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Gurugram News: 57 करोड़ से मेडिकल कॉलेज में बनेगा मदर-चाइल्ड केयर हायर सेंटर
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- जिले में 57 हजार डिलीवरी होती हैं सालाना, अधिकांश महिलाएं एनीमिया की शिकार
- निर्माण एजेंसी को काम अलॉट, जच्चा-बच्चा मृत्यु दर में आएगी कमी।
शेरसिंह डागर नूंह।
शहीद हसन खां मेवाती मेडिकल कॉलेज से गर्भवती महिलाओं व नवजात शिशुओं के लिए अच्छी खबर है। मेडिकल कॉलेज में प्रसव व जज्जा-बच्चा की देखभाल के लिए अलग से सौ बेड का सात मंजिला अस्पताल बनाया जा रहा है। संबंधित एजेंसी को निर्माण कार्य अलॉट कर दिया गया है। इस अस्पताल में डिलीवरी व नवजात के लिए आधुनिक सुविधाएं होंगी। महिलाओं के गर्भधारण से लेकर बच्चे को जन्म देने तक सभी देखरेख व चेकअप यही होंगे। इससे जच्चा-बच्चा मृत्यु दर में कमी आएगी और मां-बच्चे स्वस्थ्य व खुशहाल होंगे। परिजन भी प्राइवेट अस्पतालों की दौड़ व खर्चे से बचेंगे।
बता दें, कि मेवात में महिलाओं का स्वास्थ्य की स्थिति ठीक नहीं है, यहां अधिकांश महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं, इसके पीछे फैमिली साइज बड़ा होने के साथ-साथ बेहतर खानपान व जागरूकता की कमी है, स्वास्थ्य विभाग सुधार की लगातार कोशिश कर रहा है, लेकिन अभी भी यहां की स्थिति अन्य जिलों से पीछे है।
इन तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए मेडिकल कॉलेज में 57 करोड़ रुपये की लागत से 100 बेड का अलग से अस्पताल बनाया जा रहा है। इनमें स्पेशल डाक्टर, मशीनों के अलावा तमाम सुविधाएं होंगी। पुलिस हाउसिंग कॉरपोरशन को यह काम अलॉट किया गया है, काम शुरू करने के लिए एजेंसी ने पेड़ों की कटाई-छटाई शुरू कर दी है।
नूंह स्थिति पर एक नजर :
पूरे प्रदेश के अंदर नूंह जिले में महिलाओं की डिलीवरी सबसे अधिक है, यहां पूरे जिले में सालाना 57 हजार डिलीवरी होती हैं। देश में फैमिली साइज का अनुपात जहां 2.1 है वहीं नूंह जिले में शैक्षणिक स्तर कम होने के कारण यह अनुपात बढ़कर 4.8 हो जाता है। जिसके कारण अधिकांश महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं। करीब 57 हजार की डिलीवरी के दौरान 52 से 53 महिलाएं मर जाती हैं तो एक हजार में से औसतन 40 नवजात शिशु भी मर जाते हैं। हालांकि एनीमिया की शिकार महिलाओं में खून की कमी को पूरा करने व डिलीवरी आसानी से होने के लिए एफसीएम नाम का एक ही टीका लगाया जाता है, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण सभी महिलाएं उसे भी नहीं लगवा पाती हैं।
बिगड़े हुए केस पहुंचते हैं मेडिकल काॅलेज
जिले में मेडिकल कॉलेज सहित 24 जगहों पर डिलीवरी के लिए लेबर रूम की सुविधा है। मेडिकल कॉलेज में अधिकांश डिलीवरी के ऐसे मामले आते हैं जो बिगड़ जाते हैं, ऐसे में यहां इस काम का दबाव अधिक होने के साथ-साथ तमाम आधुनिक सुविधाओं की जरूरत है। केवल मेडिकल कॉलेज में ही सालाना दो से ढाई हजार डिलीवरी होने का औसत है।
नूंह जिले में मदर-चाइल्ड केयर सेंटर की जरूरत थी, मेडिकल कॉलेज में इसे बनाया जा रहा है। यह अस्पताल सौ बैड का सात मंजिला होगा। इस पर करीब 57 करोड़ खर्च होंगे। निर्माण एजेंसी को काम अलॉट कर दिया गया है। नए सेंटर में जच्चा-बच्चा के लिए सभी सुविधाएं होंगी। जो डिलीवरी अब हो रही हैं, ये भी चलती रहेंगी। इससे नूंह सहित आसपास के जिलों को भी बड़ा फायदा होगा।
-डा. मुकेश कुमार, निदेशक शहीद हसन खां मेवाती मेडिकल कॉलेज
जिले में महिलाओं की डिलीवरी के लिए अलग-अलग 24 लेबर रूम हैं, जिले में मेडिकल कॉलेज सहित करीब 57 हजार डिलीवरी सालाना होती हैं। जागरूकता की कमी के कारण न केवल महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं बल्कि फैमिली साइज बड़ा है। कई बार डिलीवरी में दिक्कतें आती हैं, ऐसे में हायर सेंटर मेडिकल कॉलेज में बनता है तो इससे बड़ी राहत मिलेगी। - डाॅ. विशाल डिप्टी सिविल सर्जन, नूंह
