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Bihar Results Q&A: नीतीश की बंपर जीत के क्या मायने, इस बार चुनाव में आखिर हुआ क्या? जानिए पांच बड़े कारण

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: विभास साने Updated Fri, 14 Nov 2025 01:22 PM IST
सार

Bihar Chunav Result What We Know So Far: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों से अब काफी कुछ साफ है। यह स्पष्ट हो चुका है कि राज्य में सरकार बनाने की स्थिति में कौन है? एग्जिट पोल्स के अनुमानों को देखने के बाद ये नतीजे भले ही स्वाभाविक लगें, फिर भी यह चुनाव कई अहम सवालों के जवाब दे गया है...

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Bihar Election Result 2025 Why Nitish Kumar Party JDU Big Win in Bihar Chunav Know Behind Reasons in Hindi
बिहार में एनडीए निर्णायक जीत की ओर। - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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बिहार में जनादेश की बहार में 'नीतीशे कुमार' पर जनता ने एक बार फिर ऐतबार जता दिया। अपनी सेहत और नेतृत्व पर महागठबंधन की तरफ से उठते सवालों के बावजूद वे जनता की पसंद बने रहने में कामयाब हुए। 'तेजस्वी का प्रण' काम नहीं आया। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी बेअसर साबित हुई। जानिए, नीतीश की इस बंपर जीत के मायने क्या हैं? इसके बड़े कारण क्या हैं? 
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1. पहला कारण- नीतीश के नेतृत्व पर भरोसा
इस चुनाव में किस बात की सबसे ज्यादा चर्चा रही? इसका जवाब है- नीतीश कुमार और उनका नेतृत्व। ...भारत जैसे लोकतंत्र में हर चुनाव अहम है। राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक बिहार की बात करें, तो इस बार यहां चुनाव इसलिए खास रहे क्योंकि यहां नीतीश कुमार लंबे समय से सत्ता में हैं। वे 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। बाद के वर्षों में उन्होंने गठबंधन बदले, लेकिन सत्ता उनके इर्द-गिर्द ही रही। अब तक वे कुल नौ बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। 2020 के बाद से ही वे तीन बार शपथ ले चुके थे। अब 10वीं बार की तैयारी में हैं। 

इस बार चुनाव में बड़ा सवाल यह था कि क्या नीतीश कुमार सत्ता विरोधी लहर का सामना कर पाएंगे? इस बार उनकी पार्टी जनता दल-यूनाइटेड 101 सीटों पर चुनाव में उतरी थी। महागठबंधन शुरुआत में यह दबाव बनाने में कामयाब रहा कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया जा रहा है। नतीजतन, भाजपा के बड़े नेताओं ने बार-बार यह कहकर नीतीश के नेतृत्व पर मुहर लगा दी कि जीत के बाद तो वे ही विधायक दल के नेता चुने जाएंगे।

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2. दूसरा कारण- बंपर मतदान 
बिहार में इस बार दो चरण में मतदान हुआ। पहले चरण में 6 नवंबर को 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदान हुआ। कुल 65.08 फीसदी वोट पड़े। दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटें पर मतदान हुआ। कुल 69.20 फीसदी वोट पड़े। इस तरह दोनों चरणों को मिलाकर देखा जाए, तो इस बार कुल मतदान 67.13 फीसदी मतदान हुआ। यह सिर्फ एक सामान्य आंकड़ा नहीं है क्योंकि बिहार के अब तक के चुनाव इतिहास में इतना ज्यादा मतदान कभी नहीं हुआ। 

चुनावी विश्लेषकों और चुनावी इतिहास के आंकड़ों पर गौर करें, तो यह सामान्य धारणा मानी जाती है कि ज्यादा मतदान यानी या तो सत्ता विरोधी लहर है, या फिर सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन के पक्ष में एकतरफा मतदान हुआ है। नतीजे भी कुछ इसी तरह आए हैं। जदयू को पिछली बार 15.39 फीसदी वोट मिले थे। इस बार उसे 18 फीसदी से ज्यादा वोट मिलते दिख रहे हैं। यानी तीन फीसदी से ज्यादा का इजाफा जदयू के वोट बैंक में हुआ है। बढ़े हुए वोट प्रतिशत का नतीजों पर भी असर नजर आया। पिछले चुनाव में जदयू जहां तीसरे नंबर की पार्टी थी, इस बार उसे 30 से ज्यादा सीटों का फायदा हुआ है और वह राजद से भी आगे है। 

