देश में मीडिया में पेड न्यूज, फेक न्यूज, टीआरपी के साथ छेड़छाड़, मीडिया ट्रायल्स, पक्षपात रिपोर्टिंग जैसे मामलों की जांच के लिए एक वैधानिक शक्ति की बात काफी दिनों से हो रही है। आईटी संसदीय पैनल ने मीडिया काउंसिल की स्थापना की सिफारिश की है। इससे प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबरों पर रोक लगाई सके।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर की अगुवाई वाली पैनल ने फर्जी खबरों को लेकर होने वाली परेशानी को लेकर चिंता व्यक्त की और समिति ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) से विधि आयोग की सिफारिशों को जल्द से जल्द लागू करने के लिए कानून और न्याय मंत्रालय को आगे बढ़ाने के लिए कहा।
मीडिया आयोग के गठन का दिया सुझाव
साथ ही कहा कि पेड न्यूज को अपराध की सूची में लाया जाए ताकि कोई इसका इस्तेमाल चुनाव में अपने फायदे के लिए न कर पाए और बुधवार को समिति ने संसद में मीडिया काउंसिल की स्थापना पर आम सहमति बनाने और हितधारकों के बीच परामर्श के लिए विशेषज्ञों को शामिल करते हुए एक मीडिया आयोग के गठन का भी सुझाव दिया।
सुझाव में कहा गयाहै मीडिया आयोग को मीडिया से जुड़े सभी जटिल मुद्दों पर गौर करना चाहिए और अपनी स्थापना के छह महीने के भीतर समिति को अपनी रिपोर्ट सौंपनी चाहिए। समिति ने यह भी मांग की कि केबल नेटवर्क नियम, 2014 के नियम 6(1)(ई) में "राष्ट्र विरोधी रवैया" शब्द को ठीक से परिभाषित किया जाना चाहिए क्योंकि यह निजी चैनलों के अनावश्यक उत्पीड़न का कारण हो सकता है।
नैतिकता से समझौता किया जा रहा है
समिति ने कहा कि मीडिया जो कभी हमारे लोकतंत्र में नागरिकों के हाथों में सबसे भरोसेमंद हथियार था और सार्वजनिक हित के संरक्षक के रूप में काम करता था, धीरे-धीरे अपनी विश्वसनीयता और अखंडता खो रहा है और यहां मूल्यों और नैतिकता से समझौता किया जा रहा है।
संसदीय पैनल ने कहा कि मौजूदा नियामक संस्थाएं जैसे प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) और न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी (एनबीएसए) उतनी प्रभावी नहीं हैं, उनकी प्रभावकारिता सीमित है।
पैनल ने सभी प्रकार के मीडिया को कवर करने के लिए पीसीआई के पुनर्गठन की सिफारिश की। पैनल ने कहा कि पीसीआई, प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करने वाला एक वैधानिक निकाय है, यह शिकायतों पर विचार कर सकता है और समाचार पत्रों, समाचार एजेंसियों, संपादक या संबंधित पत्रकार को चेतावनी देने, निंदा करने या निंदा करने का अधिकार रखता है। हालांकि, इसके द्वारा जारी की गई सलाह के रूप में अनुपालन को लागू करने की शक्ति नहीं है।
खबरों के अनुसार, मीडिया सेक्टर के लिए बन रहे कानून में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को कवर किया जाएगा। कहा जा रहा है कि प्रस्तावित कानून, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डिजिटल मीडिया, सिनेमा और नेटफ्लिक्स और हॉटस्टार जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भी लागू किया जाएगा।
एक निश्चित समय में इंटरनेट सेवा बंद करने लिए स्पष्ट मापदंड की कमी को लेकर संसदीय समिति ने सरकार की खिंचाई की है।
संचार और सूचना प्रौद्योगिकी वाली स्थायी समिति ने ‘दूरसंचार सेवा/इंटरनेट निलंबन और उसके प्रभाव’ पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार इंटरनेट बंद करने के बजाय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को बंद करने का विकल्प तलाशे, जिनका संकट के समय आतंकी या राष्ट्रविरोधी ताकतें खास क्षेत्र में अशांति फैलाने के लिए दुरुपयोग करते हैं।
समिति ने सुझाव दिया है कि सरकार ऐसी संभावना तलाशने के लिए व्यापक अध्ययन कराए। ताकि इंटरनेट सेवा बंद होने पर अर्थव्यवस्था पर उसके प्रभाव का आकलन किया जा सके और लोगों की सुरक्षा और आपात स्थिति में उससे किस तरह कारगर तरीके से निपटा जा सकता है।
संसद में पेश इस रिपोर्ट में जल्द एक ऐसा तंत्र विकसित करने पर भी जोर दिया गया है, जिससे दूरसंचार और इंटरनेट को मेरिट के आधार पर बंद करने का फैसला हो सके।
