बॉक्सिंग में राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीतने वाले 18 वर्षीय मोहम्मद सफीउल्लाह खेलने से पहले फास्टफूड की दुकान चलाते थे। उनका कहना है कि पिता की आमदनी इतनी नहीं थी कि घर का खर्च चला सकें इसलिए घर खर्च में उनका सहयोग करता था। इसी बीच सरवन गुप्ता से मुलाकात हुई तो सफीउल्लाह की जिंदगी और नजरिया बदल गया। अब वह बॉक्सिंग के खेल में गोरखपुर जिले का नाम रोशन कर रहे हैं। उनकी तमन्ना ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने की है।
सरवन गुप्ता रीजनल स्पोर्ट्स स्टेडियम में खेलते थे। सफीउल्लाह ने भी उनसे खेलने की इच्छा जाहिर की तो सरवन ने उनका भी दाखिला रीजनल स्पोर्ट्स स्टेडियम में करा दिया। इस तरह दुकान चलाने के साथ सफीउल्लाह बॉक्सिंग के कोच प्रवीण यादव की देखरेख में प्रशिक्षण लेने लगे। कोच और अपनी मेहनत व लगन से जल्द ही वह विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगे। सफीउल्लाह ने सब जूनियर वर्ग में जिला और मंडल स्तर की कई प्रतियोगिताओं में पदक जीते। फिर उनका चयन राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में हुआ।
साल 2017 में बुलंदशहर में राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में उन्होंने 40 किलो भार वर्ग में गोल्ड मेडल जीता और स्टेट चैंपियन बने। साल 2018 में प्रदेश के स्कूलों की स्तर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। इसके बाद सफीउल्लाह का चयन राष्ट्रीय प्रतियोगिता में होना था, लेकिन किसी वजह से नहीं हो पाया। साल 2018 में वाराणसी में आयोजित राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेकर सफीउल्लाह ने पदक हासिल किया। इसके बाद उनका बुलावा स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया से आ गया। फिर वह उत्तराखंड चले गए। साल 2018 में साई की ऑल इंडिया प्रतियोगिता हुई। जिसमें सफीउल्लाह फाइनल तक पहुंचे और सिल्वर मेडल हासिल किया।
इसके बाद उन्होंने राज्य स्तरीय स्कूल मुक्केबाजी प्रतियोगिता खेली, जिसमें गोल्ड मेडल जीता। फिर उनका चयन गुजरात में आयोजित नेशनल प्रतियोगिता में हुआ, जिसमें वह क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे। इसके बाद मेरठ में आयोजित सब जूनियर प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। साल 2020 में राष्ट्रीय स्कूली प्रतियोगिता में भाग लेने मिजोरम गए, जहां चोट के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा। अब वह चोट से उबर चुके हैं। कोरोना के कारण प्रतियोगिताएं आयोजित नहीं होने से वह निराश तो हैं, लेकिन मौका मिलने पर फिर से पदक जीतने के लिए उत्साहित भी हैं।
कोरोना की वजह से दो साल से बंद है हॉस्टल
मूलरूप से जिले के बैलो के रहने वाले 18 वर्षीय बॉक्सिंग खिलाड़ी सफीउल्लाह ने बताया कि साल 2014 में उनके पिता परिवार सहित शहर आ गए थे। सूर्य विहार कॉलोनी में किराये का मकान लेकर रहने लगे थे। पिता प्राइवेट नौकरी कर परिवार का पालन-पोषण करते थे, लेकिन पांच लोगों के परिवार का खर्च आय की तुलना में अधिक होने से आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता था। ऐसे में सफीउल्लाह फास्टफूड की दुकान पर काम कर घर खर्च में मदद करते थे।
सफीउल्लाह कहते हैं कि अब भी आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। परिवार में पिता गुलाम के अलावा मां अमिरुल निशा, दो बहनें सबीना और नसीमा हैं। कोरोना महामारी की वजह से दो साल से हॉस्टल बंद है। ऐसे में घर पर ही रहते हैं। कभी-कभी जरूरत पड़ती है तो काम भी करते हैं।