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MP: सिंधिया को लेकर दिग्विजय ने कमलनाथ को क्यों घेरा; क्या हैं पुरानी बातें, जिन्हें न उखाड़ने की दी गई सलाह?

न्यूज डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Tue, 26 Aug 2025 07:26 AM IST
सार
2020 में मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जैसे ही कांग्रेस में बगावत का बिगुल फूंका, कांग्रेस की सरकार महज एक साल से कुछ ज्यादा समय बिताकर सत्ता से फारिग हो गई। अब उस वाकये को लेकर कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेता- दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने टिप्पणियां की हैं, जो चर्चा में हैं।
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Madhya Pradesh Politics Congress Digvijaya Singh Kamalnath Jyotiraditya Scindia issue MP Election 2018 BJP new
ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर दिग्विजय सिंह और कमलनाथ आमने-सामने। - फोटो : Amar Ujala

विस्तार
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मध्य प्रदेश में बीते 22 साल में अगर 15 महीनों को निकाल दिया जाए तो राज्य में भाजपा का वर्चस्व कभी कम होता नहीं दिखा। आलम यह रहा कि 2018 में जब कांग्रेस ने लंबे समय बाद मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी की तो उसके और भाजपा के बीच सीटों का अंतर सिर्फ इतना ही था कि किसी एक बड़े नेता का पार्टी से अलग होना पूरी सरकार के गिरने का कारण बन जाता। हुआ भी कुछ ऐसा ही और 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जैसे ही कांग्रेस में बगावत का बिगुल फूंका, कांग्रेस की सरकार महज एक साल से कुछ ज्यादा समय बिताकर सत्ता से फारिग हो गई। 


मजेदार बात यह है कि इस घटना को अब लगभग पांच साल हो चुके हैं। लेकिन कांग्रेस के अंदरखानों में तब की सरकार जाने का दर्द अब भी बाकी है।

हाल ही में यह दर्द उभरकर तब सार्वजनिक तौर पर बाहर आ गया, जब एक न्यूज पोर्टल को दिए इंटरव्यू में कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने कह दिया कि सिंधिया कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में इसलिए शामिल हो गए, क्योंकि मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उनकी दी हुई 'विशलिस्ट' पर काम नहीं किया। इससे पहले कि कांग्रेस इन खुलासों को लेकर कुछ कह पाती, कमलनाथ ने कहा कि पुरानी बातें उखाड़ने का कोई फायदा नहीं है। हालांकि, उन्होंने अपनी इस टिप्पणी में एक तंज भी कस दिया। 

पहले जानें- दिग्विजय सिंह ने इंटरव्यू में क्या कहा?
दिग्विजय सिंह ने इंटरव्यू के दौरान कहा कि 2020 की शुरुआत में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच कुछ मतभेद पैदा हो गए थे। यह मतभेद विचारधारा के स्तर पर नहीं, बल्कि व्यक्तिगत थे। ऐसे में उन्होंने इसे सुलझाने के लिए एक प्रमुख उद्योगपति के घर पर बैठक तय की, ताकि कांग्रेस सरकार पर खतरा पैदा न हो। दिग्विजय ने दावा किया कि उन्होंने और सिंधिया ने बैठक में कमलनाथ को एक साझा विशलिस्ट दी थी, जिसमें ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के कुछ अटके हुए कामों का जिक्र था और इस पर जल्द सरकार की तरफ से काम होने की उम्मीद थी। 

दिग्विजय ने आरोप लगाने के अंदाज में कहा कि इस लिस्ट पर उन्होंने दस्तखत भी किए थे। इसके बावजूद विश लिस्ट में दिए गए मुद्दों को नहीं सुलझाया गया। उन्होंने कहा कि अगर ग्वालियर-चंबल से जुड़ी मांगें मानी जातीं तो शायद सरकार गिरने की नौबत नहीं आती। दिग्विजय सिंह ने कहा कि प्रचारित किया गया कि उनकी और सिंधिया की लड़ाई से सरकार गिरी, जबकि हकीकत यह नहीं है। उन्होंने पहले ही चेतावनी दी थी कि स्थिति गंभीर हो सकती है। उन्होंने कहा कि यह मेरा दुर्भाग्य है कि मुझ पर हमेशा वही आरोप लगाए जाते हैं, जिनका मैं दोषी नहीं होता हूं। 

दिग्विजय सिंह ने कहा कि ऐसा नहीं है कि मैंने यह कहा था कि इससे कोई खतरा नहीं होगा। मैंने चेतावनी दी थी कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार गिर सकती है। उन्होंने कहा कि अगर सिंधिया के मुद्दों को सुलझा लिया जाता तो शाद सरकार न गिरती। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि सिंधिया कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में चले जाएंगे। 

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने यह भी बताया कि 2018 में कांग्रेस की छोटे अंतर से जीत के बाद तब पार्टी के अधिकतर विधायक (230 सदस्यों वाली विधानसभा में से 114) ने मुख्यमंत्री पद के लिए कमलनाथ का समर्थन किया था। लेकिन सिंधिया की अपने करीबियों के लिए कुछ अहम मंत्री पदों की मांग को कांग्रेस नेताओं ने स्वीकार कर लिया, ताकि कमलनाथ सरकार पहले साल बेहतर ढंग से काम कर सके। 

