Kullu Fire: राख बन रही काष्ठकुणी शैली, हवा हो गए गांवों का वजूद बचाने के दावे; ऐसे हो सकता है बचाव
कुल्लू जिले के झनियार गांव में काष्ठकुणी शैली भी इतिहास बनती जा रही है। सोमवार को एक और काष्ठकुणी शैली से बने घरों वाले गांव का वजूद मिट गया।
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कुल्लू जिले में काष्ठकुणी शैली के परंपरागत गांवों का वजूद साल-दर-साल आग की घटनाओं से मिटता जा रहा है। पुरातन भवनों के निर्माण की शैली भी इतिहास बनती जा रही है। पुरातन भवन निर्माण शैली से बने गांवों के वजूद बचाने के लिए प्रशासनिक और सरकार के तौर पर हर बार योजना बनाने के दावे किए जाते हैं लेकिन धरातल पर कोई ठोस प्रयास नहीं दिखता। जिला प्रशासन ने आग की घटनाओं के लिए संवेदनशील 64 गांव चिह्नित किए थे। इनमें एक लाख लाख लीटर पानी की स्टोरेज क्षमता के फेवरीकेटिड टैंक बनाने की योजना थी लेकिन यह योजना अभी धरातल पर नहीं उतरी है।
सोमवार को एक और काष्ठकुणी शैली से बने घरों वाले गांव का वजूद मिट गया। इस शैली से बने घर गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म होते हैं। गर्मियों में ऐसे घरों में पंखे लगाने की जरूरत नहीं होती है। ये मकान भूकंपरोधी भी होते हैं। इनके निर्माण में सीमेंट का उपयोग नहीं होता। लकड़ी और पत्थर का ही प्रयोग किया जाता है।
बीस वर्षों में पुरातन शैली के घरों से बने 10 गांव मिट चुके हैं। ये अब नई भवन निर्माण शैली से आबाद हुए हैं। वर्ष 2006 में ऐतिहासिक गांव मलाणा में सौ से अधिक घर जल गए थे। इसी वर्ष मणिकर्ण के शिल्हा गांव भी आग की भेंट चढ़ गया था। 2007 में बंजार के मोहनी गांव में 90 घर और गोशालाएं राख हो गई थीं। 2008 में मनाली का सोलंग गांव तबाह हो गया। 2009 में निरमंड के जुआगी गांव में 30 घर राख हुए। 2015 को कोटला गांव में 40 घर जले, 2021 को एक बार फिर मलाणा गांव में 16 मकान आग की चपेट में आए। 2021 को मझाण गांव में 12 मकान, एक मंदिर, अब 14 दिसंबर 2023 को सैंज के पटैला गांव में नौ मकान जल गए।
ऐतिहासिक धरोहर गांवों के अलावा शहरी क्षेत्रों में भी आग की घटनाओं ने तांडव मचाया है। वर्ष 2007 में जब भुंतर कस्बे में आग भड़क गई थी और 6 से ज्यादा दुकानें राख हो गई थीं। वर्ष 2023 में बंजार के पुराने बस अड्डा के पास 9 दुकानें, 4 मकान आग की भेंट चढ़ गए थे।
साहित्यकार डॉ. सूरत ठाकुर ने कहा कि सबसे पहले लोगों को जागरूक होना पड़ेगा। जो सर्दियों के लिए लकड़ी और घास को घरों में रखने की परंपरा बनी है, इसे घरों से दूर रखा जाना चाहिए। सरकार आग की दृष्टि से संवेदनशील गांवों के पीछे पानी के बड़े टैंक बनाकर आग से होने वाले नुकसान को कम करवा सकती है। घटना के समय पानी को आग पर काबू पाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।