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Independence Day 2022 Azadi Ka Amrit Mahotsav from Veer Savarkar to Sardar Patel 5 most popular Freedom Fighte
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पांच चर्चित सेनानियों की कहानी: किसी ने जेल की दीवारों पर लिखीं 10,000 कविताएं, किसी ने छोड़ दी प्रशासनिक सेवा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Sat, 13 Aug 2022 12:08 PM IST
आजादी के 75वें अमृत वर्ष पर अमर उजाला आपको भारत की स्वतंत्रता के उन पांच नायकों के बारे में बता रहा है, जो मौजूदा दौर में स्वतंत्रता संग्राम में अपनी-अपनी भूमिकाओं की वजह से सबसे ज्यादा चर्चा में रहे।
इस साल 15 अगस्त को भारत को आजाद हुए 75 वर्ष पूरे हो जाएंगे। इतिहास में इस दिन को भारत के लिए एक नई शुरुआत के तौर पर देखा जाता रहा है। हालांकि, अंग्रेजों से देश को आजाद कराने का संघर्ष सिर्फ इस 15 अगस्त की तारीख या वर्ष 1947 तक ही सीमित नहीं है। यह संघर्ष देश के उन स्वतंत्रता सेनानियों की वजह से भी पहचाना जाता है, जिन्होंने तकरीबन 100 साल तक चलने वाले ब्रिटिश राज के खिलाफ न सिर्फ जंग छेड़ी और उनके शासन को भारत से खदेड़ने में अहम भूमिका निभाई, बल्कि इस पूरे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वे पूरे देश में सबसे ज्यादा चर्चा में रहे।
आजादी के 75वें अमृत वर्ष पर अमर उजाला आपको भारत की स्वतंत्रता के उन पांच नायकों के बारे में बता रहा है, जो मौजूदा दौर में स्वतंत्रता संग्राम में अपनी-अपनी भूमिकाओं की वजह से सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। चूंकि महात्मा गांधी इस पूरे स्वतंत्रता संग्राम के नेतृत्वकर्ता रहे, इसलिए उनके बारे में इतिहास में काफी कुछ लिखा-पढ़ा गया है। हालांकि, उनके साथ भारत की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले और भी कई नाम हैं, जिनकी कहानी हम आपको बताएंगे...
जवाहरलाल नेहरू
- फोटो : सोशल मीडिया
1. जवाहर लाल नेहरू
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की पूरी दुनिया में पहचान देश के इसी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बनी। नेहरू का जन्म कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में 14 नवंबर 1889 में हुआ था। वे पंडित मोतीलाल नेहरू और स्वरूप रानी के इकलौते बेटे थे। इलाहबाद में जन्मे नेहरू 1912 में कांग्रेस से जुड़े। वे आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़े। चाहे असहयोग आंदोलन की बात हो या फिर नमक सत्याग्रह या फिर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की बात। उन्होंने हर मौके पर गांधी जी के साथ प्रदर्शनों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ लखनऊ में हुए प्रदर्शन में नेहरू ने हिस्सा लिया था। वे प्रदर्शन के दौरान हुई झड़प में घायल भी हुए। नमक आंदोलन के दौरान उन्होंने जेल भी काटी।
भले ही वह गांधीजी की तरह अहिंसात्मक सत्याग्रही थे, लेकिन उन्हें आंदोलन के दौरान पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं। वे कुल नौ बार जेल गए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महामंत्री बनने के बाद नेहरू लाहौर अधिवेशन में देश के बुद्धिजीवियों और युवाओं के नेताओं के तौर पर उभर कर सामने आए। गोलमेज सम्मेलन हो या कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच विवाद हो, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कारावास जाना हो, जवाहर लाल नेहरू ने अपने दमदार नेतृत्व से देश की आजादी में अपना पूरा योगदान दिया। नेहरू की भूमिका अंग्रेजों से देश को आजाद करने तक की नहीं है, आजादी के बाद भारत को दुनिया के सामने एक मजबूत राष्ट्र के तौर पर पेश करने में भी नेहरू ने अहम भूमिका निभाई।
सरदार पटेल।
- फोटो : Amar Ujala
2. सरदार वल्लभ भाई पटेल
31 अक्तूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड में जन्मे वल्लभ भाई, देश के ऐसे योद्धा, नेताओं में से एक थे जिन्हें राष्ट्र उनकी निस्वार्थ सेवा के लिए याद करता है। एक साधारण परिवार का लड़का अपनी काबिलियत और मेहनत के बल पर देश की आजादी के बाद पहले उप प्रधानमंत्री, पहले गृह मंत्री, सूचना और रियासत विभाग के मंत्री भी बनें। हालांकि, उनकी लोकप्रियता की यात्रा देश के आजाद होने से काफी पहले शुरू हो गई थी।