समिति ने सेवा को चुनिंदा तौर पर बंद करने को लेकर कहा, यदि दूरसंचार विभाग इंटरनेट को पूरी तरह बंद करने के बजाय फेसबुक, व्हाट्सएप, टेलिग्राम आदि सेवाओं को बंद करने के विकल्पों को तलाशे तो इससे बड़ी राहत मिलेगी। इससे वित्तीय सेवाओं, स्वास्थ्य, शिक्षा और बाकी अन्य सेवाएं प्रभावित नहीं होंगी।
इसके अलावा अशांति या उपद्रव के दौरान आम लोगों को कम से कम असुविधा होगी और अफवाह फैलाने पर भी अंकुश लगेगा। समिति ने इस बात पर जोर दिया है कि विभाग दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (टीआरएआई) के सुझाव पर तत्काल गौर करे और ऐसी नीति बनाए जिससे चुनिंदा तौर पर ओटीटी सेवा को बंद करने के बजाय अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रोक लगे, जो संकट के समय आतंकियों और देशविरोधी ताकतों के टूल बनते हैं।
विस्तार
देश में मीडिया में पेड न्यूज, फेक न्यूज, टीआरपी के साथ छेड़छाड़, मीडिया ट्रायल्स, पक्षपात रिपोर्टिंग जैसे मामलों की जांच के लिए एक वैधानिक शक्ति की बात काफी दिनों से हो रही है। आईटी संसदीय पैनल ने मीडिया काउंसिल की स्थापना की सिफारिश की है। इससे प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबरों पर रोक लगाई सके।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर की अगुवाई वाली पैनल ने फर्जी खबरों को लेकर होने वाली परेशानी को लेकर चिंता व्यक्त की और समिति ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) से विधि आयोग की सिफारिशों को जल्द से जल्द लागू करने के लिए कानून और न्याय मंत्रालय को आगे बढ़ाने के लिए कहा।
मीडिया आयोग के गठन का दिया सुझाव
साथ ही कहा कि पेड न्यूज को अपराध की सूची में लाया जाए ताकि कोई इसका इस्तेमाल चुनाव में अपने फायदे के लिए न कर पाए और बुधवार को समिति ने संसद में मीडिया काउंसिल की स्थापना पर आम सहमति बनाने और हितधारकों के बीच परामर्श के लिए विशेषज्ञों को शामिल करते हुए एक मीडिया आयोग के गठन का भी सुझाव दिया।
सुझाव में कहा गयाहै मीडिया आयोग को मीडिया से जुड़े सभी जटिल मुद्दों पर गौर करना चाहिए और अपनी स्थापना के छह महीने के भीतर समिति को अपनी रिपोर्ट सौंपनी चाहिए। समिति ने यह भी मांग की कि केबल नेटवर्क नियम, 2014 के नियम 6(1)(ई) में "राष्ट्र विरोधी रवैया" शब्द को ठीक से परिभाषित किया जाना चाहिए क्योंकि यह निजी चैनलों के अनावश्यक उत्पीड़न का कारण हो सकता है।
नैतिकता से समझौता किया जा रहा है
समिति ने कहा कि मीडिया जो कभी हमारे लोकतंत्र में नागरिकों के हाथों में सबसे भरोसेमंद हथियार था और सार्वजनिक हित के संरक्षक के रूप में काम करता था, धीरे-धीरे अपनी विश्वसनीयता और अखंडता खो रहा है और यहां मूल्यों और नैतिकता से समझौता किया जा रहा है।
संसदीय पैनल ने कहा कि मौजूदा नियामक संस्थाएं जैसे प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) और न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी (एनबीएसए) उतनी प्रभावी नहीं हैं, उनकी प्रभावकारिता सीमित है।
पैनल ने सभी प्रकार के मीडिया को कवर करने के लिए पीसीआई के पुनर्गठन की सिफारिश की। पैनल ने कहा कि पीसीआई, प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करने वाला एक वैधानिक निकाय है, यह शिकायतों पर विचार कर सकता है और समाचार पत्रों, समाचार एजेंसियों, संपादक या संबंधित पत्रकार को चेतावनी देने, निंदा करने या निंदा करने का अधिकार रखता है। हालांकि, इसके द्वारा जारी की गई सलाह के रूप में अनुपालन को लागू करने की शक्ति नहीं है।
खबरों के अनुसार, मीडिया सेक्टर के लिए बन रहे कानून में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को कवर किया जाएगा। कहा जा रहा है कि प्रस्तावित कानून, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डिजिटल मीडिया, सिनेमा और नेटफ्लिक्स और हॉटस्टार जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भी लागू किया जाएगा।