विसरा रिपोर्ट नहीं मिलने से सालों से जिला के 162 परिवार न्याय के इंतजार में हैं। संदिग्ध मौत का राज खोलने के लिए विसरा रिपोर्ट अहम होती है, लेकिन सालों से बोतल में बंद विसरा की जांच नहीं होने से लोगों को न्याय मिलने में देरी हो रही है। बता दें कि जिले में सालों से 162 विसरा रिपोर्ट थानों तक नहीं पहुंच पाई हैं, ऐसे में पुलिस की जांच भी आगे नहीं बढ़ सकी।पोस्टमार्टम के लिए अस्पतालों के शवगृह में सभी सुविधाएं नहीं हैं।
साथ ही संदिग्ध हालात में मौत के कारण का पता लगाने के लिए भी विसरा जांच रिपोर्ट लेने के लिए सालों का इंतजार मरहम की बजाय घाव बढ़ा रहा है। कई बार तो विसरा सैंपल भेजने के सालों बाद भी अस्पतालों में रिपोर्ट नहीं पहुंचती है। जिले में रेवाड़ी और बावल अस्पतालों में पोस्टमार्टम सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
मुधबन व रोहतक में होती विसरा जांच
जानकारी के अनुसार जिले में लगभग 162 मामले ऐसे हैं, जिनकी रिपोर्ट सालों से लटकी है। रिपोर्ट में देरी से न तो उन मामलों में मौत का कारण पता चल पाया है और न ही पुलिस की कार्रवाई आगे बढ़ पाती है। पूरे राज्य से विसरा की जांच के लिए सैंपल करनाल के मधुबन और रोहतक भेजे जाते हैं। ऐसे में पीड़ित रिपोर्ट के लिए पुलिस और डॉक्टरों के चक्कर लगाते रहते हैं।
किडनी व लीवर के सैंपल कहलाते हैं विसरा
संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होने या जहर देने से मौत होने के शक पर उसके कारणों पर एक प्रक्रिया के तहत काम किया जाता है। इसमें पोस्टमार्टम करने के दौरान शव के विसरल पार्ट यानि किडनी, लीवर, दिल, पेट के अंगों का सैंपल लिया जाता है, इसे विसरा कहते हैं। इस विसरा को जांच के लिए केमिकल एग्जामिनर के पास भेजा जाता है।
जांच में यह पता लगाया जाता है कि मौत किस तरह और किस कारण से हुई थी। केमिकल जांचकर्ता यह देखता है कि जिसके शव का विसरा है, उसकी मौत किस समय हुई, बताई किस समय गई। अंगों का रंग, कोशिकाओं की सिकुड़न, पेट में मिले खाने के अवशेष के आधार पर कई तरह की अहम जानकारी उपलब्ध होती है।
बार एसोसिएशन के प्रधान सुधीर यादव ने बताया कि किसी भी व्यक्ति की मौत होने पर अगर हत्या का मामला सामने आता है, तो ऐसे में बयान लिए जाते हैं। अगर बयान में किसी पर हत्या करने का आरोप लगाया जाता है तो ऐसे में मौत होने का जो कारण बताया गया, मौत वैसे हुई की नहीं यह जानने के लिए विसरा की जांच ही माध्यम है।
इसके अलावा अगर कोई मौत होने की गलत वजह बताता है तो वो भी विसरा की जांच में स्पष्ट हो जाता है। विसरा की जांच होने पर ही आरोपी के खिलाफ एक्शन लिया जाता है या अदालत में मुकदमे की सुनवाई के दौरान सबूत के तौर पर रिपोर्ट को प्रस्तुत किया जाता है।
इन परिस्थितियों में होती है विसरा की जांच
बीमार होने के अलावा अगर किसी की मौत जलने से, जहर निगलने से, गोली लगने से, गला रेतने से, करंट लगने से, रेप से या डूबने से होती है, तो इन स्थितियों में शक के आधार पर पुलिस की मांग पर विसरा का सैंपल केमिकल एग्जामिनर के पास भेजा जाता है। रिपोर्ट देरी से आने से विवादास्पद केस पेंडिंग रह जाते हैं।
इन थानों पर विसरा की नहीं आई रिपोर्ट
थाना संख्या
शहर थाना 21
मॉडल टाउन थाना 13
सदर थाना 19
बावल थाना 22
कसौला थाना 18
धारूहेड़ा थाना 21
सेक्टर 6 धारूहेड़ा 3
खोल 13
कोसली 12
जाटूसाना 11
रोहड़ाई 9
शव का विसरा मधुबन या रोहतक लैब में जांच के लिए भेजा जाता है। पुलिस अपनी तरफ से मामलों को पूरी गंभीरता से समय पर करने का प्रयास करती है, लेकिन कई मामलों में विसरा रिपोर्ट देरी से आने के कारण मामलों की जांच में देरी हो जाती हैं।
- जमान खान, डीएसपी
विसरा रिपोर्ट नहीं मिलने से सालों से जिला के 162 परिवार न्याय के इंतजार में हैं। संदिग्ध मौत का राज खोलने के लिए विसरा रिपोर्ट अहम होती है, लेकिन सालों से बोतल में बंद विसरा की जांच नहीं होने से लोगों को न्याय मिलने में देरी हो रही है। बता दें कि जिले में सालों से 162 विसरा रिपोर्ट थानों तक नहीं पहुंच पाई हैं, ऐसे में पुलिस की जांच भी आगे नहीं बढ़ सकी।पोस्टमार्टम के लिए अस्पतालों के शवगृह में सभी सुविधाएं नहीं हैं।
साथ ही संदिग्ध हालात में मौत के कारण का पता लगाने के लिए भी विसरा जांच रिपोर्ट लेने के लिए सालों का इंतजार मरहम की बजाय घाव बढ़ा रहा है। कई बार तो विसरा सैंपल भेजने के सालों बाद भी अस्पतालों में रिपोर्ट नहीं पहुंचती है। जिले में रेवाड़ी और बावल अस्पतालों में पोस्टमार्टम सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
मुधबन व रोहतक में होती विसरा जांच
जानकारी के अनुसार जिले में लगभग 162 मामले ऐसे हैं, जिनकी रिपोर्ट सालों से लटकी है। रिपोर्ट में देरी से न तो उन मामलों में मौत का कारण पता चल पाया है और न ही पुलिस की कार्रवाई आगे बढ़ पाती है। पूरे राज्य से विसरा की जांच के लिए सैंपल करनाल के मधुबन और रोहतक भेजे जाते हैं। ऐसे में पीड़ित रिपोर्ट के लिए पुलिस और डॉक्टरों के चक्कर लगाते रहते हैं।
किडनी व लीवर के सैंपल कहलाते हैं विसरा
संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होने या जहर देने से मौत होने के शक पर उसके कारणों पर एक प्रक्रिया के तहत काम किया जाता है। इसमें पोस्टमार्टम करने के दौरान शव के विसरल पार्ट यानि किडनी, लीवर, दिल, पेट के अंगों का सैंपल लिया जाता है, इसे विसरा कहते हैं। इस विसरा को जांच के लिए केमिकल एग्जामिनर के पास भेजा जाता है।
जांच में यह पता लगाया जाता है कि मौत किस तरह और किस कारण से हुई थी। केमिकल जांचकर्ता यह देखता है कि जिसके शव का विसरा है, उसकी मौत किस समय हुई, बताई किस समय गई। अंगों का रंग, कोशिकाओं की सिकुड़न, पेट में मिले खाने के अवशेष के आधार पर कई तरह की अहम जानकारी उपलब्ध होती है।