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Lal Quila Blast Q&A: परत-दर-परत ऐसे खुली सफेदपोश आतंक की कहानी; खुलेंगे कई राज, बड़े सवालों के जवाब मिलना बाकी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: राहुल कुमार Updated Wed, 12 Nov 2025 08:59 PM IST
सार

Inside the white-collar terror module: देश के अंदर आतंकी साजिश रचने की जांच में ऐसा पहली बार हुआ है, जब सिलसिलेवार तरीके से कई डॉक्टर गिरफ्तार हुए हैं। ये डॉक्टर टॉपर रहे हैं, जो मेडिकल कॉलेजों-अस्पतालों में काम कर रहे थे। अक्तूबर से इस सफेदपोश आतंकी मॉड्यूल की शुरुआत हुई। फिर 7 से 10 नवंबर का समय सबसे महत्वपूर्ण रहा, जब चेहरे बेनकाब होते गए। सवाल-जवाब में जानिए पूरी कहानी...

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Delhi Red Fort Blast Case all questions and answers about white collar terror module updates
दिल्ली बम धमाका - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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विस्तार
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करीब 3000 किलोग्राम विस्फोटक सामग्री। साजिश में शामिल कई डॉक्टर। कहने को सफेदपोश... लेकिन दिमाग में जहर। एक के बाद एक गिरफ्तारियां। लाल किले के पास धमाका और चौंका देने वाले खुलासे। ...देश की सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले कुछ दिनों में आतंकी नेटवर्क को परत-दर-परत इसी तरह बेनकाब किया है। यह पूरा मामला आखिर क्या है? इसमें कौन लोग शामिल हैं? और किन बड़े सवालों के जवाब मिलना अब भी बाकी हैं? आइए जानते हैं...
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शुरुआत कहां से हुई?
19 अक्तूबर 2025। रविवार का दिन। श्रीनगर से कोई 16-17 किलोमीटर दूर। इलाके का नाम- बनपोरा नौगाम। गिरते तापमान के बीच खामोश सड़कों पर भड़काऊ और धमकी देने वाले कुछ पोस्टर नजर आते हैं। इसके बाद एक एफआईआर दर्ज होती है। यहीं से सफेदपोश आतंकी मॉडल की परतें खुलने की शुरुआत होती है। दरअसल, इन पोस्टरों में पुलिस और सुरक्षा बलों को खुलेआम धमकी दी गई थी। स्थानीय लोगों को चेताया गया था कि सुरक्षा बलों का सहयोग न करें। उन्हें अपनी दुकानों पर बैठने न दें।

पोस्टर चिपकाए जाने के इस मामले के बाद ही कड़ियां सामने आती गईं। 27 अक्तूबर को पहले मौलवी इरफान अहमद वाघे को शोपियां से, फिर जमीर अहमद को गांदरबल से उठाया गया। यह सब कुछ 20 से 27 अक्तूबर के बीच हुआ। कड़ी पूछताछ में ये आरोपी राज उगलते गए। 6 नवंबर को डॉ. आदिल अहमद सहारनपुर से पकड़ा गया। एक दिन बाद 7 नवंबर को अनंतनाग के एक अस्पताल से एक राइफल और विस्फोटक की बरामदगी हुई।

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पोस्टर लगाने वाला कहां से पकड़ाया, उसकी शादी में क्या हुआ?

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 5 नवंबर को डॉ. आदिल अहमद को सहारनपुर से गिरफ्तार किया। उस पर आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से संबंध रखना आरोप है। वह 26 सितंबर से छुट्टी पर था। 4 अक्तूबर को ही उसकी एक महिला डॉक्टर से शादी हुई थी। आरोप है कि डॉ. आदिल ने ही श्रीनगर में जैश-ए-मोहम्मद के समर्थन में पोस्टर लगाए थे। सीसीटीवी फुटेज के जरिए उसकी पहचान हुई। वह सहारनपुर के अंबाला रोड स्थित एक निजी अस्पताल में काम करता था। मानकमऊ में रहता था। पेशे से डॉक्टर और तनख्वाह पांच लाख रुपये। फिर भी उसका ब्रेन वॉश हो गया। कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया जा रहा है कि 4 अक्तूबर को जिस दिन डॉ. आदिल की शादी हुई, उसी दिन से सफेदपोश आतंकी मॉड्यूल सक्रिय हुआ। हालांकि, इस शादी में मौजूद रहे डॉ. आदिल के सहकर्मी डॉ. बाबर ने कहा कि शादी के समारोह के दौरान कुछ भी संदेहास्पद नहीं लगा था।

