हरिद्वार में दशक भर की प्रतीक्षा के बाद संयासी अखाड़ों ने गंगा को मानव शव प्रदूषण से बचाने की मुहिम शुरू कर दी है। चंडीघाट पर नीलधारा किनारे प्रस्तावित समाधि स्थल पर पहली बार दो संत समाधिस्थ हुए।
दसनामी संयासी आनंद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी गहनानंद सरस्वती ब्रह्मलीन हो गए थे। नियमों के अनुसार उन्हें गंगा की नीलधारा में जल समाधि दी जानी थी, लेकिन संयासी अखाड़ों ने तय किया कि आचार्य महामंडलेश्वर को भू समाधि दी जाएगी।
कोरोना के कारण सात संत उनके पार्थिव देह को चंडीघाट के समीप भू समाधि स्थल पर लेकर पहुंचे। यहां उन्हें विधान के अनुसार भू समाधि प्रदान की गई। वहीं शनिवार को जूना अखाड़े के संयासी महंत नेपाली बाबा का भी देहावसान हो गया था।
उन्हें भी उसी स्थल पर ले जाकर भू समाधि प्रदान की गई। संत समाज गंगा में जल समाधि रोककर गंगा को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए वर्ष 2009 से लगातार मांग करता आ रहा है। ऐसी ही मांग अन्य कुंभनगरों उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में भी पारित है।
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हरिद्वार में दशक भर की प्रतीक्षा के बाद संयासी अखाड़ों ने गंगा को मानव शव प्रदूषण से बचाने की मुहिम शुरू कर दी है। चंडीघाट पर नीलधारा किनारे प्रस्तावित समाधि स्थल पर पहली बार दो संत समाधिस्थ हुए।
दसनामी संयासी आनंद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी गहनानंद सरस्वती ब्रह्मलीन हो गए थे। नियमों के अनुसार उन्हें गंगा की नीलधारा में जल समाधि दी जानी थी, लेकिन संयासी अखाड़ों ने तय किया कि आचार्य महामंडलेश्वर को भू समाधि दी जाएगी।
कोरोना के कारण सात संत उनके पार्थिव देह को चंडीघाट के समीप भू समाधि स्थल पर लेकर पहुंचे। यहां उन्हें विधान के अनुसार भू समाधि प्रदान की गई। वहीं शनिवार को जूना अखाड़े के संयासी महंत नेपाली बाबा का भी देहावसान हो गया था।
उन्हें भी उसी स्थल पर ले जाकर भू समाधि प्रदान की गई। संत समाज गंगा में जल समाधि रोककर गंगा को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए वर्ष 2009 से लगातार मांग करता आ रहा है। ऐसी ही मांग अन्य कुंभनगरों उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में भी पारित है।