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Una News: बिनौला खल के दामों में गिरावट, पशुपालकों को राहत
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2550 रुपये प्रति 50 किलो बैग की कीमत घटकर 2100 रुपये हुई
बाजार में बिनौला खल की उपलब्धता में हुई बढ़ोतरी
संवाद न्यूज एजेंसी
बड़ूही (ऊना)। पशुपालन से जुड़े किसानों और दुग्ध उत्पादकों के लिए राहत भरी खबर है। बिनौला खल और काले बिनौला के दामों में बीते एक महीने में गिरावट दर्ज की गई है। बढ़ती महंगाई के बीच चारे के दाम कम होना किसानों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं माना जा रहा। लगभग तीन महीने पहले बिनौला खल का भाव 2550 रुपये प्रति 50 किलो बैग था, जो अब घटकर 2100 रुपये प्रति बैग रह गया। इसी तरह 65 रुपये प्रति किलो बिकने वाला काला बिनौला अब 53 रुपये प्रति किलो उपलब्ध है। यह कमी उन किसानों के लिए बड़ी राहत है जो पिछले कई महीनों से महंगे चारे के बढ़ते खर्च से परेशान थे। कारोबारियों के अनुसार फसल सीजन के बाद कपास की आवक बढ़ने से कपास के बीज और बिनौला खल की उपलब्धता में वृद्धि हुई है। गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में बिनौला बड़े पैमाने पर उत्पादित होता है। कपास से तेल निकालने के बाद बचे अवशेष को पशु चारे के रूप में बेचा जाता है। आवक बढ़ने से बाजार में आपूर्ति बढ़ी और कीमतें स्वतः नीचे आ गईं।
वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. राकेश भट्टी ने बताया कि बाजार में बिनौले की उपलब्धता बढ़ने पर कीमतों में गिरावट दर्ज होती है। खरीदारी में उछाल को देखते हुए अनुमान है कि आने वाले कुछ हफ्तों तक कीमतें स्थिर रह सकती हैं। चारे की लागत कम होने से दुग्ध उत्पादकों की आमदनी में सुधार की उम्मीद बढ़ गई है।
बॉक्स
पिछले कुछ दिनों में बिनौला खल के रेट काफी नीचे आए हैं। पहले लोग एक बैग लेते थे, अब दो–तीन बैग खरीद रहे हैं। हमारी बिक्री में 25 से 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। -अजय कपिला बिनौला खल विक्रेता, गांव बेहड जसवां
फसल सीजन के बाद बिनौला खल की आवक बढ़ी है, इसलिए रेट गिरे हैं। आने वाले दिनों में और कमी भी संभावित है। कम दामों से बाजार में फिर से रौनक लौट आई है। -किराना स्टोर संचालक सतीश कुमार
पिछले महीनों में खल और बिनौला महंगा होने से काफी दिक्कत थी। अब कीमतें कम होने से प्रति पशु रोजाना 40–50 रुपये की बचत हो रही है। इससे घर के खर्च पर भी सकारात्मक असर पड़ा है। -गिरधारी लाल निवासी गांव चक
हमारे पास दो दुधारू पशु हैं। पहले चारा बहुत महंगा था, अब दाम घटने से राहत मिली है। दूध उत्पादन बेहतर है और खर्च कम हो गया है। -मास्टर राज कुमार गांव दिलवां
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बाजार में बिनौला खल की उपलब्धता में हुई बढ़ोतरी
संवाद न्यूज एजेंसी
बड़ूही (ऊना)। पशुपालन से जुड़े किसानों और दुग्ध उत्पादकों के लिए राहत भरी खबर है। बिनौला खल और काले बिनौला के दामों में बीते एक महीने में गिरावट दर्ज की गई है। बढ़ती महंगाई के बीच चारे के दाम कम होना किसानों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं माना जा रहा। लगभग तीन महीने पहले बिनौला खल का भाव 2550 रुपये प्रति 50 किलो बैग था, जो अब घटकर 2100 रुपये प्रति बैग रह गया। इसी तरह 65 रुपये प्रति किलो बिकने वाला काला बिनौला अब 53 रुपये प्रति किलो उपलब्ध है। यह कमी उन किसानों के लिए बड़ी राहत है जो पिछले कई महीनों से महंगे चारे के बढ़ते खर्च से परेशान थे। कारोबारियों के अनुसार फसल सीजन के बाद कपास की आवक बढ़ने से कपास के बीज और बिनौला खल की उपलब्धता में वृद्धि हुई है। गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में बिनौला बड़े पैमाने पर उत्पादित होता है। कपास से तेल निकालने के बाद बचे अवशेष को पशु चारे के रूप में बेचा जाता है। आवक बढ़ने से बाजार में आपूर्ति बढ़ी और कीमतें स्वतः नीचे आ गईं।
वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. राकेश भट्टी ने बताया कि बाजार में बिनौले की उपलब्धता बढ़ने पर कीमतों में गिरावट दर्ज होती है। खरीदारी में उछाल को देखते हुए अनुमान है कि आने वाले कुछ हफ्तों तक कीमतें स्थिर रह सकती हैं। चारे की लागत कम होने से दुग्ध उत्पादकों की आमदनी में सुधार की उम्मीद बढ़ गई है।
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पिछले कुछ दिनों में बिनौला खल के रेट काफी नीचे आए हैं। पहले लोग एक बैग लेते थे, अब दो–तीन बैग खरीद रहे हैं। हमारी बिक्री में 25 से 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। -अजय कपिला बिनौला खल विक्रेता, गांव बेहड जसवां
फसल सीजन के बाद बिनौला खल की आवक बढ़ी है, इसलिए रेट गिरे हैं। आने वाले दिनों में और कमी भी संभावित है। कम दामों से बाजार में फिर से रौनक लौट आई है। -किराना स्टोर संचालक सतीश कुमार
पिछले महीनों में खल और बिनौला महंगा होने से काफी दिक्कत थी। अब कीमतें कम होने से प्रति पशु रोजाना 40–50 रुपये की बचत हो रही है। इससे घर के खर्च पर भी सकारात्मक असर पड़ा है। -गिरधारी लाल निवासी गांव चक
हमारे पास दो दुधारू पशु हैं। पहले चारा बहुत महंगा था, अब दाम घटने से राहत मिली है। दूध उत्पादन बेहतर है और खर्च कम हो गया है। -मास्टर राज कुमार गांव दिलवां