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Rahul Gandhi: बिना CJI के मुख्य चुनाव आयुक्त को क्यों चुनना चाहते हैं PM? चुनाव सुधार पर राहुल ने उठाए ये सवाल
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Tue, 09 Dec 2025 04:20 PM IST
सार
लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने केंद्र सरकार से कई सवाल किए। उन्होंने पूछा कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति समिति से सीजेआई को क्यों हटाया गया, चुनाव आयुक्तों को कार्रवाई से सुरक्षा देने वाला कानून क्यों बनाया गया? साथ ही ये आरोप भी लगाया कि सरकार चुनाव आयोग को नियंत्रित करना चाहती है।
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राहुल गांधी, कांग्रेस नेता
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक
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विस्तार
लोकसभा में आज चुनाव सुधार को लेकर बहस हो रही है। इसमें राहुल गांधी ने भी हिस्सा लिया। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत में खादी के कपड़े को लेकर की। इसके बाद उन्होंने आरएसएस पर हमला बोलना शुरू कर दिया। इसके बाद संसद में सत्ता पक्ष के लोगों ने हंगामा शुरु कर दिया। फिर स्पीकर ओम बिड़ला ने राहुल को बीच में रोकते हुए कहा कि आप विषय पर बोलें। इस पर राहुल ने कहा कि मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा। हालांकि इसके बाद चुनाव सुधार पर बोलते हुए उन्होंने सरकार पर जमकर निशाना साधा। इसी दौरान उन्होंने सरकार से तीन सवाल भी दागे।
चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि आयोग पर एक विशेष संगठन का प्रभाव बढ़ गया है और इसी प्रभाव का इस्तेमाल भाजपा लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए कर रही है। उन्होंने कहा कि सीईसी की नियुक्ति प्रक्रिया से सीजेआई को हटाया जाना इसी दिशा में एक गंभीर कदम था।
सीजेआई को हटाने पर उठाया सवाल
राहुल गांधी ने सदन में कहा कि वह विपक्ष के नेता होने के नाते नियुक्ति पैनल में शामिल हैं, लेकिन उनका कोई प्रभाव नहीं रह गया है, क्योंकि पैनल में प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का पक्ष भारी रहता है। उन्होंने कहा कि सीजेआई को हटाना यह दर्शाता है कि सरकार चुनाव प्रक्रिया को अपनी सुविधा के मुताबिक चलाना चाहती है। उन्होंने पूछा क्या हम सीजेआई पर भरोसा नहीं करते। उन्हें हटाने की क्या मजबूरी थी।
2023 के कानून का हवाला
राहुल गांधी ने 2023 में बनाए गए उस कानून का जिक्र किया, जिसके तहत तीन सदस्यीय चयन समिति में सीजेआई की जगह एक केंद्रीय मंत्री को शामिल किया गया। समिति में अब प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री होते हैं। राहुल ने कहा कि इस बदलाव से निष्पक्षता खत्म होती दिखती है और सरकार को मनचाहे चुनाव आयुक्त चुनने का रास्ता मिलता है। उन्होंने कहा कि यह सीधे-सीधे संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने जैसा है।
ये भी पढ़ें- 'कुछ लोगों को लगता है बंगाल चुनाव के चलते वंदे मातरम पर हो रही चर्चा', अमित शाह ने क्यों कही ये बात
चुनाव आयुक्तों को ‘सुरक्षा’ देने वाला कानून
राहुल गांधी ने दूसरा बड़ा सवाल उठाया कि 2023 में ही सरकार ने ऐसा कानून क्यों पास किया, जिसमें चुनाव आयोग के प्रमुख और चुनाव आयुक्तों को उनके आधिकारिक फैसलों पर किसी भी तरह की कार्रवाई से सुरक्षा दे दी गई। उन्होंने कहा कि यह सुरक्षा प्रावधान सत्ता के दुरुपयोग को बढ़ावा देता है और चुनाव आयोग की जवाबदेही पर सवाल खड़ा करता है। उनके मुताबिक, यह बदलाव चुनाव प्रक्रिया पर सरकार के नियंत्रण को और मजबूत करता है।
चुनाव तारीखों पर सरकार के प्रभाव का आरोप
