चलती कार में अपहरण और मारपीट.. 109 दिन चली बहस, 28 गवाह मुकरे; फिर कैसे आठ साल बाद बरी हुए सुपरस्टार दिलीप?
Actor Dileep Acquitted in Malayalam Actress Assault Case: साल 2017 में मलयालम एक्ट्रेस के साथ अपहरण और यौन उत्पीड़न का मामले सामने आया था जिसके आरोपियों में सुपरस्टार दिलीप भी शामिल थे। अब कोर्ट ने उन्हें केस में बरी कर दिया है।
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विस्तार
'मैं फिल्म का प्रोमो शूट करने जा रही थी…तभी मेरी कार रोक ली गई। मेरा अपहरण करके छेड़छाड़ की गई। मुझे जान से मारने की धमकियां दी गई। मेरे वीडियो बनाए गए। मैं डरी हुई थी, रो रही थी...बस यही सोच रही थी कि किसी तरह जिंदा बच जाऊं।' मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की मशहूर अभिनेत्री का यह बयान जब पहली बार सामने आया, तो साउथ सिनेमा ही नहीं, पूरे देश में सनसनी फैल गई। अब इसी मामले में सुपरस्टार दिलीप को 8 दिसंबर यानी सोमवार को बरी कर दिया गया है। आखिर क्या है ये पूरा मामला, चलिए जानते हैं।
यह 17 फरवरी 2017 की रात थी। शूटिंग के सिलसिले में घर से निकली अभिनेत्री को क्या पता था कि सफर का यह रास्ता उनकी जिंदगी की सबसे डरावनी रात बन जाएगा। अभिनेत्री ने बताया कि उसकी कार में कुछ लोग जबरन घुस गए और उसका अपहरण करके घंटों तक उसके साथ असॉल्ट किया। शुरुआती जांच में जिन आरोपियों के नाम सामने आए, उन्होंने इस केस को और भी बड़ा बना दिया, क्योंकि शक की सुई मलयालम इंडस्ट्री के सुपरस्टार एक्टर दिलीप तक जा पहुंची।
घटना के तार एक्टर दिलीप से जुड़े
इस घटना के तुरंत बाद पुलिस हरकत में आई। आरोपियों की गिरफ्तारी हुई, चार्जशीट दाखिल हुई और केस ने अदालत का रुख किया। जांच एजेंसियों ने दावा किया कि यह सब एक सोची-समझी साजिश के तहत हुआ। मुख्य आरोपी पल्सर सुनी पर पूरे अपराध की साजिश और अंजाम का आरोप लगा, जबकि दिलीप पर पर्दे के पीछे से साजिश रचने का शक जताया गया। पल्सर सुनी सुपरस्टार दिलीप का ही ड्राइवर था। उसके और दिलीप के साथ मुकदमे का सामना करने वाले लोगों में मार्टिन एंटनी, मणिकंदन बी, विजेश वीपी, सलीम एच उर्फ वदिवल सलीम, प्रदीप, चार्ली थॉमस, सनीलकुमार उर्फ मेस्थिरी सनील और जी सारथ शामिल थे।
जुलाई 2017 में हुई दिलीप की गिरफ्तारी
जब जुलाई 2017 में दिलीप की गिरफ्तारी हुई, तो मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में भूचाल आ गया। दशकों से दर्शकों के चहेते रहे इस एक्टर को हथकड़ियों में देखकर उनके फैंस हैरान थे। एसोसिएशन से निलंबन हुआ, फिल्मी करियर पर ब्रेक लगा और छवि पर गहरा दाग लग गया। आरोप था कि मुख्य आरोपी सुनील ने जेल में रहते हुए एक्टर दिलीप को एक लेटर भेजा था। हालांकि, दिलीप को 3 अक्टूबर 2017 को जमानत मिल गई। दूसरी तरफ, सर्वाइवर अभिनेत्री लगातार मीडिया ट्रायल, सवालों और दबाव का सामना कर रही थीं।
आठ साल लंबा चला ट्रायल
