केलांग (लाहौल-स्पीति)। लाहौल-स्पीति आलू, मटर और गोभी के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। ऐसे में प्राकृतिक विधि से खेती को बढ़ाया जाना चाहिए।
इसके लिए किसानों को गोमूत्र एवं गोबर की ओर से तैयार जीवामृत, घनजीवामृत और बीजामृत बनाकर कृषि लागत को कम और गुणवत्ता को बढ़ाकर अधिक लाभदायी बनाया जा। यह बात सहायक आयुक्त लाहौल-स्पीति रोहित शर्मा ने कही। वीरवार को केलांग में कृषि विभाग ने प्राकृतिक और रसायनमुक्त कृषि को बढ़ावा देने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें लाहौल-स्पीति के विभिन्न पंचायत प्रधानों ने भाग लिया। इसमें स्पीति के किसान भी वर्चुअली जुड़े थे।
वहीं, जिला कृषि अधिकारी डॉ. चौधरी राम ने पंचायत प्रतिनिधियों को प्राकृतिक कृषि के आवश्यकता एवं तरीके के बारे में बताया। कहा कि सुभाष पालेकर की ओर से आरंभ की गई प्राकृतिक कृषि को अपनाया जाना चाहिए। कहा कि सूक्ष्म लाभकारी जीवाणुओं की ओर से जीवन द्रव्य का निर्माण भूमि के ऊपरी हिस्से पर किया जाता है, जो हमारी फसलों में अमृत का कार्य करता है। इसमें देसी गाय का गोबर, देसी किस्म के केंचुए का इस्तेमाल होता है। कहा कि भले ही इसे कृषि लागत कम होती है तथा रासायनिक खाद और दवाइयों पर निर्भरता समाप्त होगी। मगर इसके महत्वपूर्ण परिणाम अच्छे हैं और गोभी की फसल में ताजगी तथा हरापन पहले से बेहतर है तथा इसका वजन भी बहुत अच्छा है।
प्रगतिशील किसानों ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि अब वह प्राकृतिक कृषि की ओर ही ध्यान दे रहे हैं।
केलांग (लाहौल-स्पीति)। लाहौल-स्पीति आलू, मटर और गोभी के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। ऐसे में प्राकृतिक विधि से खेती को बढ़ाया जाना चाहिए।
इसके लिए किसानों को गोमूत्र एवं गोबर की ओर से तैयार जीवामृत, घनजीवामृत और बीजामृत बनाकर कृषि लागत को कम और गुणवत्ता को बढ़ाकर अधिक लाभदायी बनाया जा। यह बात सहायक आयुक्त लाहौल-स्पीति रोहित शर्मा ने कही। वीरवार को केलांग में कृषि विभाग ने प्राकृतिक और रसायनमुक्त कृषि को बढ़ावा देने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें लाहौल-स्पीति के विभिन्न पंचायत प्रधानों ने भाग लिया। इसमें स्पीति के किसान भी वर्चुअली जुड़े थे।
वहीं, जिला कृषि अधिकारी डॉ. चौधरी राम ने पंचायत प्रतिनिधियों को प्राकृतिक कृषि के आवश्यकता एवं तरीके के बारे में बताया। कहा कि सुभाष पालेकर की ओर से आरंभ की गई प्राकृतिक कृषि को अपनाया जाना चाहिए। कहा कि सूक्ष्म लाभकारी जीवाणुओं की ओर से जीवन द्रव्य का निर्माण भूमि के ऊपरी हिस्से पर किया जाता है, जो हमारी फसलों में अमृत का कार्य करता है। इसमें देसी गाय का गोबर, देसी किस्म के केंचुए का इस्तेमाल होता है। कहा कि भले ही इसे कृषि लागत कम होती है तथा रासायनिक खाद और दवाइयों पर निर्भरता समाप्त होगी। मगर इसके महत्वपूर्ण परिणाम अच्छे हैं और गोभी की फसल में ताजगी तथा हरापन पहले से बेहतर है तथा इसका वजन भी बहुत अच्छा है।
प्रगतिशील किसानों ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि अब वह प्राकृतिक कृषि की ओर ही ध्यान दे रहे हैं।