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Raksha Bandhan Movie Review: कहां चूके और कहां चमके ‘रक्षा बंधन’ में अक्षय कुमार, पढ़ें फिल्म का पूरा रिव्यू

Pankaj Shukla पंकज शुक्ल
Updated Fri, 12 Aug 2022 12:10 AM IST
सार

फिल्म ‘रक्षा बंधन’ अगर बॉक्स ऑफिस पर कामयाब हुई तो ये हिंदी सिनेमा के लिए एक शुभ संकेत इस बात के लिए हो सकती है कि सिनेमा खासतौर से हिंदी सिनेमा, अब भी संवेदनाओं, अनुभूतियों और रिश्तों से खुराक पा सकता है।

Raksha Bandhan Movie Review By Pankaj Shukla Akshay Kumar Anand L Rai Bhumi Pednekar Sadia Khateeb Himesh
रक्षाबंधन मूवी रिव्यू - फोटो : अमर उजाला, मुंबई
Movie Review
रक्षा बंधन
कलाकार
अक्षय कुमार , भूमि पेडनेकर , सादिया खतीब , सहेजमीन कौर , स्मृति श्रीकांत और दीपिका खन्ना आदि
लेखक
हिमांशु शर्मा और कनिका ढिल्लों
निर्देशक
आनंद एल राय
निर्माता
जी स्टूडियोज , कलर येलो प्रोडक्शंस और केप ऑफ गुड फिल्म्स
रिलीज
11 अगस्त 2022
रेटिंग
3/5

विस्तार
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‘भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना’, ‘बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बांधा है’, ‘अबकी बरस भेज भैया को बाबुल’ या फिर ‘फूलों का तारों का सबका कहना है’, ये कुछ ऐसे गाने हैं जो रक्षाबंधन का त्योहार आते ही अब भी रेडियो पर बजने लगते हैं। भाई बहन के प्यार पर बनी फिल्मों का हिंदी सिनेमा में लंबा सिलसिला रहा है लेकिन फिर हिंदी सिनेमा मुंबई की अंधेरी उपनगरी में आकर कहीं भटक गया। रिश्तों और परंपराओं को सहेजने वाले सिनेमा की नई रोशनी अब आनंद एल राय की फिल्म ‘रक्षा बंधन’ से उभरती दिख रही है। अक्षय कुमार इसे अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानते हैं। हिमेश रेशमिया ने भाई बहन के प्यार को लेकर अच्छी संगत भी बिठाई है और 54 साल के हो चुके अक्षय कुमार को भी समझ आने लगा है कि एक्शन हीरो की उनकी इमेज पर विद्युत जामवाल, टाइगर श्रॉफ और विजय देवरकोंडा जैसे नए नवेलों का साया पड़ चुका है। अक्षय कुमार के लिए हिंदी सिनेमा में अब सुरक्षित जगह वैसी ही फिल्में हो सकती हैं, जैसी कभी जीतेंद्र ने अपने करियर की दूसरी इनिंग्स में ‘जुदाई’, ‘मांग भरो सजना’ और ‘आशा’ जैसी फिल्में करके अपने लिए बनाई थी।

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रक्षा बंधन - फोटो : अमर उजाला, मुंबई
अक्षय कुमार की नई कोशिश
मल्टीस्टारर फिल्म ‘सूर्यवंशी’ को छोड़ दें तो अक्षय कुमार के लिए उनकी बीती पांच फिल्में ‘लक्ष्मी’, ‘बेलबॉटम’, ‘अतरंगी रे’, ‘बच्चन पांडे’ और ‘सम्राट पृथ्वीराज’ किसी दुस्वप्न सी साबित हुई हैं। फिल्में वह धुंआधार करते हैं। इनकम टैक्स भी सबसे ज्यादा भरते हैं। लेकिन, जिन फिल्मों से उनको ये इनकम होती रही है, उनका हश्र बॉक्स ऑफिस पर अच्छा नहीं रहा है। उनकी एक और फिल्म ‘मिशन सिंड्रेला’ ओटीटी पर रिलीज होनी है और इसकी रिलीज डेट तक अभी तय नहीं हो पाई है। ऐसे में फिल्म ‘रक्षा बंधन’ अक्षय कुमार के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। सफेद होती दाढ़ी पर परफेक्ट काली मूंछों वाले अक्षय कुमार को देख ये समझ आता है कि उनकी रोमांटिक हीरो वाली फिल्मों का दौर जा चुका है। लार्जर दैन लाइफ वाले किरदार भी उन पर अब वही फबेंगे जिनमें वे अपनी उम्र के हिसाब से काम करें। तारीफ आनंद एल राय की करनी होगी कि उन्होंने प्लेबॉय की इमेज रखन वाले अक्षय जैसे एक हीरो को चार बहनों के बड़े भाई का किरदार करने के लिए मनाने में कामयाबी पाई।