कमलनाथ ने कैसे दिया जवाब?
इस पूरे वाकये पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने एक्स पर पोस्ट में कहा, "मध्य प्रदेश में 2020 में मेरे नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिरने को लेकर हाल ही में कुछ बयानबाजी की गई है। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि पुरानी बातें उखाड़ने से कोई फायदा नहीं। लेकिन यह सच है कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया को यह लगता था कि सरकार दिग्विजय सिंह चला रहे हैं। इसी नाराजगी में उन्होंने कांग्रेस के विधायकों को तोड़ा और हमारी सरकार गिराई।" 

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सिंधिया ने इस मामले पर क्या कहा?
केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से मध्य प्रदेश के गुना में जब जब इस विवाद को लेकर पत्रकारों ने सवाल किया तो उन्होंने इसे पुराना मुद्दा बताते हुए कहा, "मैं पुरानी चीजों पर बयानबाजी नहीं करुंगा।"

कांग्रेस ने दिग्विजय vs कमलनाथ पर क्या कहा?
अपने दो कद्दावर नेताओं के विवाद को कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी ने तवज्जो नहीं दी। उन्होंने कहा कि दोनों ही नेताओं के बीच एक-दूसरे के प्रति एक प्रेम की भावना है और उनकी अपनी केमिस्ट्री है। वे जानते हैं कि लोगों को कैसे चर्चा के लिए मुद्दे दिए जाएं।

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भाजपा कांग्रेस में अंतर्कलह पर कैसे निशाना साधा?
भाजपा नेताओं ने कांग्रेस की अंदरूनी बयानबाजी पर जमकर तंज कसा है। प्रदेश सरकार के मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि गुट और गिरोह में बंटी कांग्रेस की स्थिति दिन-प्रतिदिन ‘‘बद से बदतर’ होती जा रही है। मंत्री सारंग ने पूर्व सीएम कमलनाथ की सोशल मीडिया पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कांग्रेस में गुटबाजी और अविश्वास चरम पर है। उन्होंने कहा कि कमलनाथ सरकार के समय ही यह सवाल उठता था कि वास्तव में सरकार कौन चला रहा है। आज खुद कमलनाथ के बयान से यह बात साफ हो रही है।

भाजपा नेता और पूर्व प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने कहा, “कमलनाथ और दिग्विजय सिंह कल भी लड़ रहे थे और आज भी लड़ रहे हैं। अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।” उन्होंने कहा कि तत्कालीन मंत्री उमंग सिंघार भी कह चुके थे कि सरकार दिग्विजय सिंह चला रहे थे और उद्योगपति कांग्रेस की कलह सुलझाते थे। जनता से वादे निभाने में नाकाम कांग्रेस के रवैए से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को विरोध करना पड़ा और अंततः उन्होंने भाजपा का दामन थामा।

भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने सोशल मीडिया पर लिखा कि कमलनाथ का यह स्वीकारोक्ति बयान साबित करता है कि कांग्रेस की सरकार वास्तव में ‘मिस्टर बंटाधार’ चला रहे थे। उन्होंने कहा कि उस दौर में माफिया और भ्रष्टाचार का शिकंजा था, अव्यवस्था का बोलबाला था। यही वजह रही कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जनता के हित में भाजपा के साथ मिलकर स्थिर और विकासोन्मुख सरकार बनाई। अग्रवाल ने आगे कहा कि आज कांग्रेस के भीतर गुटबाजी और कलह चरम पर है और इसका सबसे बड़ा कारण फिर वही चेहरा है- दिग्विजय सिंह। उन्होंने कांग्रेस पर तंज कसते हुए लिखा कि “सत्ता में हो तो भी नकारा, विपक्ष में हो तो भी नकारा। जनता का विश्वास केवल भाजपा की सेवा, सुशासन और विकास की नीति पर है।”


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2020 में कैसे गिर गई थी कांग्रेस की सरकार?
गौरतलब है कि 2020 में कुछ मुद्दों पर कमलनाथ और सिंधिया के बीच तनाव की स्थिति थी। हालांकि, सरकार गिरने से जुड़ा पूरा खेल होली के पास शुरू हुआ था।

इस तरह मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में 230 में से 114 सीट पाने वाली कांग्रेस 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद 92 सीटों पर सिमट गई। चूंकि विधायकों के इस्तीफे के बाद विधानसभा में सदस्यों की संख्या 208 थी, इसलिए बहुमत का आंकड़ा 105 पर आ गया था। इस लिहाज से 107 सीट वाली भाजपा सदन की सबसे बड़ी पार्टी बनने के साथ बहुमत में भी आ गई। इस तरह कांग्रेस से सिंधिया की बगावत की बदौलत महज 15 महीने बाद भाजपा की सत्ता में वापसी हो गई। 

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