राहुल गांधी ने तीसरा सवाल यह उठाया कि चुनाव आयोग पर नियंत्रण का सीधा असर चुनाव तारीखों पर पड़ रहा है। उन्होंने दावा किया कि चुनाव कार्यक्रम प्रधानमंत्री की सुविधा के हिसाब से तय किए जाते हैं। राहुल ने कहा कि यह चुनावी निष्पक्षता को नुकसान पहुंचाता है और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधी चोट करता है। उन्होंने इसे “चुनाव की सच्चाई बदलने की कोशिश” बताया।
आवाज दबाने की कोशिश का आरोप
राहुल गांधी ने सदन में कहा कि चयन समिति में शामिल होने के बावजूद उनकी आवाज दबा दी जाती है, क्योंकि दो सदस्यों प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री का फैसला अंतिम माना जाता है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति बताती है कि सरकार चुनाव आयोग को स्वतंत्र नहीं रहने देना चाहती। राहुल ने चेतावनी दी कि यदि चुनाव आयोग पर यह नियंत्रण जारी रहा, तो लोकतांत्रिक संस्थाएं सिर्फ नाम की रह जाएंगी। उन्होंने सरकार से जवाब मांगा कि क्या यह सुधार लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए किए गए हैं या कमजोर करने के लिए।
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सीजेआई को हटाने पर उठाया सवाल
राहुल गांधी ने सदन में कहा कि वह विपक्ष के नेता होने के नाते नियुक्ति पैनल में शामिल हैं, लेकिन उनका कोई प्रभाव नहीं रह गया है, क्योंकि पैनल में प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का पक्ष भारी रहता है। उन्होंने कहा कि सीजेआई को हटाना यह दर्शाता है कि सरकार चुनाव प्रक्रिया को अपनी सुविधा के मुताबिक चलाना चाहती है। उन्होंने पूछा क्या हम सीजेआई पर भरोसा नहीं करते। उन्हें हटाने की क्या मजबूरी थी।
2023 के कानून का हवाला
राहुल गांधी ने 2023 में बनाए गए उस कानून का जिक्र किया, जिसके तहत तीन सदस्यीय चयन समिति में सीजेआई की जगह एक केंद्रीय मंत्री को शामिल किया गया। समिति में अब प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री होते हैं। राहुल ने कहा कि इस बदलाव से निष्पक्षता खत्म होती दिखती है और सरकार को मनचाहे चुनाव आयुक्त चुनने का रास्ता मिलता है। उन्होंने कहा कि यह सीधे-सीधे संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने जैसा है।
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चुनाव आयुक्तों को ‘सुरक्षा’ देने वाला कानून
राहुल गांधी ने दूसरा बड़ा सवाल उठाया कि 2023 में ही सरकार ने ऐसा कानून क्यों पास किया, जिसमें चुनाव आयोग के प्रमुख और चुनाव आयुक्तों को उनके आधिकारिक फैसलों पर किसी भी तरह की कार्रवाई से सुरक्षा दे दी गई। उन्होंने कहा कि यह सुरक्षा प्रावधान सत्ता के दुरुपयोग को बढ़ावा देता है और चुनाव आयोग की जवाबदेही पर सवाल खड़ा करता है। उनके मुताबिक, यह बदलाव चुनाव प्रक्रिया पर सरकार के नियंत्रण को और मजबूत करता है।
चुनाव तारीखों पर सरकार के प्रभाव का आरोप
राहुल गांधी ने तीसरा सवाल यह उठाया कि चुनाव आयोग पर नियंत्रण का सीधा असर चुनाव तारीखों पर पड़ रहा है। उन्होंने दावा किया कि चुनाव कार्यक्रम प्रधानमंत्री की सुविधा के हिसाब से तय किए जाते हैं। राहुल ने कहा कि यह चुनावी निष्पक्षता को नुकसान पहुंचाता है और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधी चोट करता है। उन्होंने इसे “चुनाव की सच्चाई बदलने की कोशिश” बताया।
आवाज दबाने की कोशिश का आरोप
राहुल गांधी ने सदन में कहा कि चयन समिति में शामिल होने के बावजूद उनकी आवाज दबा दी जाती है, क्योंकि दो सदस्यों प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री का फैसला अंतिम माना जाता है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति बताती है कि सरकार चुनाव आयोग को स्वतंत्र नहीं रहने देना चाहती। राहुल ने चेतावनी दी कि यदि चुनाव आयोग पर यह नियंत्रण जारी रहा, तो लोकतांत्रिक संस्थाएं सिर्फ नाम की रह जाएंगी। उन्होंने सरकार से जवाब मांगा कि क्या यह सुधार लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए किए गए हैं या कमजोर करने के लिए।
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