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रक्षा बंधन - फोटो : अमर उजाला, मुंबई
रिश्ते नातों की वापसी का शुभ संकेत
फिल्म ‘रक्षा बंधन’ अगर बॉक्स ऑफिस पर कामयाब हुई तो ये हिंदी सिनेमा के लिए एक शुभ संकेत इस बात के लिए हो सकती है कि सिनेमा खासतौर से हिंदी सिनेमा, अब भी संवेदनाओं, अनुभूतियों और रिश्तों से खुराक पा सकता है। दक्षिण भारतीय सिनेमा की नकल करने के लिए व्याकुल हिंदी सिनेमा के फिल्मकारों को उत्तर भारत के रस में पगी ऐसी ही कहानियों की जरूरत है जो हिंदी भाषी राज्यों के दर्शकों को अपनी सी लग सकें। बनावटीपन इस क्षेत्र के दर्शकों को भाता नहीं है। नकल वह तुरंत पकड़ लेते हैं और फिल्म देखते समय रोना, सुबकना, ठहाके मारकर हंसना और अनहोनी की आशंका पर सिहर जाना अब भी उनके स्वभाव में शामिल है। इस लिहाज से फिल्म ‘रक्षा बंधन’ घिसी पिटी और बेसिर पैर की कहानियों के बीच एक ताजा बयार सी मालूम होती है। कहानी बहुत शानदार हो ऐसा भी नहीं है लेकिन आनंद एल राय ने भाई बहन के रिश्तों के बीच एक बुनी एक प्रेम कहानी को बहुत ज्यादा प्रयोगों से बचते हुए साधारण तरीके से कहने में कामयाबी पा ली है।

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रक्षा बंधन - फोटो : अमर उजाला, मुंबई
कुंवारी बहनों का कुंवारा भाई
अक्षय कुमार यहां लाला केदारनाथ के रोल में हैं। मोहल्ले के बच्चे उन्हें फिल्म ‘मदर इंडिया’ का चर्चित संवाद ‘लाला, मेरी मां के कंगन वापस कर दे’ कहकर चिढ़ाते हैं। इस ट्रैक को आगे भी बढ़ाया जा सकता था। लाला की पुश्तैनी चाट की दुकान है जिसके बारे में मशहूर है कि यहां के गोल गप्पे खाने से गर्भवती के बेटा ही पैदा होगा। ये भारतीय समाज में बेटों के प्रति आकर्षण को लेकर चली आ रही भ्रांतियों पर एक करारी चोट है। लाल बार बार कहता है कि 25 रुपये के गोलगप्पे खाकर ऐसा होता नहीं है लेकिन ये जो पब्लिक है, वो मानती नहीं है। पुरखों ने बीती सदी में कोई कर्ज ले रखा है बैंक से, जिसकी किस्त वह आज तक भर रहा है। और, बैंक वाला उसे कर्ज से मुक्ति का एक ही रास्ता बताता है कि कहीं भाग जाओ। नीरव मोदी का नाम भी इस क्षेपक कथा में आता है। लेकिन, असल दर्द कहानी का ये है कि लाला ने अपनी मरती मां को बिना बहनों की शादी किए अपनी शादी ना करने का वचन दे रखा है और उसे निभाने के चक्कर में मोहल्ले में ही रहने वाली उसकी प्रेमिका सपना के सोमवार के सारे व्रत निष्फल होते जा रहे हैं।

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अक्षय कुमार-आनंद एल राय - फोटो : अमर उजाला, मुंबई
पटकथा में गच्चा खा गई फिल्म
थोड़े से फासले में सिमटी फिल्म ‘रक्षा बंधन’ की पटकथा में तमाम झोल भी हैं। कहानी चूंकि दहेज को लेकर परेशान एक भाई की है तो दुकान गिरवी रखने से लेकर किडनी बेचने तक के सारे पैंतरे हैं लेकिन किडनी बेचकर घर लौटा भाई रक्षाबंधन के दिन अपनी बहन की खबर पाकर जिस तरह दिल्ली की सड़कों पर भागता है और उसकी कमर से बहते खून से रंगती पैंट की तरफ जिस तरह किसी का ध्यान ही नहीं जाता, वह गौर करने लायक है। दूसरी गड़बड़ी फिल्म की इंटरवल के बाद एकदम से तेज हुई रफ्तार है। पहली बहन को दहेज देकर विदा करने के बाद लाला को समझ आता है कि असल काम जो उसको करना था वह था बहनों को पढ़ा लिखाकर इस काबिल बनाना कि वे अपनी मर्जी का जीवनसाथी खुद चुन पाएं। यही इस फिल्म का असल संदेश भी होना चाहिए था। लेकिन फिल्म को जल्दबाजी में समेटने के चक्कर में ये महत्वपूर्ण बात गौण हो जाती है। दहेज समस्या का असली समाधान बेटियों और बहनों के आत्मनिर्भर होने और उन्हें उनकी पसंद का जीवनसाथी चुनने के लिए मिली छूट में ही है।

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अक्षय कुमार-भूमि पेडनेकर - फोटो : अमर उजाला, मुंबई