इस केस का ट्रायल आसान नहीं था। सैकड़ों गवाह, हजारों पन्नों के दस्तावेज और वर्षों तक चली सुनवाई- अदालत की प्रक्रिया ने सभी का इम्तिहान लिया। कई गवाह अपने बयान से पलट गए, कुछ ने चुप्पी साध ली। दो स्पेशल प्रोसिक्यूटर बदले गए, बहसें लंबी चलीं और हर सुनवाई के साथ केस और जटिल होता गया।
मामले का ट्रायल 8 मार्च 2018 को शुरू हुआ था। इस दौरान कुल 261 गवाहों से पूछताछ हुई, जिनमें कई फिल्मी हस्तियां भी शामिल थीं। इसी बीच 28 गवाह जिन्होंने एक्टर के खिलाफ बयान दिया था वो अपने बयान से मुकर गए। बाकी गवाहों की जांच ही 438 दिनों तक चली। इसके अलावा जांच और ट्रायल के दौरान दो स्पेशल प्रोसिक्यूटर ने इस्तीफा दे दिया और सर्वाइवर की जज बदलने की याचिका भी खारिज कर दी गई। वहीं केस के अभियोजन पक्ष ने 833 डॉक्यूमेंट्स और सबूत के तौर पर 142 सामान पेश किए गए। जबकि बचाव पक्ष ने 221 डॉक्यूमेंट्स पेश किए।
इन वर्षों में यह मामला सिर्फ एक आपराधिक केस नहीं रहा, बल्कि इंडस्ट्री में महिला सुरक्षा, पावर डायनेमिक्स और 'मी-टू' जैसी आवाजों का प्रतीक बन गया। इसी घटना के बाद मलयालम सिनेमा में वुमन इन सिनेमा कलेक्टिव (WCC) जैसे संगठनों ने जन्म लिया, जिनका मकसद महिलाओं को सुरक्षित और समान माहौल दिलाना था।
दिलीप को राहत, बाकी दोषी
करीब आठ साल बाद, आखिरकार 8 दिसंबर 2025 यानी सोमवार को केरल के एर्नाकुलम सेशन कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। अदालत ने साफ कहा कि प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर एक्टर दिलीप के खिलाफ आरोप साबित नहीं हो पाए। कोर्ट ने दिलीप को सभी आरोपों से बरी कर दिया। उनके साथ कुछ अन्य आरोपियों को भी राहत मिली, जबकि मुख्य आरोपी पल्सर सुनी समेत छह लोगों को दोषी ठहराया गया। फैसले के बाद कोर्टरूम के बाहर भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा। एक तरफ दिलीप के समर्थकों ने इसे सच की जीत बताया, तो दूसरी ओर सवाल उठे कि क्या इतने वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद भी सर्वाइवर को पूरा न्याय मिल पाया?
'मेरी छवि को तोड़ने की साजिश थी'
कोर्ट से बाहर आते ही दिलीप ने चुप्पी तोड़ी। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ एक लंबी साजिश रची गई, जिसका मकसद उनका करियर और प्रतिष्ठा खत्म करना था। दिलीप ने बिना नाम लिए अपनी पूर्व पत्नी मंजू वारियर के बयान की ओर इशारा किया जिसमें उनके खिलाफ कॉन्सपिरेसी का जिक्र किया गया था। बिना किसी का नाम लिए उन्होंने कुछ पुलिस अधिकारियों पर भी गंभीर आरोप लगाए। दिलीप के मुताबिक, अदालत का फैसला इस बात का सबूत है कि सच्चाई आखिरकार सामने आती है, चाहे वक्त कितना भी लग जाए।
यह बयान जितना उनके समर्थकों के लिए राहत भरा था, उतना ही विवादों को हवा देने वाला भी साबित हुआ। सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई- क्या यह फैसला न्याय व्यवस्था की जीत है या सिस्टम में मौजूद खामियों का आईना?
