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Rampur Bushahar News: लवी मेले में 1500 से 60 हजार रुपये तक मिल रहे किन्नौरी कपड़े
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बुनकरों की कड़ी मेहनत और उच्च गुणवत्ता के कारण दाम ज्यादा
अलग-अलग साइज के वस्त्र बनाने में लगता है एक से डेढ़ माह
संवाद न्यूज एजेंसी
रामपुर बुशहर। अंतरराष्ट्रीय लवी मेले का शुभारंभ होते ही किन्नौरी मार्केट में भीड़ दिखनी शुरू हो गई है। मार्केट में किन्नौरी पट्टू, शॉल, मफलर, लिंगचा और दोहडू सहित अन्य वस्त्र आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। हालांकि इनके दाम भी बहुत ज्यादा हैं। मार्केट में किन्नौरी वस्त्र 1500 से 60 हजार रुपये तक बिक रहे हैं। दाम ज्यादा होने के पीछे बुनकरों की मेहनत और उच्च गुणवत्ता है। भेड़ और बकरियों से निकलने वाले ऊन को पहले धोया जाता है। फिर उसकी पिंजाई की जाती है। इसके बाद काट और रोल करके धागा बनाया जाता है। ऊन निकालने से लेकर धागा बनाने तक का कार्य हाथ से ही किया जाता है। इसके बाद धागे को रंग किया जाता है। इस उच्च गुणवत्ता वाले धागे से बुनकर हाथों और खडी के माध्यम से शॉल, मफलर सहित अन्य किन्नौरी वस्त्र तैयार करते हैं। अलग-अलग साइज के वस्त्र बनाने में एक से डेढ़ माह तक लगता है। यही कारण है कि इन वस्त्रों की कीमत ज्यादा है। मार्केट में किन्नौरी वस्त्र 1500 से 60 हजार रुपये तक बिक रहे हैं। पट्टू की लंबाई लगभग 110 इंच तक होती है, जिसकी कीमत 13 हजार से 40 हजार रुपये तक है। दाेहडू 16 से 17 दिनों में तैयार किया जाता है, जिसकी कीमत 12 हजार से 45 हजार रुपये तक है। किन्नौरी टोपी 450 से 700 रुपये तक बिक रही है। महिलाओं का एक डिजाइन वाला शॉल की कीमत 10 हजार से शुरू है, जिसमें चारों तरफ से बार्डर लगा होता है। तीन डिजाइन वाले शॉल की कीमत 15 हजार से 20 हजार रुपये तक है। शॉल की अधिकतम कीमत 60 हजार तक है। वहीं, मार्केट में स्टॉल लगाने वाले किन्नौरी कारोबारियों का कहना है कि पिछले साल की तुलना में कीमतों में हल्की बढ़ोतरी हुई है। उनका कहना है कि किन्नौरी पारंपरिक वस्त्र स्वास्थ्य के लिहाफ से भी फायदेमंद होते हैं।
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अलग-अलग साइज के वस्त्र बनाने में लगता है एक से डेढ़ माह
संवाद न्यूज एजेंसी
रामपुर बुशहर। अंतरराष्ट्रीय लवी मेले का शुभारंभ होते ही किन्नौरी मार्केट में भीड़ दिखनी शुरू हो गई है। मार्केट में किन्नौरी पट्टू, शॉल, मफलर, लिंगचा और दोहडू सहित अन्य वस्त्र आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। हालांकि इनके दाम भी बहुत ज्यादा हैं। मार्केट में किन्नौरी वस्त्र 1500 से 60 हजार रुपये तक बिक रहे हैं। दाम ज्यादा होने के पीछे बुनकरों की मेहनत और उच्च गुणवत्ता है। भेड़ और बकरियों से निकलने वाले ऊन को पहले धोया जाता है। फिर उसकी पिंजाई की जाती है। इसके बाद काट और रोल करके धागा बनाया जाता है। ऊन निकालने से लेकर धागा बनाने तक का कार्य हाथ से ही किया जाता है। इसके बाद धागे को रंग किया जाता है। इस उच्च गुणवत्ता वाले धागे से बुनकर हाथों और खडी के माध्यम से शॉल, मफलर सहित अन्य किन्नौरी वस्त्र तैयार करते हैं। अलग-अलग साइज के वस्त्र बनाने में एक से डेढ़ माह तक लगता है। यही कारण है कि इन वस्त्रों की कीमत ज्यादा है। मार्केट में किन्नौरी वस्त्र 1500 से 60 हजार रुपये तक बिक रहे हैं। पट्टू की लंबाई लगभग 110 इंच तक होती है, जिसकी कीमत 13 हजार से 40 हजार रुपये तक है। दाेहडू 16 से 17 दिनों में तैयार किया जाता है, जिसकी कीमत 12 हजार से 45 हजार रुपये तक है। किन्नौरी टोपी 450 से 700 रुपये तक बिक रही है। महिलाओं का एक डिजाइन वाला शॉल की कीमत 10 हजार से शुरू है, जिसमें चारों तरफ से बार्डर लगा होता है। तीन डिजाइन वाले शॉल की कीमत 15 हजार से 20 हजार रुपये तक है। शॉल की अधिकतम कीमत 60 हजार तक है। वहीं, मार्केट में स्टॉल लगाने वाले किन्नौरी कारोबारियों का कहना है कि पिछले साल की तुलना में कीमतों में हल्की बढ़ोतरी हुई है। उनका कहना है कि किन्नौरी पारंपरिक वस्त्र स्वास्थ्य के लिहाफ से भी फायदेमंद होते हैं।