एक सच्चा कलाकार कला प्रदर्शन के सभी माध्यमों पर खरा उतरता है और आनंदित होता है। चुनौती रंगमंच, सिनेमा और छोटे पर्दे, तीनों विधाओं में है। सभी में पात्र को जीना पड़ता है। इसके लिए जुनून का होना जरूरी है। यह कहना है टीवी धारावाहिक ‘महाभारत’ में दुर्योधन की भूमिका निभाने वाले अभिनेता व निर्देशक पुनीत इस्सर का। पुनीत आजादी का रंगोत्सव में अपने नाटक ‘महाभारत द एपिक टेल’ का मंचन करने पहली बार गोरखपुर पहुंचे थे। इस दौरान वह मीडिया से रूबरू हुए।
उन्होंने बताया कि अपने अभिनय की शुरुआत उन्होंने फिल्मों से की। फिल्मों से होते हुए टीवी सीरियल और रंगमंच तक पहुंचे। तीनों में फर्क इतना है कि रंगकर्म में आपको तत्काल रिपोर्ट कार्ड मिल जाता है जबकि फिल्मों और सीरियल में बाद में। बताया कि महाभारत नाटक की प्रस्तुति अलग-अलग मंचों पर अबतक 100 बार हो चुकी है। सभी प्रस्तुतियों में दर्शकों ने उनकी दृष्टि को जमकर सराहा है।
सीरियल के बाद महाभारत पर नाटक के औचित्य के सवाल पर पुनीत ने कहा कि उनके नाटक में महाभारत को दुर्योधन की दृष्टि से दर्शाया गया है। हालांकि उन्होंने यह साफ भी किया इस नाटक में दर्शक पूरे महाभारत को देखने का लुत्फ उठाता है क्योंकि कहानी के मूल से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है।
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एक सच्चा कलाकार कला प्रदर्शन के सभी माध्यमों पर खरा उतरता है और आनंदित होता है। चुनौती रंगमंच, सिनेमा और छोटे पर्दे, तीनों विधाओं में है। सभी में पात्र को जीना पड़ता है। इसके लिए जुनून का होना जरूरी है। यह कहना है टीवी धारावाहिक ‘महाभारत’ में दुर्योधन की भूमिका निभाने वाले अभिनेता व निर्देशक पुनीत इस्सर का। पुनीत आजादी का रंगोत्सव में अपने नाटक ‘महाभारत द एपिक टेल’ का मंचन करने पहली बार गोरखपुर पहुंचे थे। इस दौरान वह मीडिया से रूबरू हुए।
उन्होंने बताया कि अपने अभिनय की शुरुआत उन्होंने फिल्मों से की। फिल्मों से होते हुए टीवी सीरियल और रंगमंच तक पहुंचे। तीनों में फर्क इतना है कि रंगकर्म में आपको तत्काल रिपोर्ट कार्ड मिल जाता है जबकि फिल्मों और सीरियल में बाद में। बताया कि महाभारत नाटक की प्रस्तुति अलग-अलग मंचों पर अबतक 100 बार हो चुकी है। सभी प्रस्तुतियों में दर्शकों ने उनकी दृष्टि को जमकर सराहा है।
सीरियल के बाद महाभारत पर नाटक के औचित्य के सवाल पर पुनीत ने कहा कि उनके नाटक में महाभारत को दुर्योधन की दृष्टि से दर्शाया गया है। हालांकि उन्होंने यह साफ भी किया इस नाटक में दर्शक पूरे महाभारत को देखने का लुत्फ उठाता है क्योंकि कहानी के मूल से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है।