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- निर्माण एजेंसी को काम अलॉट, जच्चा-बच्चा मृत्यु दर में आएगी कमी।
शेरसिंह डागर नूंह।
शहीद हसन खां मेवाती मेडिकल कॉलेज से गर्भवती महिलाओं व नवजात शिशुओं के लिए अच्छी खबर है। मेडिकल कॉलेज में प्रसव व जज्जा-बच्चा की देखभाल के लिए अलग से सौ बेड का सात मंजिला अस्पताल बनाया जा रहा है। संबंधित एजेंसी को निर्माण कार्य अलॉट कर दिया गया है। इस अस्पताल में डिलीवरी व नवजात के लिए आधुनिक सुविधाएं होंगी। महिलाओं के गर्भधारण से लेकर बच्चे को जन्म देने तक सभी देखरेख व चेकअप यही होंगे। इससे जच्चा-बच्चा मृत्यु दर में कमी आएगी और मां-बच्चे स्वस्थ्य व खुशहाल होंगे। परिजन भी प्राइवेट अस्पतालों की दौड़ व खर्चे से बचेंगे।
बता दें, कि मेवात में महिलाओं का स्वास्थ्य की स्थिति ठीक नहीं है, यहां अधिकांश महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं, इसके पीछे फैमिली साइज बड़ा होने के साथ-साथ बेहतर खानपान व जागरूकता की कमी है, स्वास्थ्य विभाग सुधार की लगातार कोशिश कर रहा है, लेकिन अभी भी यहां की स्थिति अन्य जिलों से पीछे है।
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इन तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए मेडिकल कॉलेज में 57 करोड़ रुपये की लागत से 100 बेड का अलग से अस्पताल बनाया जा रहा है। इनमें स्पेशल डाक्टर, मशीनों के अलावा तमाम सुविधाएं होंगी। पुलिस हाउसिंग कॉरपोरशन को यह काम अलॉट किया गया है, काम शुरू करने के लिए एजेंसी ने पेड़ों की कटाई-छटाई शुरू कर दी है।
नूंह स्थिति पर एक नजर :
पूरे प्रदेश के अंदर नूंह जिले में महिलाओं की डिलीवरी सबसे अधिक है, यहां पूरे जिले में सालाना 57 हजार डिलीवरी होती हैं। देश में फैमिली साइज का अनुपात जहां 2.1 है वहीं नूंह जिले में शैक्षणिक स्तर कम होने के कारण यह अनुपात बढ़कर 4.8 हो जाता है। जिसके कारण अधिकांश महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं। करीब 57 हजार की डिलीवरी के दौरान 52 से 53 महिलाएं मर जाती हैं तो एक हजार में से औसतन 40 नवजात शिशु भी मर जाते हैं। हालांकि एनीमिया की शिकार महिलाओं में खून की कमी को पूरा करने व डिलीवरी आसानी से होने के लिए एफसीएम नाम का एक ही टीका लगाया जाता है, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण सभी महिलाएं उसे भी नहीं लगवा पाती हैं।
बिगड़े हुए केस पहुंचते हैं मेडिकल काॅलेज
जिले में मेडिकल कॉलेज सहित 24 जगहों पर डिलीवरी के लिए लेबर रूम की सुविधा है। मेडिकल कॉलेज में अधिकांश डिलीवरी के ऐसे मामले आते हैं जो बिगड़ जाते हैं, ऐसे में यहां इस काम का दबाव अधिक होने के साथ-साथ तमाम आधुनिक सुविधाओं की जरूरत है। केवल मेडिकल कॉलेज में ही सालाना दो से ढाई हजार डिलीवरी होने का औसत है।
नूंह जिले में मदर-चाइल्ड केयर सेंटर की जरूरत थी, मेडिकल कॉलेज में इसे बनाया जा रहा है। यह अस्पताल सौ बैड का सात मंजिला होगा। इस पर करीब 57 करोड़ खर्च होंगे। निर्माण एजेंसी को काम अलॉट कर दिया गया है। नए सेंटर में जच्चा-बच्चा के लिए सभी सुविधाएं होंगी। जो डिलीवरी अब हो रही हैं, ये भी चलती रहेंगी। इससे नूंह सहित आसपास के जिलों को भी बड़ा फायदा होगा।
-डा. मुकेश कुमार, निदेशक शहीद हसन खां मेवाती मेडिकल कॉलेज
जिले में महिलाओं की डिलीवरी के लिए अलग-अलग 24 लेबर रूम हैं, जिले में मेडिकल कॉलेज सहित करीब 57 हजार डिलीवरी सालाना होती हैं। जागरूकता की कमी के कारण न केवल महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं बल्कि फैमिली साइज बड़ा है। कई बार डिलीवरी में दिक्कतें आती हैं, ऐसे में हायर सेंटर मेडिकल कॉलेज में बनता है तो इससे बड़ी राहत मिलेगी। - डाॅ. विशाल डिप्टी सिविल सर्जन, नूंह