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मुनाफाखोरी का खेलः खराब दाल में मिलाते हैं खेसारी, केमिकल से रंगकर बनाते हैं चमकदार- ऐसे करें पहचान

अमर उजाला नेटवर्क, गोरखपुर Published by: रोहित सिंह Updated Wed, 12 Nov 2025 03:17 PM IST
सार

दरअसल, खेसारी दाल का रंग और स्वरूप अरहर से मिलता है। ऐसे में धंधेबाज उसे अरहर दाल के साथ आसानी से खपा देते हैं। अरहर दाल जहां थोक में 90 से 100 रुपये है वहीं खेसारी 35 से 40 रुपये किलो के भाव मिल जाती है। खराब क्वालिटी वाली अरहर दाल की कीमत थोक भाव में 55 से 60 रुपये है। ऐसे मिलावट से धंधेबाजों को मोटा मुनाफा होता है।

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In Gorakhpur, khesari dal is being adulterated. They adulterate gram by coloring it.
मिलावट दाल( सांकेतिक फोटो) - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
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खाने में दाल प्रोटीन का बड़ा स्रोत है लेकिन ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में धंधेबाजों ने इसे भी नहीं छोड़ा है। खराब क्वालिटी की अरहर दाल को रंगते हैं और उसमें बिहार से मंगाई खेसारी दाल मिला देते हैं। खेसारी के अलावा दाल को पीले रंग (टाट्राजीन) की पॉलिश से चमकाया भी जा रहा है। एक किलो दाल तैयार करने में 30 से 40 रुपये का मुनाफा कमाते हैं। इस तरह रोस्टेड चने में भी मिलावट धड़ल्ले से की जा रही है।
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खराब चनों को भी केमिकल वाले रंग से रंगकर मसाला मिलाकर तैयार करते हैं। इस मिलावट को पहचान पाना आसान नहीं है। चिकित्सकों का कहना है कि लगातार मिलावटी दाल और चना खाने से आंत और लिवर पर तो असर पड़ेगा ही, लकवा और गठिया से जुड़ीं बीमारियां हो सकती हैं।
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सूत्रों के मुताबिक, मिलावट का यह खेल छोटे बाजारों में खूब हो रहा है। जिले में प्रतिदिन लगभग 600 टन दाल की खपत है। इसमें सबसे ज्यादा अरहर दाल की खपत करीब 300 टन है। यहां से ही आसपास के जिलों में भी दाल भेजी जाती है। यह दाल मध्य प्रदेश, नागपुर और छत्तीसगढ़ से मंगाई जाती है। वहीं खराब गुणवत्ता वाली अरहर दाल मध्य प्रदेश के कटनी से मंगा रहे हैं। इसी तरह खेसारी दाल बिहार से आती है।

दरअसल, खेसारी दाल का रंग और स्वरूप अरहर से मिलता है। ऐसे में धंधेबाज उसे अरहर दाल के साथ आसानी से खपा देते हैं। अरहर दाल जहां थोक में 90 से 100 रुपये है वहीं खेसारी 35 से 40 रुपये किलो के भाव मिल जाती है। खराब क्वालिटी वाली अरहर दाल की कीमत थोक भाव में 55 से 60 रुपये है। ऐसे मिलावट से धंधेबाजों को मोटा मुनाफा होता है।
 

दाल के थोक व्यापारी विजय अग्रवाल का कहना है कि जिले में अरहर दाल की खपत 300 टन से ज्यादा है। व्यापारी खुद चाहता है कि मिलावट करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो ताकि हमारी साख बनी रहे। अब तहसील स्तर पर मंडियां हैं तो वहां भी जांच होनी चाहिए।थोक व्यापारी संजय सिंघानिया ने कहा कि मिलावट करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे लोग सही कारोबार करने वालों को भी बदनाम कर रहे हैं। जब त्योहार आता है तभी जांच होती है। यह जांच हमेशा चलनी चाहिए।

किडनी और लिवर को पहुंचाएगा नुकसान
अरहर दाल में कृत्रिम रंग और रसायनों का इस्तेमाल शरीर के लिए बेहद हानिकारक है। लंबे समय तक ऐसी दाल का सेवन करने से किडनी और लिवर पर बुरा असर पड़ता है। पहले पेट में हल्का दर्द होगा और लगातार मिलावटी सामान खाने से यह दर्द बढ़ जाएगा। आंतों में सूजन हो जाएगा: डॉ राजेश कुमार, फिजिशियन
 

अरहर दाल को चमकदार बनाने के लिए रंगने और खेसारी मिलाकर बेचने की शिकायत मिलने पर सितंबर में छापा मारा गया। तीन जगह खेसारी दाल पकड़ी गई। अन्य जगह रंगी दाल पकड़ी गई। जहां की रिपोर्ट आ गई है, उन दुकानदारों के खिलाफ विधिक कार्रवाई शुरू कर दी गई है।

इसके अलावा जून में लिए गए सैंपल भी फेल मिले हैं। लोगों को भी सलाह दी गई है कि दाल खरीदते समय यह चेक कर लें कि उसे रंगा तो नहीं गया। अगर कोई आशंका है तो शिकायत करें। शिकायतकर्ता का नाम गोपनीय रखते हुए जांच कर कार्रवाई होगी: डॉ. सुधीर कुमार सिंह, सहायक आयुक्त, खाद्य
 

मटर दाल के नमूने भी हुए थे फेल
बीते 19 मई को खाद्य सुरक्षा अधिकारी नरेंद्र कुमार के नेतृत्व में खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग की टीम ने महेवा मंडी स्थित थोक विक्रेता साईं जी ट्रेडर्स और पिपराइच के खुदरा विक्रेता अमरनाथ गुप्ता के यहां से मटर दाल के नमूने संग्रहित किए थे। यह दाल मेसर्स वीके पल्स, हमीरपुर की ओर से निर्मित पाई गई थी। नमूने को राज्य प्रयोगशाला लखनऊ में जांच के लिए भेजा गया था। इसकी रिपोर्ट खाद्य सुरक्षा मानकों के विपरीत पाई गई है।

ऐसे करें पहचान
खेसारी दाल के दाने प्रायः चपटे व चौकोर होते हैं।

पानी में डालने पर इनका रंग धूसर/सफेद दिखता है।
स्वाद में हल्की कड़वाहट व कसैलापन होता है।
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