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Supreme Court: 'दिव्यांगजनों के लिए भी फुटपाथ जरूरी', अदालत ने केंद्र सरकार को गाइडलाइन बनाने का आदेश दिया

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: हिमांशु चंदेल Updated Thu, 07 Aug 2025 02:52 PM IST
सार

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को देशभर में सुरक्षित और दिव्यांगजनों के लिए सुलभ फुटपाथ सुनिश्चित करने के लिए चार हफ्तों में राष्ट्रीय दिशा-निर्देश तैयार करने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि यदि केंद्र विफल रहता है तो कोर्ट स्वयं दिशानिर्देश तैयार करेगा। यह आदेश डॉक्टर एस. राजासेकरन की याचिका पर दिया गया, जिसमें फुटपाथों की खराब हालत और अतिक्रमण को चुनौती दी गई थी।

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Footpaths For All Supreme Court Directs government Frame Guidelines Accessible Safe Including Disabled Persons
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : एएनआई
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विस्तार
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देश के सभी नागरिकों, विशेषकर दिव्यांगों और बुजुर्गों को सुरक्षित फुटपाथ उपलब्ध कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह चार हफ्तों के भीतर ऐसे दिशा-निर्देश बनाए, जो देशभर में सभी फुटपाथों को सुलभ और अतिक्रमणमुक्त बनाएं। यह आदेश डॉक्टर एस. राजासेकरन द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें उन्होंने भारत के फुटपाथों की दयनीय स्थिति और दिव्यांगजनों की परेशानियों को उजागर किया था।


याचिकाकर्ता ने बताया कि देश में कई जगह फुटपाथ हैं ही नहीं, और जहां हैं वहां या तो टूटे-फूटे हैं या अतिक्रमण के शिकार हैं। इससे न सिर्फ दिव्यांगों की आवाजाही मुश्किल होती है बल्कि आम पैदल यात्रियों की जान भी खतरे में रहती है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का हवाला देते हुए दलील दी गई कि हर नागरिक को समानता और जीवन का अधिकार है, जिसमें सुरक्षित चलना भी शामिल है।
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तीन अहम मुद्दों पर गाइडलाइन बनाने को कहा
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि अभी तक इस विषय पर कोई ठोस राष्ट्रीय दिशा-निर्देश नहीं हैं। इसलिए केंद्र सरकार को तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर नियम बनाने होंगे। पहला, सभी नई और पुरानी सड़कों पर तकनीकी मानकों के साथ फुटपाथ की अनिवार्यता तय करना। दूसरा, डिजाइन ऐसा हो कि दिव्यांगजनों को कहीं भी दिक्कत न हो। तीसरा, अतिक्रमण को हटाने और रोकने के लिए प्रभावी व्यवस्था सुनिश्चित करना।

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अगर केंद्र फेल हुआ तो सुप्रीम कोर्ट बनाएगा नियम

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अगर केंद्र सरकार तय समय में गाइडलाइन नहीं बनाती है, तो अदालत खुद अमिकस क्यूरी (अदालत के मित्र) की मदद से दिशानिर्देश तैयार करेगी। इसके साथ ही राज्यों को छूट दी गई है कि वे या तो इन राष्ट्रीय गाइडलाइनों को अपनाएं या अपनी गाइडलाइंस बनाएं, लेकिन मानक एक जैसे होने चाहिए।

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अगली सुनवाई एक सितंबर को, जवाबदेही तय होगी

राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को भी निर्देश दिए गए हैं कि वह इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए हलफनामा दाखिल करे। अगली सुनवाई एक सितंबर 2025 को होगी, जिसमें केंद्र और राज्यों की जवाबदेही की समीक्षा की जाएगी। कोर्ट के इस आदेश ने दिव्यांगों और पैदल यात्रियों के अधिकारों को मजबूती से सामने रखा है।


 
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