जांच का सबसे निर्णायक मोड़ क्या था?
आरोपियों की निशानदेही पर 30 अक्तूबर को प्रोफेसर डॉ. मुजम्मिल अहमद गनई उर्फ मुसैब पकड़ाया। डॉ. मुजम्मिल कश्मीरी डॉक्टर है, जो यूनिवर्सिटी में पढ़ाता था। वह टॉपर था। चार साल पहले पुलवामा से दिल्ली आया था। परिवार का दावा है कि इस दौरान मुजम्मिल से उनका संपर्क नहीं हुआ।

27 अक्तूबर को गिरफ्तार हुए मौलवी वाघे, 30 अक्तूबर को गिरफ्तार डॉ. मुजम्मिल और 5 नवंबर को सहारनपुर से गिरफ्तार हुए डॉ. आदिल से पूछताछ में अहम खुलासे हुए। यह पता चला कि डॉ. मुजम्मिल ने फरीदाबाद में दो कमरे किराए पर लिए थे। यह आतंकी नेटवर्क का सबसे अहम सुराग और जांच का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ था। यहां से मिले सुरागों के बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस, उत्तर प्रदेश पुलिस, हरियाणा पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियां ने साझा अभियान चलाया। एजेंसियां 8 नवंबर को फरीदाबाद स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज में पहुंचीं। यहां से कुछ और बंदूक, पिस्तौल और विस्फोटक सामग्री बरामद हुई।

बड़ी मात्रा में खेप बरामदगी कब हुई?
9 नवंबर को फरीदाबाद के धौज के रहने वाले मदरासी नाम के व्यक्ति को उसके घर से पकड़ा गया। अगले ही दिन यानी 10 नवंबर को विस्फोटक तैयार करने की बड़ी मात्रा में खेप मिली। मात्रा थी 2563 किलो। जांच में मिले सुरागों के बाद फरीदाबाद से हफीज मोहम्मद इश्तियाक को गिरफ्तार किया गया। इश्तियाक मेवात का रहने वाला है और अल-फलाह मस्जिद में इमाम बताया जाता है। यह भी बताया जा रहा है कि इश्तियाक के ही मकान का एक कमरा डॉ. मुजम्मिल ने किराए पर ले रखा था। यह बड़ी खेप उसी कमरे से जब्त हुई। छापों के दौरान 358 किलो विस्फोटक सामग्री और डेटोनेटर/टाइमर भी जब्त किए गए। इस तरह पूरे मॉड्यूल के पास फरीदाबाद के अलग-अलग कमरों से करीब 3000 किलो के विस्फोटक पदार्थ और बम बनाने के उपकरणों को पकड़ा गया।
 


कौन है डॉ. शाहीन?

फरीदाबाद से विस्फोटक सामग्री मिलने के बाद 10 नवंबर को तीसरे डॉक्टर के बारे में पता चला। यह महिला डॉक्टर है। नाम है- डॉ. शाहीन सईद। उसे लखनऊ से गिरफ्तार किया गया। दिल्ली में धमाका भी इसी दिन हुआ था। लोकसेवा आयोग से चयनित होकर शाहीन कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर काम करती थी। हालांकि, 2013 में उसने नौकरी छोड़ दी। उसकी शादी महाराष्ट्र के एक व्यक्ति से हुई थी, 2015 में दोनों अलग हो गए। लंबे वक्त तक गैर-हाजिर रहने की वजह से 2021 में शाहीन को मेडिकल कॉलेज ने बर्खास्त कर दिया था। नौकरी जाने के बाद शाहीन फरीदाबाद चली गई थी। माना जा रहा है कि इसी दौरान वह डॉ. मुजम्मिल के संपर्क में आई। वह डेढ़ साल से परिवार के संपर्क में नहीं थी।

 

महिला डॉक्टर का किस आतंकी नेटवर्क से संबंध?
पूछताछ में खुलासा हुआ है कि डॉ. शाहीन सईद जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े संगठन जमात-उल-मोमिनात की सदस्य थी और महिला डॉक्टर पाकिस्तानियों से संपर्क में थी। जैश सरगना हाफिज सईद ने जमात-उल-मोमिनात बनाकर अपनी बहन सादिया अजहर को इसकी कमान सौंपी थी। शाहीन को संगठन में महिलाओं की भर्ती का निर्देश मिला था।

