संवाद न्यूज एजेंसी
कुल्लू। सैंज के शैंशर बस हादसे में जिस परिवार ने भी अपनों को खोया है, उन्हें अब प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन से इंसाफ की उम्मीद है। सैंज घाटी की दोनों बड़ी एनएचपीसी और एचपीपीसीएल परियोजनाओं पर कार्रवाई होगी या नहीं इस पर संशय बरकरार है।
दरअसल, शैंशर के जंगला गांव के पास हुए भीषण बस हादसे वाली जगह से एचपीपीसीएल परियोजना महज एक किलोमीटर की दूरी पर निहारनी के पास स्थित थी, जबकि एनएचपीसी परियोजना छह किलोमीटर दूर सिउंड के पास है। अब सवाल उठता है कि चंद किमी की दूरी पर स्थित परियोजना के होने के बावजूद उनकी मशीनें और हाइड्रा समय पर घटनास्थल तक नहीं पहुंच सके, जबकि अन्य जगह से बड़ी मशीनों को बुलाने में समय लगना था। ग्रामीणों का कहना है कि अगर समय रहते मशीनें घटनास्थल पर पहुंच जाती तो कई जानें बचाई जा सकती थीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
दोनों परियोजनाओं के अधिकारियों ने फोन तक उठाना जरूरी नहीं समझा। पीड़ित परिवार आंखों के सामने अपनों को बस के भीतर व नीचे दबा देकर बेबस दिखाई दिए, लेकिन इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई और विकल्प नहीं था। अगर मशीनें या गैस कटर मिल जाता तो बस को सीधा कर लोगों को बचाया जा सकता था। यह बस तीन घंटे तक उलटी पड़ी रही, जिसे सीधा करना लोगों के बस में नहीं था। उधर, एनएचपीसी के महाप्रबंधक निर्मल सिंह ने बताया कि हादसे की सूचना मिली। मशीनों को घटनास्थल पर भेजा गया था। अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी (एडीएम) प्रशांत सरकैक ने बताया कि जब तक जांच पूरी नहीं होती है, उस समय तक कुछ नहीं कहा जा सकता। इसमें जिसकी भी लापरवाही सामने आएगी, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल मामले की जांच चल रही है।
लोगों की मौत के लिए परियोजना और प्रशासन जिम्मेदार
सैंज संघर्ष समिति के अध्यक्ष महेश शर्मा ने कहा कि प्रशासन और दोनों परियोजना आपदा में फेल हुए हैं। दोनों परियोजनाओं के पास बड़ी-बड़ी मशीनें होने के बावजूद उन्हें समय पर नहीं भेजा गया। लोगों की मौत के लिए परियोजना और प्रशासन जिम्मेदार है। यह उनकी लापरवाही को दर्शाता है।