राकेश टिकैत की अगुवाई वाली भारतीय किसान यूनियन टूटेगी, इसकी पटकथा तो किसान आंदोलन के दौरान ही लिखनी शुरू हो गई थी। रही सही कसर उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा के चुनाव और चुनाव के दौरान राकेश टिकैत की अतिसक्रियता के बाद आए परिणामों ने पूरी कर दी। किसान यूनियन से जुड़े आंदोलनकारियों के मुताबिक अब जब भारतीय किसान यूनियन में टूट के साथ नया संगठन बन गया है, तो न सिर्फ सरकार नए संगठन को तवज्जो देगी, बल्कि उसी संगठन को असली संगठन मान करके आगे भी बढ़ सकती है। हालांकि राकेश टिकैत के नेतृत्व वाली भारतीय किसान यूनियन का कहना है कि उनका संगठन टूटा नहीं है बल्कि कुछ लोगों को उन्होंने निकाल कर बाहर कर दिया है। फिलहाल भारतीय किसान यूनियन की टूट के साथ संगठन भले अराजनैतिक हो, लेकिन उसका राजनीतिकरण होना पूरी तरीके से तय माना जा रहा है।
भारतीय किसान यूनियन के साथ में लंबे समय से जुड़े आंदोलनकारी अमनप्रीत कहते हैं कि विवाद उसी वक्त से शुरू हो गया था, जब किसान आंदोलन के दौरान लाल किला पर हंगामा शुरू हो गया था। वह कहते हैं कि किसान आंदोलन के दौरान इस बात को लेकर रणनीति बनी थी कि हम लोग उग्र आंदोलन बिल्कुल नहीं करेंगे। शांतिपूर्वक आंदोलन को ही भले सालों तक खींचना पड़े, आगे बढ़ाया जाएगा और अपनी मांगें मनवाई जाएंगी। लेकिन आंदोलन से जुड़े बड़े लोगों के उकसावे पर इस तरीके के उग्र प्रदर्शन किए गए, जिसे लेकर संगठन का धड़ा पूरी तरह से नाराज हो गया। भारतीय किसान यूनियन से जुड़े एक वरिष्ठ आंदोलनकारी कहते हैं कि उसके बाद किए गए कई आंदोलनों में लखीमपुर आंदोलन को लेकर भी भारतीय किसान यूनियन के भीतर तरह तरह के विवाद पैदा हुए। नतीजा यह हुआ कि लखीमपुर के किसान आंदोलन से जुड़े कई किसान नेताओं ने संगठन का दामन उसी वक्त छोड़ दिया था। किसान नेता अमनदीप कहते हैं कि जिस तरीके से राकेश टिकैत वाली भारतीय किसान यूनियन कई मामलों में राजनीतिकरण कर रही थी, उससे यूनियन के भटकाव की संभावनाएं बढ़ती जा रही थीं। वह कहते हैं कि लाल किला से लेकर के उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा के चुनावों तक में इतनी ज्यादा ज्यादा बगावत हो गई कि तय हो गया था कि राकेश टिकैत की अगुवाई वाली भारतीय किसान यूनियन के दो फाड़ होने तय हैं।
भारतीय किसान यूनियन से जुड़े पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाले ओपी मलिक कहते हैं कि जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे, तो गठवाला खाप के चौधरी राजेंद्र सिंह लगातार इस बात पर जोर दे रहे थे कि भारतीय किसान यूनियन के बड़े लंबरदार चुनाव में अपना पक्ष और विपक्ष के तौर पर अपना नजरिया न रखें। लेकिन राकेश टिकैत की अति सक्रियता से संगठन के भीतर विरोध पैदा होना शुरू हो गया था। क्योंकि राकेश टिकैत की अगुवाई वाले भारतीय किसान यूनियन में एक धड़ा ऐसा भी था, जो भाजपा को ले कर सॉफ्ट कॉर्नर रखता था। इस बात की भनक राकेश टिकैत को भी थी। यूनियन से जुड़े वरिष्ठ आंदोलनकारियों के मुताबिक राकेश टिकैत इस बात से अंदर ही अंदर नाराज रहते थे और भाजपा के समर्थन में लोगों को ऐसा ना करने के लिए भी कहते थे। यही वजह थी कि भारतीय किसान यूनियन में टकराव पैदा होने लगा।