कमरा नंबर 13 का राज क्या है?
दोबारा फरीदाबाद लौटते हैं। यहां की अल-फलाह यूनिवर्सिटी की इमारत नंबर 17 की तीसरी मंजिल पर कमरा नंबर 13 है। जांच में पता चला है कि डॉ. मुज्जमिल यहीं काम करता था। इसके बगल वाला कमरा डॉ. उमर के नाम था। डॉ. उमर के बारे में माना जा रहा है कि दिल्ली में जिस धमाका हुआ, उस दिन आई20 वही चला रहा था। यह दोनों अच्छे दोस्त थे। यूनिवर्सिटी में वक्त एकसाथ बिताते थे। आरोप है कि ये तीन महीने से आंतकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और अंसर गजावत-उल-हिंद के पाकिस्तानी हैंडलर के संपर्क में थे। 

यूनिवर्सिटी ने क्या कहा?
इन खुलासों के बाद अल-फलाह यूनिवर्सिटी के कई कर्मचारियों से पूछताछ की गई। 12 नवंबर को कुलपति प्रो. डॉ. भूपिंदर कौर आनंद ने बयान जारी कर कहा, "हम इस दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम से व्यथित हैं और इसकी निंदा करते हैं। हमारे डॉक्टरों को जांच एजेंसियों ने हिरासत में लिया है। यूनिवर्सिटी का इन व्यक्तियों से कोई संबंध नहीं है, सिवाय इसके कि वे यहां अपनी आधिकारिक क्षमता में काम कर रहे थे।''

ये भी पढ़ें: दिल्ली ब्लास्ट में एक और खुलासा: ईकोस्पोर्ट में सवार था एक 'आतंकी'... i20 के संपर्क में था; साए की तरह संग रहा

क्या कर रहे थे ये सफेदपोश आरोपी?
हमले की साजिश और आतंकियों की भर्ती दो साल से चल रही थी। पुलिस के अनुसार, सफेदपोश आतंकी नेटवर्क चला रहा यह मॉड्यूल लोगों को कट्टरपंथी बनाने और पैसा व रसद पहुंचाने के लिए एन्क्रिप्टेड चैनलों का इस्तेमाल कर रहा था। सामाजिक-धार्मिक कार्यों की आड़ में पेशेवर नेटवर्क के माध्यम से पैसा जुटाया गया था। ये सभी आतंकी जैश-ए-मोहम्मद और अंसर गजावत-उल-हिंद के संपर्क में थे। उधर, डॉ. शाहीन जिस जमात-उल-मोमिनात से जुड़ी बताई जा रही है, उसके निशाने पर महिलाएं और विशेष तौर पर छात्राएं थीं।


दिल्ली में क्या हुआ?

फरीदाबाद से डॉक्टरों की गिरफ्तारी के बाद जिस दिन विस्फोटक सामग्री का बड़ा जखीरा बरामद हुआ, उसी दिन शाम को दिल्ली के लाल किले के पास चलती कार में धमाका हो गया। यह दिन था 10 नवंबर 2025। इसी दिन सुबह फरीदाबाद से एक आई20 कार चली। उसने बदरपुर बॉर्डर को पार किया और ओखला होते हुए लाल किले के पास बनी सुनहरी मस्जिद पार्किंग में दोपहर 3:19 बजे पहुंची। यह पार्किंग में तीन घंटे खड़ी रही। शाम 6:22 बजे कार पार्किंग से निकली। 24 मिनट बाद लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास ट्रैफिक सिग्नल पर कार में धमाका हो गया। इसमें 12 लोगों की मौत हो गई।

कौन है चौथा डॉक्टर उमर, जो धमाके वाली कार को चला रहा था?
इन सभी कार्रवाईयों के दौरान एक और डॉक्टर का नाम सामने आया, जो इस मॉड्यूल का हिस्सा था। उसका नाम था- डॉ. उमर नबी। वह अल-फलाह यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज में ही डॉ. मुज्जमिल के साथ काम करता था। सुरक्षा एजेंसियों की लगातार दबिश के कारण वह लगातार अपनी जगह बदल रहा था। सीसीटीवी फुटेज की जांच के आधार पर माना जा रहा है कि 10 नवंबर की सुबह वह फरीदाबाद से आई20 लेकर रवाना हुआ। दिल्ली में आने के बाद वह रामलीला मैदान के पास आसफ अली रोड पर स्थित एक मस्जिद में तीन घंटे रहा। धमाके से पहले लाल किले के पास पार्किंग में वह तीन घंटे खड़ा रहा और इस दौरान मोबाइल इंटरनेट अपने साथियों की गिरफ्तारी की खबरें देखता रहा।

