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Maharashtra: कुपोषण से 65 बच्चों की मौत पर बंबई हाईकोर्ट सख्त, कहा- सरकार का रवैया बेहद लापरवाह
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मुंबई
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Wed, 12 Nov 2025 04:37 PM IST
सार
महाराष्ट्र के मेलघाट क्षेत्र में कुपोषण से 65 शिशुओं की मौत पर बंबई हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने इसे भयावह बताते हुए कहा कि सरकार का रवैया बेहद लापरवाह है। इस मामले पर कोर्ट ने चार प्रमुख विभागों के प्रधान सचिवों को 24 नवंबर को पेश होने और जवाब दाखिल करने का आदेश दिया।
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बॉम्बे हाईकोर्ट
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र में कुपोषण से बच्चों की मौत पर बंबई हाईकोर्ट ने बुधवार को राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि शून्य से छह माह तक की उम्र के 65 बच्चों की मौत भयावह स्थिति को दर्शाती है। कोर्ट ने सरकार के बेहद लापरवाह रवैये पर गहरी नाराजगी जताई और कहा कि यह मुद्दा चिंता का विषय होना चाहिए।
जस्टिस रेवती मोहिटे डेरे और जस्टिस संदीश पाटिल की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार का रवैया बेहद कैजुअल है। अदालत ने कहा कि यह भयावह है। सरकार को चिंता होनी चाहिए। जिस तरह से हम चिंतित हैं, उसी तरह आप लोगों को भी होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि कुपोषण से होने वाली मौतें बताती हैं कि सरकार केवल कागजों में सब कुछ सही दिखा रही है, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और है।
साल 2006 से जारी है मामला
अदालत ने कहा कि इस मामले पर 2006 से आदेश पारित किए जा रहे हैं, लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। अदालत ने कहा कि यह सरकारी लापरवाही का स्पष्ट उदाहरण है। “यह बेहद दुखद स्थिति है। सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे को सरकार ने हल्के में ले लिया है,” न्यायालय ने टिप्पणी की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह की मौतें अस्वीकार्य हैं और सरकार को तत्काल ठोस कदम उठाने होंगे।
ये भी पढ़ें- सीजेआई पर जूता उछालने का मामला: दिल्ली हाईकोर्ट ने घटना की निंदा की, कहा- उचित कदम उठाए जाने चाहिए
अधिकारियों को पेश होने का आदेश
कोर्ट ने राज्य सरकार के चार विभागों जन स्वास्थ्य, आदिवासी कार्य, महिला एवं बाल विकास और वित्त के प्रधान सचिवों को 24 नवंबर को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया। अदालत ने उनसे कहा कि वे इस मुद्दे पर उठाए गए कदमों की विस्तृत जानकारी शपथपत्र के रूप में पेश करें। कोर्ट ने कहा कि अब जवाबदेही तय करना जरूरी है।
डॉक्टरों के लिए प्रोत्साहन का सुझाव
बेंच ने सुझाव दिया कि आदिवासी क्षेत्रों में कार्यरत डॉक्टरों को अतिरिक्त वेतन या प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए ताकि वे इन कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए प्रेरित हों। अदालत ने कहा कि यह बेहद जरूरी है कि इस तरह की जगहों पर नियुक्त डॉक्टरों को सुविधाएं दी जाएं और सरकार कोई जवाबदेही तंत्र विकसित करे।
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जस्टिस रेवती मोहिटे डेरे और जस्टिस संदीश पाटिल की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार का रवैया बेहद कैजुअल है। अदालत ने कहा कि यह भयावह है। सरकार को चिंता होनी चाहिए। जिस तरह से हम चिंतित हैं, उसी तरह आप लोगों को भी होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि कुपोषण से होने वाली मौतें बताती हैं कि सरकार केवल कागजों में सब कुछ सही दिखा रही है, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और है।
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साल 2006 से जारी है मामला
अदालत ने कहा कि इस मामले पर 2006 से आदेश पारित किए जा रहे हैं, लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। अदालत ने कहा कि यह सरकारी लापरवाही का स्पष्ट उदाहरण है। “यह बेहद दुखद स्थिति है। सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे को सरकार ने हल्के में ले लिया है,” न्यायालय ने टिप्पणी की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह की मौतें अस्वीकार्य हैं और सरकार को तत्काल ठोस कदम उठाने होंगे।
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अधिकारियों को पेश होने का आदेश
कोर्ट ने राज्य सरकार के चार विभागों जन स्वास्थ्य, आदिवासी कार्य, महिला एवं बाल विकास और वित्त के प्रधान सचिवों को 24 नवंबर को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया। अदालत ने उनसे कहा कि वे इस मुद्दे पर उठाए गए कदमों की विस्तृत जानकारी शपथपत्र के रूप में पेश करें। कोर्ट ने कहा कि अब जवाबदेही तय करना जरूरी है।
डॉक्टरों के लिए प्रोत्साहन का सुझाव
बेंच ने सुझाव दिया कि आदिवासी क्षेत्रों में कार्यरत डॉक्टरों को अतिरिक्त वेतन या प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए ताकि वे इन कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए प्रेरित हों। अदालत ने कहा कि यह बेहद जरूरी है कि इस तरह की जगहों पर नियुक्त डॉक्टरों को सुविधाएं दी जाएं और सरकार कोई जवाबदेही तंत्र विकसित करे।