खुद ही मालिक बनने की ठान ली। करोड़ों की संपत्ति पर खुद ही काबिज होकर बहनों को भी हिस्सा नहीं देना चाहता था। मगर सोचने वाली बात ये है कि जब अकेला बेटा है तो संपति का मालिक तो वही होगा। बहनें अपना करियर बनाने के साथ ही शादी कर घर परिवार बसा चुकी थी। मगर लालच और गलत संगत ने उसे ऐसा बना दिया कि उसने ये तक नहीं सोचा कि वह कदम उठा रहा है।
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क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक
कई बार बेटा खुद इतना सक्षम नहीं होता कि ऐसी प्लानिंग कर सके। वह दोस्तों की गलत संगति से प्रभावित होता है। इसे ग्रुप माइंडसेट क्राइम कहा जाता है। जहां दोस्त अपराध को आसान, तेज और लाभदायक बताकर व्यक्ति को ब्रेनवॉश कर देते हैं। अंततः अपराध उसका अपना फैसला बन जाता है। जब किसी बेटे के भीतर संपत्ति पाने की लालसा, पारिवारिक संस्कारों और भावनाओं पर हावी होने लगती है, तो वह अपने ही पिता को प्रतिस्पर्धी मानने लगता है। इस मानसिक स्थिति को पैरासाइटिक ग्रीड सिंड्रोम कहा जाता है, जिसमें व्यक्ति अपने ही परिवार को दुश्मन की तरह देखने लगता है। - पूजा ठाकुर, मनोवैज्ञानिक