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Bilaspur News: 54 रूटों पर दौड़नी पड़ रहीं 21 सरकारी बसें
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अभियान का फोटोघुमारवीं में परिवहन निगम की बस। संवाद
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घुमारवीं में बस सेवा चरमराई, बढ़ती आबादी, रूटों के आगे घुटने टेक रहा सब डिपो
स्कूली बच्चों, नौकरीपेशा लोगों और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा परेशानी
निजी बसों में की जा रही ओवरलोडिंग
दांव पर लगाई जा रही स्कूल, कॉलेज के बच्चों की सुरक्षा
संजीव शामा
घुमारवीं (बिलासपुर)। व्यापार और शिक्षा में तेजी से विकसित होता घुमारवीं बस सेवाओं की बदहाली से जूझ रहा है। जिले के मध्य में स्थित होने के कारण प्रतिदिन हजारों लोग यहां से आते-जाते हैं। बढ़ती जरूरतों के मुकाबले परिवहन निगम का सब-डिपो लगातार असहाय साबित हो रहा है। स्कूली बच्चों, कर्मचारियों, महिलाओं और बुजुर्गों को हर दिन बसों की कमी और निजी बसों में ओवरलोडिंग की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।
घुमारवीं सब-डिपो में सिर्फ 21 सरकारी बसें हैं। इन्हें रोजाना 54 रूटों पर चलाया जा रहा है। इसके अलावा लगभग 150 निजी बसें लोकल और लंबी दूरी पर दौड़ती हैं। बसों की मांग इतनी अधिक है कि सेवाएं अपर्याप्त पड़ रही हैं। घुमारवीं से कुठेड़ा, जाहू, डंगार, भोटा, हमीरपुर, कांगड़ा, भराड़ी, सुनहाणी, बरठीं, झंडूता, शाहतलाई, पनोल, घाघस, सलापड़, सुंदरनगर, बिलासपुर समेत कई छोटे-बड़े रूटों पर रोजाना हजारों लोग यात्रा करते हैं। शिमला, ऊना, चंडीगढ़ और दिल्ली जैसे लंबे रूट भी यहीं से संचालित होते हैं।
सुबह स्कूल समय बसें पूरी तरह ठसाठस भरने के बाद ही स्टैंड से निकलती हैं। स्कूली बच्चों को खड़े होकर यात्रा करनी पड़ती है। कई बार तो बसें उन्हें चढ़ाए बिना ही निकल जाती हैं। छुट्टी के समय बच्चों को 45 मिनट से लेकर एक घंटे तक बसों का इंतजार करना पड़ता है। नौकरीपेशा लोग भी इसी समस्या से रोजाना जूझ रहे हैं। शाम को घर लौटने वाली बसें या तो ओवरलोड होती हैं या कई रूट मिस हो जाते हैं।
जर्जर बसें, तकनीकी स्टाफ कम
सब-डिपो में तीन जूनियर टेक्नीशियन, एक इलेक्ट्रिशियन, एक टायरमैन और एक कारपेंटर तैनात है। बसों की संख्या और उनके पुराने होने के कारण यह स्टाफ बहुत कम पड़ रहा है। किसी भी रूट पर बस ब्रेकडाउन होते ही इन्हीं टेक्नीशियनों को मौके पर भेजा जाता है। इससे बाकी काम प्रभावित हो जाते हैं। कई बसों की हालत इतनी जर्जर है कि उनके आगे के शीशे और साइड मिरर टूटे हैं। प्लास्टिक चिपकाकर बसें चलाई जा रही हैं। सीटों की हालत भी बदतर है, जिन पर बैठना मुश्किल हो जाता है।
रविवार को आधी से भी कम बसें
रविवार के दिन स्थिति और बिगड़ जाती है। 54 रूटों में से सिर्फ 35-40 रूट ही पूरे किए जाते हैं। कई बार तो बस खराब होने या यात्रियों की संख्या कम होने पर रूट ही छोड़ दिए जाते हैं। इसका सीधा असर नौकरीपेशा लोगों, महिलाओं व बुजुर्गों पर पड़ता है, जिन्हें देर रात तक बस स्टैंड पर इंतजार करना पड़ता है।
बसें, स्टाफ बढ़ाने की मांग
लोगों का कहना है कि घुमारवीं की बढ़ती आबादी और आवागमन को देखते हुए सब-डिपो को कम से कम 10-12 नई बसें तुरंत मिलनी चाहिए। साथ ही तकनीकी स्टाफ की संख्या बढ़ाई जाए। पुरानी बसों की नियमित मरम्मत और सफाई सुनिश्चित की जाए ताकि आम जनता को राहत मिल सके।
ओवरलोडिंग पर होगी कार्रवाई
