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Chandigarh-Haryana News: आईपीएस वाई पूरण कुमार की मौत मामले में सीबीआई जांच की मांग खारिज
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-चंडीगढ़ पुलिस की एसआईटी ने बताया जांच का स्टेटस, हाईकोर्ट ने जताया भरोसा
-अब तक 22 गवाहों के लिए बयान, जब्त सामग्री फॉरेंसिक लैब भेजी गई
अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। हरियाणा के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरण कुमार की आत्महत्या मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि न तो एसआईटी पर कोई आरोप हैंं और न ही जांच सीबीआई को सौंपने का ठोस कारण बताया गया है।
मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति संजीव बेरी की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत नहीं होता कि जांच में कोई ढिलाई या देरी हुई है। इसलिए स्वतंत्र एजेंसी को जांच सौंपने का कोई औचित्य नहीं बनता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले की जांच पहले से ही एक विशेष जांच दल द्वारा की जा रही है। यूटी प्रशासन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमित झांजी ने अदालत को बताया कि मामले में 14 लोगों को आरोपी बनाया गया है और अब तक 22 गवाहों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि सीसीटीवी फुटेज सुरक्षित किया जा चुका है और 21 साक्ष्य एकत्र कर फॉरेंसिक जांच के लिए भेजे गए हैं। खंडपीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता नवनीत कुमार यह साबित नहीं कर सके कि यह जनहित याचिका किस आधार पर स्वीकार्य है। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि जब वरिष्ठ अधिकारी आत्महत्या कर रहे हैं और कई वरिष्ठ आईपीएस व आईएएस अधिकारियों पर उत्पीड़न के आरोप लगा रहे हैं, तो यह एक गंभीर विषय है। ऐसे में केंद्रीय एजेंसी द्वारा निष्पक्ष जांच आवश्यक है। यूटी प्रशासन की ओर से बताया गया कि इस मामले की जांच के लिए आईजी रैंक के एक आईपीएस अधिकारी के नेतृत्व में एसआईटी गठित की गई है, जिसमें तीन अन्य आईपीएस अधिकारी और तीन डीएसपी शामिल हैं। कुल मिलाकर 14 सदस्यीय टीम रोजाना जांच कर रही है।
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-अब तक 22 गवाहों के लिए बयान, जब्त सामग्री फॉरेंसिक लैब भेजी गई
अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। हरियाणा के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरण कुमार की आत्महत्या मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि न तो एसआईटी पर कोई आरोप हैंं और न ही जांच सीबीआई को सौंपने का ठोस कारण बताया गया है।
मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति संजीव बेरी की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत नहीं होता कि जांच में कोई ढिलाई या देरी हुई है। इसलिए स्वतंत्र एजेंसी को जांच सौंपने का कोई औचित्य नहीं बनता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले की जांच पहले से ही एक विशेष जांच दल द्वारा की जा रही है। यूटी प्रशासन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमित झांजी ने अदालत को बताया कि मामले में 14 लोगों को आरोपी बनाया गया है और अब तक 22 गवाहों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि सीसीटीवी फुटेज सुरक्षित किया जा चुका है और 21 साक्ष्य एकत्र कर फॉरेंसिक जांच के लिए भेजे गए हैं। खंडपीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता नवनीत कुमार यह साबित नहीं कर सके कि यह जनहित याचिका किस आधार पर स्वीकार्य है। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि जब वरिष्ठ अधिकारी आत्महत्या कर रहे हैं और कई वरिष्ठ आईपीएस व आईएएस अधिकारियों पर उत्पीड़न के आरोप लगा रहे हैं, तो यह एक गंभीर विषय है। ऐसे में केंद्रीय एजेंसी द्वारा निष्पक्ष जांच आवश्यक है। यूटी प्रशासन की ओर से बताया गया कि इस मामले की जांच के लिए आईजी रैंक के एक आईपीएस अधिकारी के नेतृत्व में एसआईटी गठित की गई है, जिसमें तीन अन्य आईपीएस अधिकारी और तीन डीएसपी शामिल हैं। कुल मिलाकर 14 सदस्यीय टीम रोजाना जांच कर रही है।
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