पेशे से वकील सरदार पटेल महात्मा गांधी के प्रबल समर्थक थे। स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1918 में खेड़ा सत्याग्रह के बाद से महात्मा गांधी के साथ उनका जुड़ाव गहरा हो गया था। यह सत्याग्रह फसल खराब होने के बाद से लैंड रेवेन्यू यानी भू-राजस्व मूल्यांकन के भुगतान से छूट के लिए शुरू किया गया था। इसके लिए पटेल की प्रशंसा में गांधी ने उन्हें श्रेय देते हुए कहा था कि यह अभियान इतनी सफलतापूर्वक (सरदार पटेल के बिना) नहीं चलाया जा सकता था। आंदोलनों के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। गुलाम भारत में उन्होंने बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया। सत्याग्रह की सफलता के बाद वहां की महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि दे दी।
जब देश आजाद हुआ तो नई सरकार आने की तैयारी शुरू हो गई। उम्मीद थी कि जो कांग्रेस का नया अध्यक्ष होगा, वही आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री होगा। सरदार पटेल की लोकप्रियता के चलते हुए कांग्रेस कमेटी ने पूर्ण बहुमत से उनका नाम प्रस्तावित किया। सरदार पटेल देश की पहले प्रधानमंत्री बनने ही वाले थे लेकिन महात्मा गांधी के कहने पर वह पीछे हट गए और अपना नामांकन वापस ले लिया। वे देश के पहले गृह मंत्री बने। हालांकि, उनके सामने पहली और सबसे बड़ी चुनौती बिखरी हुई देसी रियासतों को भारत में मिलाना था। छोटे बड़े राजा, नवाबों को भारत सरकार के अधीन लाना आसान नहीं था लेकिन पटेल ने बिना किसी राजा का अंत किए रजवाड़े खत्म कर दिए। ये उनकी उपलब्धि ही है कि पटेल ने 562 छोटी बड़ी रियासतों का भारत संघ में विलय किया।
डॉ. भीमराव अंबेडकर
- फोटो : सोशल मीडिया
3. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर
भारत रत्न से सम्मानित डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में महू (जिसका नाम अब डॉ. अम्बेडकर नगर कर दिया है), मध्य प्रदेश में हुआ था। आजाद भारत को गणतंत्र के मार्ग पर ले जाने बनाने में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की भूमिका अहम है। बाबा साहेब को संविधान निर्माता के तौर पर भी जाना जाता है। उनका पूरा जीवन संघर्षरत रहा है। अंबेडकर भारत की आजादी के बाद देश के संविधान के निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दिया। कमजोर और पिछड़े वर्ग के अधिकारों के लिए बाबा साहेब ने पूरा जीवन संघर्ष किया। अपने करियर में उन्हें जात-पात और असमानता का सामना करना पड़ा। जिसके बाद बाबा साहेब ने दलित समुदाय को समान अधिकार दिलाने के लिए कार्य करना शुरू किया।
अंबेडकर ने ब्रिटिश सरकार से पृथक निर्वाचिका की मांग की थी, जिसके तहत किसी समुदाय के प्रतिनिधि के चुनाव में केवल उसी समुदाय के लोग वोट डाल सकेगें। ब्रिटिश साम्राज्य ने इसे मंजूरी भी दे दी, लेकिन गांधी जी ने इसके विरोध में आमरण अनशन किया तो अंबेडकर ने अपनी मांग को वापस ले लिया। बाद में अंबेडकर ने लेबर पार्टी का गठन किया। संविधान समिति के अध्यक्ष नियुक्त हुए। आजादी के बाद अंबेडकर ने बतौर कानून मंत्री पदभार संभाला। बाद में बॉम्बे नॉर्थ सीट से देश का पहला आम चुनाव लड़ा, हालांकि हार का सामना करना पड़ा। बाबा साहेब राज्यसभा से दो बार सांसद चुने गए। 6 दिसंबर 1956 को डॉ. भीमराव अंबेडकर का निधन हो गया। निधन के बाद साल 1990 में बाबा साहेब को भारत के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया।
वीर सावरकर
- फोटो : SAVARKARSMARAK.COM
4. विनायक दामोदर सावरकर
माना जाता है इतिहास के पन्नों ने आजादी की लड़ाई में वीर सावरकर के योगदान को वाले जगह नहीं दी जिसके वो हकदार थे। लेकिन उनके चाहने वाले आज भी उन्हें आजादी का ऐसा सिपाही मानते हैं जो जीवन भर हिंदुत्व के सिद्धांतों के साथ ब्रिटिश सरकार से लोहा लेता रहा। 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर गांव में जन्मे सावरकर का व्यक्तित्व अपने आप में ही काफी रोचक रहा। सावरकर के बारे में सबसे मजेदार बात यह है कि उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री इंग्लैंड से ली थी, लेकिन भारत में अंग्रेजी राज का विरोध करने के कारण अंग्रेजों ने उनसे उनकी डिग्री तक छीन ली। आजादी के दौरान वह उन लोगों में से थे, जिन्होंने भारत विभाजन का विरोध किया। वह इसके लिए गांधी जी को जिम्मेदार ठहराते थे।
