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Bihar Election: कौन हैं कमरुल होदा, जिन्होंने एनडीए के तूफान में भी संभाले रखा कांग्रेस का 'पंजा'
न्यूज डेस्क, अमर उजाला
Published by: नितिन गौतम
Updated Fri, 14 Nov 2025 05:45 PM IST
सार
कमरुल होदा ने पिछले विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इस बार होदा ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और शानदार जीत दर्ज की।
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कमरुल होदा
- फोटो : एक्स/ @rezive09
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विस्तार
बिहार चुनाव के रुझानों में एनडीए गठबंधन प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करते दिख रहा है। महागठबंधन ने मतगणना से पहले सरकार बनाने के दावे किए थे, लेकिन एनडीए की आंधी में महागठबंधन के सारे दावों की हवा निकल गई। खासकर देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस ने तो पानी भी नहीं मांगा। शाम पांच बजे तक के नतीजों में कांग्रेस के सिर्फ एक उम्मीदवार मोहम्मद कमरुल होदा ने किशनगंज सीट से जीत दर्ज की और चार अन्य सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार आगे चल रहे हैं।
भाजपा की स्वीटी सिंह को हराया
मोहम्मद कमरुल होदा ने 12 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की और भाजपा की स्वीटी सिंह को हराया। किशनगंज में एआईएमआईएम उम्मीदवार शम्स अगाज तीसरे स्थान पर रहे। होदा ने साल 2019 में किशनगंज सीट पर हुए उपचुनाव में एआईएमआईएम के टिकट पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद साल 2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में कमरुल होदा ने एआईएमआईएम के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था और होदा तीसरे स्थान पर रहे थे। इस बार होदा ने एआईएमआईएम के बजाय कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। किशनगंज सीट मुस्लिम बहुल है और यहां 70 फीसदी आबादी मुस्लिम है।
कौन हैं कमरुल होदा
कमरुल होदा का राजनीतिक सफर ग्राम पंचायत स्तर से शुरू हुआ और बिहार विधानसभा तक पहुंचा है। कमरुल होदा ने साल 2001 में पहली बार किशनगंज ब्लॉक की ट्योशा पंचायत से चुनाव जीता और मुखिया बने। इसके बाद होदा किशनगंज ब्लॉक प्रमुख और जिला परिषद अध्यक्ष भी रहे। 60 साल के कमरुल होदा किशनगंज के बलिचुक्का गांव के निवासी हैं और उन्हें जानने वाले कहते हैं कि होदा काफी मिलनसार व्यक्ति हैं। किशनगंज के अलावा कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार वाल्मिकी नगर, चनपटिया, फोरबिसगंज, अररिया और मनिहारी सीट से आगे चल रहे हैं।
ये भी पढ़ें- Bihar Election Result Summary: एनडीए का महागठबंधन को 202 वोल्ट का झटका, नतीजों में किसे-क्या मिला? जानें सबकुछ
बिहार में कांग्रेस की गिरावट की क्या है वजह?
बिहार में कांग्रेस की गिरावट के कारणों की बात करें तो इनमें सबसे पहला कारण संगठनात्मक कमजोरी है। राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने वैचारिक विमर्श पर जोर तो दिया, लेकिन संगठनात्मक पुनर्गठन की अनदेखी की। प्रदेश इकाइयों में न नए चेहरों को मौका मिला, न बूथ-स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया गया। राहुल गांधी स्वयं अपनी भूमिका को लेकर असमंजस में दिखाई देते हैं।
इसके अलावा कांग्रेस पार्टी द्वारा ऐसे मुद्दे उठाए जा रहे हैं, जो आम जनता को लुभाने में नाकाम हो रहे हैं। अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी कांग्रेस का जनाधार खिसक रहा है। भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग कर अपना बड़ा जनाधार तैयार किया है, जिसमें उच्च वर्ग के साथ ही पिछड़े, दलित वर्ग के लोग भी शामिल हैं। क्षेत्रीय पार्टियां ओबीसी और दलित वर्ग में हिस्सेदारी रखती हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए ज्यादा कुछ नहीं बचता है। कांग्रेस पर तुष्टिकरण की राजनीति करने के आरोप लगते हैं, लेकिन हैरानी की बात ये है कि कांग्रेस अल्पसंख्यक वर्ग के वोटों पर भी पूरी तरह से दावा नहीं कर सकती है। पार्टी में मजबूत नेतृत्व की कमी भी देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा रही है।
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भाजपा की स्वीटी सिंह को हराया
मोहम्मद कमरुल होदा ने 12 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की और भाजपा की स्वीटी सिंह को हराया। किशनगंज में एआईएमआईएम उम्मीदवार शम्स अगाज तीसरे स्थान पर रहे। होदा ने साल 2019 में किशनगंज सीट पर हुए उपचुनाव में एआईएमआईएम के टिकट पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद साल 2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में कमरुल होदा ने एआईएमआईएम के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था और होदा तीसरे स्थान पर रहे थे। इस बार होदा ने एआईएमआईएम के बजाय कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। किशनगंज सीट मुस्लिम बहुल है और यहां 70 फीसदी आबादी मुस्लिम है।
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कौन हैं कमरुल होदा
कमरुल होदा का राजनीतिक सफर ग्राम पंचायत स्तर से शुरू हुआ और बिहार विधानसभा तक पहुंचा है। कमरुल होदा ने साल 2001 में पहली बार किशनगंज ब्लॉक की ट्योशा पंचायत से चुनाव जीता और मुखिया बने। इसके बाद होदा किशनगंज ब्लॉक प्रमुख और जिला परिषद अध्यक्ष भी रहे। 60 साल के कमरुल होदा किशनगंज के बलिचुक्का गांव के निवासी हैं और उन्हें जानने वाले कहते हैं कि होदा काफी मिलनसार व्यक्ति हैं। किशनगंज के अलावा कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार वाल्मिकी नगर, चनपटिया, फोरबिसगंज, अररिया और मनिहारी सीट से आगे चल रहे हैं।
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बिहार में कांग्रेस की गिरावट की क्या है वजह?
बिहार में कांग्रेस की गिरावट के कारणों की बात करें तो इनमें सबसे पहला कारण संगठनात्मक कमजोरी है। राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने वैचारिक विमर्श पर जोर तो दिया, लेकिन संगठनात्मक पुनर्गठन की अनदेखी की। प्रदेश इकाइयों में न नए चेहरों को मौका मिला, न बूथ-स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया गया। राहुल गांधी स्वयं अपनी भूमिका को लेकर असमंजस में दिखाई देते हैं।
इसके अलावा कांग्रेस पार्टी द्वारा ऐसे मुद्दे उठाए जा रहे हैं, जो आम जनता को लुभाने में नाकाम हो रहे हैं। अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी कांग्रेस का जनाधार खिसक रहा है। भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग कर अपना बड़ा जनाधार तैयार किया है, जिसमें उच्च वर्ग के साथ ही पिछड़े, दलित वर्ग के लोग भी शामिल हैं। क्षेत्रीय पार्टियां ओबीसी और दलित वर्ग में हिस्सेदारी रखती हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए ज्यादा कुछ नहीं बचता है। कांग्रेस पर तुष्टिकरण की राजनीति करने के आरोप लगते हैं, लेकिन हैरानी की बात ये है कि कांग्रेस अल्पसंख्यक वर्ग के वोटों पर भी पूरी तरह से दावा नहीं कर सकती है। पार्टी में मजबूत नेतृत्व की कमी भी देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा रही है।