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Rajya Sabha: 'वंदे मातरम 100 साल का हुआ तो पूरे देश को बंदी बनाकर रखा गया', राज्यसभा में कांग्रेस पर बरसे शाह

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: नितिन गौतम Updated Tue, 09 Dec 2025 01:56 PM IST
सार

राज्यसभा में वंदे मातरम पर चर्चा की शुरुआत गृह मंत्री अमित शाह ने की। अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा, 'वंदे मातरम की दोनों सदनों में चर्चा से, इसके गौरव गान से हमारे बच्चे, किशोर, युवाओं को वंदे मातरम के महत्व को समझाएंगी और उसे राष्ट्र के पुनर्निर्माण का आधार भी बनाएगी।' 

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राज्यसभा में बोलते अमित शाह - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर मंगलवार को राज्यसभा में चर्चा हो रही है। चर्चा की शुरुआत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने की। अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा, 'ये महान सदन वंदे मातरम के भाव के लिए, यशोगान के लिए और वंदे मातरम को चिरंजीव बनाने के लिए चर्चा करे और इस चर्चा के माध्यम से हमारे देश के बच्चे, किशोर, युवा आने वाली पीढ़ियों तक वंदे मातरम के आजादी के लिए योगदान को याद करें। वंदे मातरम की रचना में राष्ट्र के प्रति समर्पण का जो भाव है, उसका आने वाले भारत की रचना में योगदान, इन सभी चीजों से हमारी आने वाली पीढ़ियां भी युक्त हों। इसलिए मैं सभी का अभिनंदन करता हूं कि आज यह चर्चा सदन में हो रही है।'
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उन्होंने कहा, 'जब वंदे मातरम की चर्चा हो रही है, कल कुछ सदस्यों ने लोकसभा में प्रश्न उठाया था कि आज वंदे मातरम पर चर्चा की जरूरत क्या है। वंदे मातरम पर चर्चा की जरूरत वंदे मातरम के प्रति समर्पण की जरूरत, जब वंदे मातरम बना था, तब भी थी, आजादी के समय भी थी, आज भी है और 2047 में जब आधुनिक भारत होगा, तब भी रहेगी। क्योंकि वंदे मातरम में कर्तव्य और राष्ट्रभक्ति की भावना है। तो जिन्हें वंदे मातरम पर चर्चा की वजह समझ नहीं आ रहा, उन्हें नए सिरे से सोचने की जरूरत है।'
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वंदे मातरम राष्ट्र के पुनर्निर्माण का आधार बनेगा
शाह ने कहा, 'यह वंदे मातरम का गान, गीत यह भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने का नारा बना था। आजादी के उद्घोष का नारा बन चुका था। आजादी के संग्राम का बहुत बड़ा प्रेरणा स्त्रोत बना था। और शहीदों को सर्वोच्च बलिदान देते वक्त अगले जन्म में भी भारत में ही जन्म लेकर बलिदान की प्रेरणा भी वंदे मातरम से ही मिलती है। वंदे मातरम की दोनों सदनों में चर्चा से, इसके गौरव गान से हमारे बच्चे, किशोर, युवा और आने वाली कई पीढ़ियां वंदे मातरम के महत्व को समझेंगी और उसे राष्ट्र के पुनर्निर्माण का आधार भी बनाएगी।'


 

'वंदे मातरण राष्ट्र चेतना का परिचायक बना'

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अमित शाह - फोटो : अमर उजाला
शाह ने कहा, 'बंकिम चंद्र चटर्जी की 7 नवंबर 1875 को वंदे मातरम की उनकी रचना सामने आई थी। जब रचना हुई तब कुछ लोगों को लगा कि यह उत्कृष्ट साहित्य है। लेकिन देखते ही देखते यह गीत देशभक्ति और राष्ट्रचेतना का परिचायक बन गया। कब वंदे मातरम की रचना हुई, इसकी पृष्ठभूमि सभी को याद करनी चाहिए। सदियों तक इस्लामी आक्रमण को झेलकर, अंग्रेजों की गुलामी झेलने वाले देश के लिए इस गीत की रचना बंकिम बाबू ने की थी। इसलिए वंदे मातरम का प्रचार अपने आप ही होता चला गया। तब न सोशल मीडिया था, न प्रसार के कोई और तरीका। अंग्रेजों ने तो इसके प्रसार को रोकने की कोशिश की। इसे गाने वालों पर कोड़े बरसाए, लेकिन यह गान कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैल गया।'

