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बर्खास्त कर्मचारी के खिलाफ नहीं की जा सकती अनुशासनात्मक कार्रवाई : हाईकोर्ट
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चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया है कि कर्मचारी की बर्खास्तगी के बाद नियोक्ता उसके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू या जारी नहीं रख सकता। जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि अनुशासनिक अधिकार-क्षेत्र की मूलभूत शर्त यह है कि नियोक्ता और कर्मचारी के बीच सेवा संबंध जीवित हो। यह अधिकार तभी तक रहता है जब तक कर्मचारी संस्था का सक्रिय सदस्य हो।
याचिकाकर्ता पंजाब स्टेट सिविल सप्लाइज कॉर्पोरेशन में इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत था। उसे 14 अक्तूबर 2013 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत विशेष न्यायाधीश, मोगा की ओर से दोषी ठहराया गया था। इसके बाद 31 अक्तूबर को कॉर्पोरेशन ने उसे बर्खास्त कर दिया।वर्ष 2017 में कॉर्पोरेशन ने उसके खिलाफ तीन आरोपपत्र (चार्जशीट) जारी किए। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसकी बर्खास्तगी के बाद नियोक्ता कर्मचारी संबंध समाप्त हो चुका था इसलिए कॉर्पोरेशन को अनुशासनिक कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं था।
कोर्ट ने माना कि बर्खास्तगी के बाद याचिकाकर्ता और कॉर्पोरेशन के बीच का कानूनी संबंध समाप्त हो गया था। इस वजह से कॉर्पोरेशन के पास उसके खिलाफ जांच या कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं बचा। हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी के बाद जारी किए गए सभी चार्जशीट और जांच कार्रवाई को अधिकार क्षेत्र से परे मानते हुए इन्हें रद्द कर दिया।
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याचिकाकर्ता पंजाब स्टेट सिविल सप्लाइज कॉर्पोरेशन में इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत था। उसे 14 अक्तूबर 2013 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत विशेष न्यायाधीश, मोगा की ओर से दोषी ठहराया गया था। इसके बाद 31 अक्तूबर को कॉर्पोरेशन ने उसे बर्खास्त कर दिया।वर्ष 2017 में कॉर्पोरेशन ने उसके खिलाफ तीन आरोपपत्र (चार्जशीट) जारी किए। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसकी बर्खास्तगी के बाद नियोक्ता कर्मचारी संबंध समाप्त हो चुका था इसलिए कॉर्पोरेशन को अनुशासनिक कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं था।
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कोर्ट ने माना कि बर्खास्तगी के बाद याचिकाकर्ता और कॉर्पोरेशन के बीच का कानूनी संबंध समाप्त हो गया था। इस वजह से कॉर्पोरेशन के पास उसके खिलाफ जांच या कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं बचा। हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी के बाद जारी किए गए सभी चार्जशीट और जांच कार्रवाई को अधिकार क्षेत्र से परे मानते हुए इन्हें रद्द कर दिया।