3. तीसरा कारण- महिलाओं के लिए योजना और महिलाओं की तरफ से मतदान 
बिहार में नीतीश कुमार की जीत का बड़ा कारण महिलाएं मानी जाती रही हैं। लड़कियों को साइकिल देने से लेकर महिलाओं के खाते में सीधे 10 हजार रुपये भेजने तक की योजनाओं का नीतीश को फायदा होता रहा। इस बार चुनाव से ऐन पहले नीतीश कुमार ने करीब डेढ़ करोड़ महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये भेज दिए। इसे चुनाव का बड़ा गेमचेंजर माना गया। मतदान के दौरान इसका असर भी तब दिखाई दिया, जब दोनों ही चरणों में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले बढ़-चढ़कर वोट डाला। पुरुषों की तुलना में पहले चरण में 7.48 फीसदी और दूसरे चरण में 10.15 फीसदी अधिक महिलाओं ने वोट किया। सुपौल किशनगंज पूर्णिया कटिहार में 80 फीसदी से अधिक महिलाओं ने वोटिंग की। किशनगंज में सबसे अधिक 88.57 फीसदी महिलाओं ने वोट किया। बिहार के 38 जिलों में से 37 जिलों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत ज्यादा रहा। सिर्फ पटना में पुरुषों ने महिलाओं से ज्यादा वोटिंग की। 

4. चौथा कारण- बिखरा हुआ विपक्ष
पहले चरण के लिए नामांकन की आखिरी तारीख तक महागठबंधन में सीटों के बंटवारे की स्थिति साफ नहीं थी। कई सीटों पर गठबंधन में शामिल दो-दो दलों के उम्मीदवार आमने-सामने थे। इस देरी का फायदा एनडीए को मिला, जहां महागठबंधन के मुकाबले काफी पहले सीट शेयरिंग हो चुकी थी। भाजपा और जदयू बराबरी से 101-101 सीटों पर चुनाव में उतरे थे। इस वजह से दोनों बड़े दलों में मतभेद की स्थिति नहीं थी। वहीं, महागठबंधन ने अंत तक सीट शेयरिंग के बारे में औपचारिक एलान या आंकड़े नहीं बताए। महागठबंधन की एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस जरूर हुई, जिसमें तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का और वीआईपी के मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया गया। इसके बाद एनडीए ने जमकर इस बात को उछाला कि महागठबंधन ने किसी मुस्लिम और दलित चेहरे को डिप्टी सीएम पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। 

ये भी पढ़ें: नतीजों का नीतीश फैक्टर: सुशासन...बेदाग छवि और महिलाएं, नीतीश को बना गईं 'अजेय'

5. पांचवां कारण- प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश कुमार की छवि
एनडीए इस बात को स्थापित करने में कामयाब रहा कि डबल इंजन वाली सरकार ही बिहार में विकास को गति दे सकती है। इसमें एनडीए को सबसे बड़ी मदद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि से मिली। एनडीए ने इन्हीं दो चेहरों को आगे रखकर चुनाव लड़ा। प्रधानमंत्री मोदी और चिराग पासवान की केमिस्ट्री की वजह से लोजपा (रामविलास) भी गठबंधन में मजबूती से खड़ी थी। एनडीए वोटरों के बीच यह धारणा बनाने में कामयाब रहा कि बिहार की जनता अब जंगलराज की दोबारा वापसी नहीं चाहती और सुशासन चाहती है। लालू-राबड़ी की सरकार के कार्यकाल से 'जंगलराज' शब्द किस तरह जुड़ा है, इसका असर तेजस्वी के प्रचार में भी दिखा। पूरे प्रचार के दौरान राजद ने कहीं भी लालू या राबड़ी की तस्वीर का इस्तेमाल नहीं किया। पोस्टरों में अकेले तेजस्वी ही नजर आए। 

Bihar Election Result 2025 Why Nitish Kumar Party JDU Big Win in Bihar Chunav Know Behind Reasons in Hindi
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पीएम मोदी - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स

नीतीश के अलावा किन चेहरों पर इस बार नजर थी?
पहला चेहरा हैं- तेजस्वी यादव। लालू प्रसाद यादव भले ही राजद सुप्रीमो हैं, लेकिन अब पार्टी का चेहरा तेजस्वी ही हैं। नीतीश सरकार के साथ कुछ महीनों की सरकार के दौरान तेजस्वी उपमुख्यमंत्री रहे। उनके कार्यकाल के दौरान जो सरकारी भर्तियां हुईं, इस बार राजद ने उसे ही सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया। 

दूसरा चेहरा हैं- प्रशांत किशोर। उनकी पार्टी जनसुराज का इस चुनाव में पदार्पण हुआ। प्रशांत किशोर चुनावी मैदान में नहीं उतरे, लेकिन उन्होंने एनडीए और महागठबंधन से अलग दिखने और राज्य के बुनियादी मुद्दों को छूने की कोशिश। यह माना गया कि इस बार उनकी पार्टी कुछ सीटों पर जीत की स्थिति में आ सकती है या कई सीटों पर एनडीए अथवा महागठबंधन के प्रत्याशियों के वोट काटकर खेल बिगाड़ सकती है। हालांकि, रुझानों से यह साफ है कि जनसुराज अपने पहले टेस्ट में कोई करिश्मा नहीं कर पाई।

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