सर्वाइवर की चुप्पी और कुछ अधूरे सवाल
इस पूरे मामले में सबसे अहम किरदार रही उस एक्ट्रेस की खामोशी भी चर्चा में रही। उन्होंने कानूनी प्रक्रिया पर भरोसा जताया, लेकिन वर्षों तक चली लड़ाई ने उनकी निजी और प्रोफेशनल जिंदगी पर गहरा असर डाला। इंडस्ट्री में काम कम हो गया, पहचान सार्वजनिक हो गई और हर पेशी के साथ पुराने जख्म हरे होते रहे। अब जब तीन आरोपियों को राहत मिली है और बाकी दोषियों की सजा का ऐलान होना बाकी है, सवाल यह है कि क्या यह कहानी यहीं खत्म हो जाती है? या यह मामला आने वाले समय में भी महिला सुरक्षा और न्याय व्यवस्था पर बहस का आधार बना रहेगा?
हेमा कमेटी का गठन
मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिला कलाकारों की सुरक्षा को लेकर उठे सवालों के बीच हेमा कमेटी का गठन एक अहम मोड़ साबित हुआ। अपहरण और यौन उत्पीड़न की इस घटना के बाद यह साफ हो गया था कि समस्या सिर्फ एक केस तक सीमित नहीं है, बल्कि इंडस्ट्री के ढांचे में ही खामियां हैं। इसी दबाव के चलते जुलाई 2017 में केरल सरकार ने वरिष्ठ जज के हेमा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया।
इस कमेटी का उद्देश्य मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाली महिलाओं- खासतौर पर अभिनेत्री, जूनियर आर्टिस्ट, तकनीकी स्टाफ और असंगठित क्षेत्र की महिलाओं की वर्किंग कंडीशन, सेफ्टी, यौन उत्पीड़न और पावर एब्यूज से जुड़े मुद्दों की जांच करना था। कमेटी ने करीब दो साल तक इंडस्ट्री के अलग-अलग वर्गों से बातचीत की, गोपनीय बयान दर्ज किए और डॉक्यूमेंट्स इकट्ठा किए।
कमेटी की रिपोर्ट में क्या-कुछ सामने आया
कमेटी के सामने दर्ज हुए बयानों में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। महिला कलाकारों ने बताया कि शूटिंग लोकेशन पर सुरक्षित बाथरूम तक की व्यवस्था नहीं होती, देर रात काम के दौरान ट्रांसपोर्ट की कोई गारंटी नहीं होती और कई बार ‘काम दिलाने’ के नाम पर मानसिक व शारीरिक शोषण किया जाता है। सबसे गंभीर आरोप यह थे कि शिकायत करने पर महिलाओं को काम से बाहर कर दिया जाता है या इंडस्ट्री में मुश्किल मानकर उनकी छवि खराब कर दी जाती है।
हालांकि हेमा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 2019 में सरकार को सौंप दी थी, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। रिपोर्ट को लेकर लगातार सवाल उठते रहे कि आखिर इसमें क्या लिखा है और इसे क्यों दबाया जा रहा है। कई महिला संगठनों और एक्टिविस्ट्स ने इसे सार्वजनिक करने की मांग की, लेकिन सरकार की ओर से लंबे समय तक चुप्पी बनी रही।
30 से ज्यादा महिला कलाकारों ने साझा किए अनुभव
आखिरकार अगस्त 2024 में हेमा कमेटी की रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष सामने आए। रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया कि मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में यौन उत्पीड़न एक सिस्टमैटिक प्रॉब्लम है, न कि अपवाद। रिपोर्ट के मुताबिक, कम से कम 30 से ज्यादा महिला कलाकारों और टेक्नीशियनों ने सीधे तौर पर अपने बुरे अनुभव साझा किए थे। इनमें मौखिक उत्पीड़न, अनुचित स्पर्श, धमकियां और प्रोफेशनल बदले की कार्रवाई जैसी बातें शामिल थीं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इंडस्ट्री में महिलाओं के लिए कोई स्वतंत्र और प्रभावी ग्रिवांस रिड्रेसल सिस्टम नहीं है। ज्यादातर शिकायतें या तो दबा दी जाती हैं या समझौते के नाम पर खत्म कर दी जाती हैं। कमेटी ने सिफारिश की कि फिल्म इंडस्ट्री में इंटरनल कम्पलेन कमेटी (ICC) को अनिवार्य किया जाए और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर स्पष्ट गाइडलाइंस बनाई जाएं।