उठते सवाल
1. अमोनियम नाइट्रेट आया कहां से?
फरीदाबाद में भारी मात्रा में विस्फोटक की जब्ती और उसके कुछ ही घंटे बाद दिल्ली में हुए धमाके के बाद बड़ा सवाल यही है कि डॉक्टरों का सफेदपोश टेरर मॉड्यूल इतना अमोनियम नाइट्रेट लाया कहां से? इतनी भारी मात्रा इसे जुटाना कैसे संभव हुआ? किस-किस स्तर पर किसने मदद की और इसकी भनक तक किसी को नहीं लगी?

आतंकियों ने 2019 के पुलवामा हमले में भी आरडीएक्स के साथ अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया था, जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे। 2000-2011 के दौरान मुंबई और राष्ट्रीय राजधानी में हुए विभिन्न हमलों में इंडियन मुजाहिदीन ने इसी रसायन का इस्तेमाल किया था।

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बंगाल पुलिस (फाइल फोटो) - फोटो : पीटीआई

2. दो कार से आए थे आतंकी?
माना जा रहा है कि खतरा अभी टला नहीं है। अब भी एक संदिग्ध आतंकी के दिल्ली में होने का अंदेशा है। यह खुलासा पार्किंग और वहां लगे सीसीटीवी कैमरों से हुआ है। शुरुआती जांच के मुताबिक, दो कारें बदरपुर के रास्ते एक साथ दिल्ली पहुंची थीं और चांदनी चौकी पार्किंग में भी एक साथ थीं। इस कार में संदिग्ध सवार था और वह आई-20 कार में सवार संदिग्धों से बात कर रहा था। 12 नवंबर की शाम लाल रंग की यह कार फरीदाबाद में ही मिली है। हालांकि, धमाके वाले दिन क्या यह कार दिल्ली में थी और अगर ऐसा है तो इसे कौन चला रहा था, इसका खुलासा होना बाकी है।

3. बौखलाहट में हुआ हमला?
अब तक की जांच से इस आशंका को बल मिल रहा है कि डॉ. उमर अपनी गिरफ्तारी के डर से भागा था। बौखलाहट व घबराहट में विस्फोट हुआ। इस सवाल का जवाब मिलना बाकी है कि सोची-समझी साजिश के तहत यह धमाका हुआ या फिर यह दुर्घटनावश हुआ। माना जा रहा है कि उमर ही कार में विस्फोटक ले जा रहा था। संभवतः यह अमोनियम नाइट्रेट था। शुरुआती जांच में अमोनियम नाइट्रेट, ईंधन तेल और डेटोनेटर के इस्तेमाल की आशंका सामने आई है।

4. क्या यह फिदायीन हमला नहीं था?
सुरक्षा एजेंसियां धमाके को आत्मघाती हमला नहीं मान रही हैं। इसके पीछे तर्क है कि उमर ने कार से सीधे टक्कर नहीं मारी, जैसा कि आत्मघाती हमलावर करते हैं। बम भी पूरी तरह विकसित नहीं था। धमाके से मौके पर कोई गड्ढा भी नहीं हुआ। कोई छर्रे या धातु की कोई अन्य वस्तु भी बरामद नहीं हुई। धमाके के समय कार चल रही थी। कार में जितना विस्फोटक था, अगर उसका ठोस साजिश के अनुसार इस्तेमाल किया गया होता, तो नुकसान बहुत बड़ा होता।
 

5. क्या तुर्किए गए थे संदिग्ध, कब करना चाहते थे हमला?
डॉ. मुजम्मिल के मोबाइल फोन से मिले डेटा के आधार पर यह माना जा रहा है कि जनवरी 2025 में लाल किला इलाके की कई बार रेकी की गई थी। न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, लाल किला इलाके को गणतंत्र दिवस के दिन निशाना बनाने की साजिश थी, लेकिन उस वक्त पुलिस गश्त तेज होने की वजह से यह साजिश नाकाम हो गई। इसके बाद डॉ. उमर 6 दिसंबर को धमाका करना चाहता था, लेकिन फरीदाबाद में उसके साथियों की गिरफ्तारी के बाद वह हड़बड़ा गया। यह भी माना जा रहा है कि डॉ. मुजम्मिल और डॉ. उमर 2021 में तुर्किए भी गए थे। दोनों के पासपोर्ट पर तुर्किए के स्टैम्प मिले हैं।

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