भारतीय किसान यूनियन से अलग होकर बनाई गई यूनियन के अध्यक्ष राजेश चौहान कहते हैं कि भाकियू अपने मूल मुद्दों से न सिर्फ भटक गई थी, बल्कि उसके नेता राजनीति भी करने लगे थे। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि राकेश टिकट और नरेश टिकट पूरी तरह से राजनीतिक व्यक्तित्व की तरह आंदोलनों में अपनी भागीदारी करते थे। वे कहते हैं कि हमारा बनाया गया संगठन पूरी तरीके से अराजनैतिक है। कई सालों तक महेंद्र सिंह टिकैत के साथ काम करने वाले राजेश चौहान कहते हैं कि उनकी यह नई यूनियन महेंद्र सिंह टिकैत के आदर्शों और उनके सिद्धांतों पर ही चलेगी।
भारतीय किसान यूनियन से जुड़े आंदोलनकारियों का भी मानना है कि राकेश टिकैत के संगठन से अलग होकर बने संगठन का राजनीति में बखूबी इस्तेमाल भी किया जाएगा। दिल्ली में लंबे समय तक आंदोलन पर बैठे एक आंदोलनकारी और भारतीय किसान यूनियन के बड़े ओहदेदारों ने बताया कि जो नया संगठन बनाया गया है उसमें ज्यादातर लोग सेंट्रल यूपी और पूर्वांचल से ताल्लुक रखते हैं। इसमें कई ऐसे लोग भी हैं जिनका परोक्ष या अपरोक्ष रूप से भाजपा से नाता भी रहा है। ऐसे में आने वाले चुनावों में मध्य यूपी और खास कर पूर्वांचल में इनका इस्तेमाल भी किया जा सकता है। पश्चिम यूपी समेत अन्य राज्यों के किसान संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर सरकार अपने पक्ष में भी इस्तेमाल कर सकती है। राकेश टिकैत ग्रुप के किसान यूनियन से जुड़े जानकारों का कहना है कि नए बने संगठन में पार्टी प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक उत्तर प्रदेश सरकार के किसानों से जुड़े आयोग के सदस्य भी रह चुके हैं। जबकि इसी संगठन से जुड़े कुछ लोग और उनके परिवार के लोग भी सीधे तौर पर सक्रिय राजनीति में हिस्सेदारी करते आ रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन राकेश टिकैत ग्रुप से जुड़े पदाधिकारियों का कहना है कि जो लोग उनके आंदोलन को शुरुआत से ही पीछे धकेलने में लगे हुए थे उन सब को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।
नए बने भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) संगठन के पदाधिकारियों का कहना है कि राकेश टिकैत और नरेश टिकैत ने भारतीय जनता पार्टी को वोट न देने के लिए बीते उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल का समर्थन किया। पदाधिकारियों का कहना है कि जब आप राजनीतिक न होने की बात करते हो, तो कैसे किसी राजनैतिक दलों को समर्थन कर सकते हैं। लेकिन टिकैत बंधुओं ने भारतीय किसान यूनियन की विचारधारा से हटकर राजनीति करनी शुरू कर दी थी। नए संगठन से जुड़े पदाधिकारियों का कहना है कि यही वजह है कि वह महेंद्र सिंह टिकैत के आदर्शों और उसूलों पर आगे बढ़ते हुए नए संगठन के साथ उनके आंदोलन को न सिर्फ आगे बनाएंगे बल्कि अमलीजामा भी बनाएंगे।
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