केंद्रीय गृह मंत्रालय इन दिनों खूब चर्चा में है। विपक्षी दल और किसान संगठन, एक ही रट लगाए हुए हैं कि गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा 'टेनी' को हटाया जाए। प्रियंका गांधी ने कहा, 'टेनी' को बर्खास्त करने से सरकार का इनकार करना, उसके नैतिक दिवालियेपन का सबसे बड़ा संकेत है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने लोकसभा में नोटिस देकर कहा, इस मसले पर चर्चा होनी चाहिए। आखिर आशीष मिश्रा को कौन बचा रहा है? लखीमपुर कांड में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा की क्या भूमिका है। गृह मंत्रालय में चार में से दो गृह राज्य मंत्रियों पर हत्या का केस है। 'टेनी' के दूसरे सहयोगी गृह राज्य मंत्री निसिथ प्रमाणिक के खिलाफ भी 'हत्या' का मामला है। एडीआर के अनुसार, केंद्रीय कैबिनेट में 42 फीसदी मंत्री आपराधिक केसों में फंसे हैं, तो 159 सांसद भी गंभीर अपराधों में 'दागी' हैं। कैबिनेट सचिवालय से सेक्रेटरी 'सिक्योरिटी' के पद से रिटायर हुए पूर्व आईपीएस एवं सीआईसी रहे यशोवर्धन आजाद कहते हैं, टेनी को इस्तीफा देना चाहिए। वे खुद के द्वारा कही गई बातों को याद करें। बाकी संसद में बैठे ऐसे सांसद जो गंभीर अपराधों में आरोपी हैं, राजनीतिक दल ही उन पर अंकुश लगा सकते हैं।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में अनेक चेहरों पर दाग लगा हुआ है। कुछ मंत्रियों के खिलाफ 'हत्या' और 'हत्या का प्रयास' जैसे गंभीर आपराधिक केस दर्ज हैं। एडीआर की रिपोर्ट में लिखा है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल 78 मंत्रियों में से 42 फीसदी पर आपराधिक केस हैं। कई मंत्रियों का नाम हत्या जैसे गंभीर अपराधों में शामिल हैं। लगभग 24, मतलब 31 फीसदी मंत्री गंभीर आपराधिक केसों का सामना कर रहे हैं। सबसे कम आयु के गृह राज्य मंत्री निशीथ प्रमाणिक पर हत्या का मुकदमा दर्ज है। उनके सहयोगी अजय मिश्रा 'टेनी' भी हत्या के केस में फंसे हैं। उनका नाम लखीमपुर के तिकुनिया थाने में हिस्ट्रीशीटर के तौर पर लिखा गया था। बाद में हाई कोर्ट के आदेश से वह खारिज हो गया।
अजय मिश्रा पर हत्या, मारपीट और धमकी देने के चार केस दर्ज किए गए थे। पहला केस पांच अगस्त 1990 को, दूसरा आठ जुलाई 2000 में, तीसरा केस अगस्त 2005 और चौथा मामला 24 नवंबर 2007 में दर्ज किया गया था। जिन सांसदों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज है, उनमें होरन सिंह बे 'भाजपा', निसिथ प्रमाणिक 'भाजपा', अजय कुमार 'भाजपा', साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर 'भाजपा', छतर सिंह दरबार 'भाजपा', अतुल कुमार सिंह 'बसपा', अफजाल अंसारी 'बसपा', अधीर रंजन चौधरी 'कांग्रेस', नाबा कुमार सरानिया 'कांग्रेस', भोंसले श्रीमंत छत्रपति उदयनराजे प्रतापसिंह महाराज 'एनसीपी' और कुरुवा गोरान्तला माधव 'वाईआरसीपी' शामिल हैं। अनेक सांसद दूसरे गंभीर अपराधों में फंसे हैं।
पूर्व आईपीएस एवं सीआईसी रहे यशोवर्धन आजाद के अनुसार, गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के मामले में नैतिकता की बात कही जा रही है। उन्हें पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री से सीख लेनी चाहिए। ट्रेन हादसा होते ही उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। वहां भी बात नैतिकता की थी। भले ही लखीमपुर केस में टेनी का बेटा मुख्य आरोपी है, लेकिन वह केस उनके निर्वाचन क्षेत्र का है। उन्होंने पहले मीडिया में कुछ इस तरह का बयान भी दिया था कि उनके बेटे पर आरोप साबित हुए तो वे इस्तीफा दे देंगे। दरअसल, ये केस उनके निर्वाचन क्षेत्र का नहीं होता, तो उन पर इस्तीफे का दबाव उतना ज्यादा नहीं डाला जाता। दूसरा, किसानों का आंदोलन उस सरकार के खिलाफ था, जिसमें वे मंत्री हैं। वहां जो कुछ हुआ, उसमें उनके बेटे को मुख्य आरोपी बनाया गया है। नैतिकता तो यही कहती है कि उन्हें बिना किसी देरी के मंत्री पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए।
लोकसभा चुनाव 2019 में 542 सांसद चुनकर आए थे। उस दौरान 233 सांसद ऐसे थे, जिन पर विभिन्न आपराधिक मुकदमे दर्ज रहे हैं। अगर गंभीर अपराध के मामलों में शामिल सांसदों की तादाद देखें तो वह संख्या 159 थी। यशोवर्धन आजाद के मुताबिक, इस बाबत आम लोगों के अलावा राजनीतिक दलों को भी सोचना होगा। अगर वे ऐसे व्यक्ति को टिकट दे रहे हैं, जिसके खिलाफ क्रिमिनल केस हैं तो ये पूरी तरह गलत है। यह लोकतंत्र प्रणाली के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। सामान्य अपराध के मामले तो राजनीतिक लोगों पर दर्ज होते रहते हैं। वह कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन हत्या जैसे मामलों में शामिल लोगों को टिकट देना और जीतने के बाद उन्हें गृह राज्य मंत्री जैसा प्रतिष्ठित ओहदा देना, बिल्कुल गलत है। ये प्रजातंत्र का दुर्भाग्य है। संसद में ऐसे लोगों का प्रवेश तभी बंद हो सकता है, जब राजनीतिक दल इसके लिए तैयार हों। सुप्रीम कोर्ट तो अपना काम कर चुका है। सजा मिली है, चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा है। मौजूदा समय में केवल राजनीतिक दल, ऐसे लोगों को संसद में आने से रोक सकते हैं, जिनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं।
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