अक्षय और भूमि की जोड़ी का शगुन

अक्षय कुमार सिनेमा के सबसे बड़े ब्रांड रहे हैं। उनको हिंदी सिनेमा के दर्शक पसंद भी काफी करते हैं। इस पसंद को बरकरार रखने के लिए अब गेंद अक्षय कुमार के पाले में है। भोंडी कॉमेडी वाली उनकी फिल्मों से लोग ऊब चुके हैं। एक्शन वह जब तक लियाम नीसन जैसा नहीं करते तब तक उनके किरदारों पर लोगों का अब यकीन होना मुश्किल है। बनावटीपन से हटकर जीवन मूल्यों से जुड़ी फिल्में उन पर फबती हैं। फिल्म ‘रक्षा बंधन’ की कामयाबी उनके और आनंद एल राय के बीच बनी जुगलबंदी को मजबूत भी कर सकती है और जैसा कि आनंद एल राय के सिनेमा का स्वाद रहा है, वह भारतीय रीति रिवाजों में रची बसी कुछ और फिल्में इससे उत्साहित होकर सोच सकते हैं। कहीं कहीं अक्षय कुमार की ओवरएक्टिंग को छोड़ दें तो अरसे बाद उन्होंने अपने अभिनय से इस फिल्म में प्रभावित किया है। उनकी जोड़ीदार बनी भूमि पेडनेकर को भी शादी की उम्र गुजरते जाने की चिंता करते पिता की बेटी और अपनी बहनों के प्रेम में डूबे एक शख्स की प्रेमिका के रूप में दमदार किरदार मिला है जिसे उन्होंने निभाया भी पूरी शिद्दत से है। उनको एक कामकाजी महिला के तौर पर दिखाया जाता तो उनका किरदार और मजबूत हो सकता था।

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रक्षा बंधन - फोटो : अमर उजाला, मुंबई
हाशिये के सितारों की दमदार अदाकारी
फिल्म ‘रक्षा बंधन’ को इसके सहायक कलाकारों से भी काफी मजबूती मिली है। हिंदी सिनेमा में हाशिये पर होते जा रहे चरित्र कलाकारों का समय धीरे धीरे लौट रहा है। फिल्मकारों को फिर से ये समझ आने लगा है कि फिल्म कहानी से चलती है, इसके हीरो हीरोइन से नहीं और कहानी को जमाने में सबसे बड़ी भूमिका इन चरित्र कलाकारों की ही होती है। तो यहां सीमा पाहवा शादी कराने वाली एजेंसी की संचालक के रूप में अपने रुआब के साथ मौजूद हैं। साहिल मेहता फिल्म के लिए जहां जरूरी होता है, वहां हल्का फुल्का हास्य ले आते हैं। इस कलाकार पर नजर रखी जानी जरूरी है। सीरीज दर सीरीज साहिल ने अपने लिए खास स्थान बना लिया है। और, सपना के पिता की भूमिका में नीरज सूद का भी काम शानदार है। अपनी बेटी के प्रेमी से हमेशा छत्तीस का आंकड़ा लिए रहने वाला पिता जब अपनी बेटी को ऐन फेरों के वक्त शादी तोड़ देने के लिए कहता है तो उनका किरदार और दमदार तरीके से निखरकर सामने आता है। लाला की बहनें बनीं सादिया खतीब, सहेजमीन कौर, स्मृति श्रीकांत, दीपिका खन्ना में सादिया खतीब ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया।

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रक्षा बंधन - फोटो : अमर उजाला, मुंबई
के यू मोहनन की शानदार सिनेमैटोग्राफी
तकनीकी रूप से भी फिल्म ‘रक्षाबंधन’ औसत से बेहतर फिल्म बन पड़ी है। गीतकार इरशाद कामिल की संगत इस बार हिमेश रेशमिया के साथ बैठी है। कुछ अपनी जानी पहचानी और कुछ नई सी लगती धुनें बनाकर हिमेश ने मुख्यधारा में वापसी की बेहतर कोशिश इस बार की है। अरिजीत सिंह और श्रेया घोषाल का गाया गाना ‘धागों से बांधा’ फिल्म का सबसे अच्छा गाना बन पड़ा है। के यू मोहनन ने दिल्ली के चांदनी चौक की सरगर्मी को अच्छे से कैमरे में कैद किया है, हालांकि फिल्म की शूटिंग अधिकतर इसके लिए बने सेट पर हुई है फिर भी उनके कैमरे की प्लेसिंग और मूवमेंट से इसके सेट होने की तरफ ध्यान कम ही जाता है। और, इसके लिए फिल्म की कला निर्देशन टीम भी तारीफ की हकदार है।

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रक्षा बंधन - फोटो : अमर उजाला, मुंबई
देखें कि न देखें

रक्षा बंधन की छुट्टी से लेकर रविवार तक के विस्तारित सप्ताहांत में इस बार दर्शकों के लिए फिल्म ‘रक्षा बंधन’ और फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ के अच्छे विकल्प मौजूद हैं। ओटीटी पर भी खास हलचल इस हफ्ते है नहीं तो ये दोनों फिल्में दर्शक इस सप्ताहांत बारी बारी से देख सकते हैं।

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