सावरकर की पहचान क्रांतिकारी, कवि, समाजसेवी, भाषाविद के तौर पर भी है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन को उन्होंने अपनी कलम से सूचीबद्ध किया था। सावरकर को उस दौर का सबसे बड़ा हिंदूवादी नेता भी माना जाता है। वह अखिल भारतीय हिंदू महासभा के छह बाहर राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। जीवनभर वह हिंदुत्व का झंडा थामकर संघर्ष करते रहे। लेकिन हिंदुत्व के प्रति उनका यह प्रेम कुछ लोगों को रास नहीं आया। खुद कांग्रेस में उनके कट्टर हिंदुत्व के कई विरोधी रहे। अंग्रेजों को भी उनका विरोध का तरीका रास नहीं आया और सावरकर को अपने जीवनकाल के कई वर्ष जेल में बिताने पड़े। इनमें सबसे लंबी जेल उन्हें 1911 से लेकर 1921 तक हुई। वे अंडमान की सेल्युलर जेल में काले पानी की सजा में बंद रखा गया। वे देश के इकलौते ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें आजीवन कारावास की दोहरी सजा सुनाई गई। कहा जाता है
अंडमान जेल में रहने के दौरान उन्होंने की पत्थरों से जेल की दीवारों पर दस हजार से ज्यादा कविताएं लिखीं। जिन्हें बाद में कलमबद्ध किया। 1921 में उन्हें जेल से मुक्त कर दिया गया। जिसके बाद वह कुछ समय के लिए इंग्लैंड चले गए। यहां अंग्रेज सरकार की मुखालफत करने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर भारत वापस भेज दिया गया। इस दौरान पानी के जहाज से लौटते समय वह उससे कूदकर फरार हो गए। हालांकि फिर पकड़े गए और जेल भेज दिया गया।
सुभाष चंद्र बोस (फाइल फोटो)
- फोटो : गूगल
5. सुभाष चंद्र बोस
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। हाल ही में देश ने उनकी 125वीं जयंती मनाई। नेताजी का स्वतंत्रता संग्राम गांधी, नेहरू समेत अधिकतर सेनानियों से अलग रहा। जहां ये नेता राजनीतिक और आंदोलनकारी नीतियों के जरिए देश को ब्रिटिश शासन से आजाद कराना चाहते थे। वहीं, बोस ने देश की आजादी के लिए कूटनीति को अपनाया। 1920 में बोस ने आईसीएस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। लेकिन अंग्रेजों की गुलामी न करने की उनकी सोच ने उन्हें अप्रैल 1921 में सिविल सर्विस से इस्तीफा देने और भारत में चल रहे आंदोलनों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। वे पद से इस्तीफा देकर आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए। वे महात्मा गांधी के काफी करीब रहे, जिसकी वजह से अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया। जेल से बाहर आने के बाद वे फिर कांग्रेस से जुड़े और अलग-अलग आंदोलनों में अहम भूमिका निभाई।
आजादी प्राप्ति की मुहिम को तेज करने के लिए यूरोप में भारतीय सेना का गठन किया गया। उन्होंने 1938 में अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक नामक राजनीतिक इकाई की स्थापना भी की। बोस द्वारा दिया गया 'जय हिंद का नारा' आज पूरे देश का नारा है। इसके अलावा 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' भी उनके लोकप्रिय नारों में से एक रहा है।
स्वतंत्रता के लिए बोस की आजाद हिंद फौज के गठन की काफी दिलचस्प रही है। दरअसल, फॉरवर्ड ब्लॉक के गठन के दौरान उन्हें एक बार फिर जेल में डाल दिया गया। लेकिन आमरण अनशन के चलते उन्हें रिहा कर दिया गया। इसी मौके का फायदा उठाते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस 26 जनवरी 1941 को वह काबुल के रास्ते मॉस्को और इसके बाद जर्मनी पहुंच गए। यहां से उन्होंने भारतीयों तक स्वतंत्रता का संदेश पहुंचाने की ठानी और जनवरी 1942 में आज़ाद हिंद रेडियो से कई भाषाओं में नियमित प्रसारण शुरू किया। इसके बाद वे जापान पहुंचे और 1 सितंबर 1942 को आजाद हिन्द फौज के गठन की घोषणा की। ब्रिटिश राज के खिलाफ आजाद हिंद फौज जापान के सैनिकों के साथ म्यांमार रवाना हुई और वहां से भारत में पहुंच गई। इसी बीच जापान के आत्मसमर्पण की घोषणा के बाद सुभाष चंद्र बोस लौट रहे थे। इसी दौरान 18 अगस्त 1945 में कथित विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
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