निजी बसें अगर ओवरलोडिंग कर रही हैं तो उन पर कार्रवाई की जाएगी। लोगों की सुरक्षा विभाग की जिम्मेदारी है। नियमों का उल्लंघन करने पर किसी को बख्शा नहीं जाएगा।
-राजेश कौशल, आरटीओ
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स्कूली बच्चों, नौकरीपेशा लोगों और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा परेशानी
निजी बसों में की जा रही ओवरलोडिंग
दांव पर लगाई जा रही स्कूल, कॉलेज के बच्चों की सुरक्षा
संजीव शामा
घुमारवीं (बिलासपुर)। व्यापार और शिक्षा में तेजी से विकसित होता घुमारवीं बस सेवाओं की बदहाली से जूझ रहा है। जिले के मध्य में स्थित होने के कारण प्रतिदिन हजारों लोग यहां से आते-जाते हैं। बढ़ती जरूरतों के मुकाबले परिवहन निगम का सब-डिपो लगातार असहाय साबित हो रहा है। स्कूली बच्चों, कर्मचारियों, महिलाओं और बुजुर्गों को हर दिन बसों की कमी और निजी बसों में ओवरलोडिंग की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।
घुमारवीं सब-डिपो में सिर्फ 21 सरकारी बसें हैं। इन्हें रोजाना 54 रूटों पर चलाया जा रहा है। इसके अलावा लगभग 150 निजी बसें लोकल और लंबी दूरी पर दौड़ती हैं। बसों की मांग इतनी अधिक है कि सेवाएं अपर्याप्त पड़ रही हैं। घुमारवीं से कुठेड़ा, जाहू, डंगार, भोटा, हमीरपुर, कांगड़ा, भराड़ी, सुनहाणी, बरठीं, झंडूता, शाहतलाई, पनोल, घाघस, सलापड़, सुंदरनगर, बिलासपुर समेत कई छोटे-बड़े रूटों पर रोजाना हजारों लोग यात्रा करते हैं। शिमला, ऊना, चंडीगढ़ और दिल्ली जैसे लंबे रूट भी यहीं से संचालित होते हैं।
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सुबह स्कूल समय बसें पूरी तरह ठसाठस भरने के बाद ही स्टैंड से निकलती हैं। स्कूली बच्चों को खड़े होकर यात्रा करनी पड़ती है। कई बार तो बसें उन्हें चढ़ाए बिना ही निकल जाती हैं। छुट्टी के समय बच्चों को 45 मिनट से लेकर एक घंटे तक बसों का इंतजार करना पड़ता है। नौकरीपेशा लोग भी इसी समस्या से रोजाना जूझ रहे हैं। शाम को घर लौटने वाली बसें या तो ओवरलोड होती हैं या कई रूट मिस हो जाते हैं।
जर्जर बसें, तकनीकी स्टाफ कम
सब-डिपो में तीन जूनियर टेक्नीशियन, एक इलेक्ट्रिशियन, एक टायरमैन और एक कारपेंटर तैनात है। बसों की संख्या और उनके पुराने होने के कारण यह स्टाफ बहुत कम पड़ रहा है। किसी भी रूट पर बस ब्रेकडाउन होते ही इन्हीं टेक्नीशियनों को मौके पर भेजा जाता है। इससे बाकी काम प्रभावित हो जाते हैं। कई बसों की हालत इतनी जर्जर है कि उनके आगे के शीशे और साइड मिरर टूटे हैं। प्लास्टिक चिपकाकर बसें चलाई जा रही हैं। सीटों की हालत भी बदतर है, जिन पर बैठना मुश्किल हो जाता है।
रविवार को आधी से भी कम बसें
रविवार के दिन स्थिति और बिगड़ जाती है। 54 रूटों में से सिर्फ 35-40 रूट ही पूरे किए जाते हैं। कई बार तो बस खराब होने या यात्रियों की संख्या कम होने पर रूट ही छोड़ दिए जाते हैं। इसका सीधा असर नौकरीपेशा लोगों, महिलाओं व बुजुर्गों पर पड़ता है, जिन्हें देर रात तक बस स्टैंड पर इंतजार करना पड़ता है।
बसें, स्टाफ बढ़ाने की मांग
लोगों का कहना है कि घुमारवीं की बढ़ती आबादी और आवागमन को देखते हुए सब-डिपो को कम से कम 10-12 नई बसें तुरंत मिलनी चाहिए। साथ ही तकनीकी स्टाफ की संख्या बढ़ाई जाए। पुरानी बसों की नियमित मरम्मत और सफाई सुनिश्चित की जाए ताकि आम जनता को राहत मिल सके।
ओवरलोडिंग पर होगी कार्रवाई
निजी बसें अगर ओवरलोडिंग कर रही हैं तो उन पर कार्रवाई की जाएगी। लोगों की सुरक्षा विभाग की जिम्मेदारी है। नियमों का उल्लंघन करने पर किसी को बख्शा नहीं जाएगा।
-राजेश कौशल, आरटीओ