'वंदे मातरम को न अंग्रेज रोक सके, न उनकी सभ्यता स्वीकारने वाले लोग रोक सके। इस गान ने राष्ट्र की आत्मा को जागृत करने का काम किया। हमारे देश को जो लोग समझते हैं, वो सभी लोगों को मालूम है कि हमारा देश पूरी दुनिया में एक प्रकार से अनूठा देश है। कई देशों की रचना अधिनियमों से, युद्धों से, युद्ध को कारणों से हुई। भारत एक ऐसा देश है, जिसकी रचना अधिनियम से नहीं हुई है। हम पूरे देश को देखें तो हमारे देश को जोड़ने वाले तंत्र हमारी संस्कृति है। हमारे देश को एक रखने वाला मंत्र हमारी संस्कृति है। इसी कारण वंदे मातरम का जो उद्घोष हुआ, उसने राष्ट्रवाद को स्थापित करने का काम किया। जब अंग्रेजों ने वंदे मातरम पर प्रतिबंध लगाए तब बंकिम बाबू ने कहा था, मुझे कोई आपत्ति नहीं है, मेरी सारी रचनाओं को गंगा में बहा दिया जाए। यह (वंदे मातरम) एक महान गान होगा। बंकिम बाबू के यह कथन सच साबित हुए हैं।'
 

अमित शाह ने कहा, 'भारत माता की जो संतानें हैं, वे मानते हैं कि भारत जमीन का टुकड़ा नहीं है, इसे हम अपनी मां मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं। यह भक्ति गान ही वंदे मातरम है। वंदे मातरम ने हमारे जीवन में भारत माता की कल्पना का जो योगदान है, उसे बहुत अच्छे से भावना के साथ बताया है। लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा का जो स्वरूप है, वह भारत माता है। हमारा ज्ञान, विज्ञान सब भारत माता की ही कृपा है, और भारत माता की प्रार्थना से ही साकार हो सकता है। इसे बार-बार प्रणाम करना चाहिए, मां को प्रणाम करना चाहिए।'

अमित शाह बोले, 'जिसकी उद्घोषणा 150 साल पहले बंकिम बाबू ने की, उसका भाव सदियों पुराना है। भगवान राम ने कहा था माता और मातृभूमि ईश्वर से भी बड़ी होती है। मातृभूमि का महिमामंडन प्रभु श्रीराम ने किया, शंकराचार्य ने किया और इसका महिमामंडन आचार्य चाणक्य ने भी किया। मातृभूमि से ज्यादा कोई चीज हो नहीं सकती। इसलिए उस काली रात जैसे गुलामी के कालखंड में वंदे मातरम रोशनी की तरह था।'

गृह मंत्री ने कहा, 'कई सारे हमारे स्वतंत्रता सेनानी, जिन्हें अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ाया, उन सबमें जो एक चीज समान नजर आती है, वह यह कि जब भी इन्हें फांसी के फंदे तक पहुंचाया गया तो इन सबने एक ही उद्घोष लगाया- वंदे मातरम। पंजाब के गदर आंदोलन में वंदे मातरम के शीर्षक से कई पर्चे बांटे गए। महाराष्ट्र में गणपति और शिवाजी के उत्सव में कई पर्चे बांटे गए। तमिलनाडु में सुब्रमण्यम भारती ने वंदे मातरम के तमिल अनुवाद से लोगों में जोश भर दिया।'

'हम मुद्दों पर चर्चा से नहीं डरते, संसद चलने दें हर मुद्दे पर चर्चा होगी'
'मैं कल देख रहा था कि कांग्रेस के कई सदस्य आज वंदे मातरम की चर्चा क्यों जरूरी है और इसको एक राजनीतिक हथकंडा बता रही थीं। मुद्दों पर चर्चा करने से कोई नहीं डरता, संसद का बहिष्कार हम नहीं करते। संसद चलने दें तो हर मुद्दे पर चर्चा होगी। हम किसी से नहीं डरते और कुछ नहीं छिपाते। संसद चलने दें तो हर मुद्दे पर चर्चा होगी। लेकिन वंदे मातरम पर चर्चा टालने की यह कोशिश ठीक नहीं। वंदे मातरम के 150 साल पूरे हुए हैं। जब वंदे मातरम के 50 साल हुए, देश आजाद नहीं हुआ था। 1937 में जब स्वर्ण जयंती हुए तो नेहरू जी ने वंदे मातरम के टुकड़े कर दिए। 50वें पड़ाव में वंदे मातरम को तोड़ा गया। यहीं से तुष्टिकरण की शुरुआत हुई और इसी ने विभाजन के बीज बोए। कांग्रेस को पसंद आए न आए, लेकिन अगर वंदे मातरम के नाम पर तुष्टिकरण न होता तो देश एक होता।'

अगर वंदे मातरम के नाम पर तुष्टिकरण न होता तो देश एक होता

'मैं कल देख रहा था कि कांग्रेस के कई सदस्य आज वंदे मातरम की चर्चा क्यों जरूरी है और इसको एक राजनीतिक हथकंडा बता रही थीं। मुद्दों पर चर्चा करने से कोई नहीं डरता, संसद का बहिष्कार हम नहीं करते। संसद चलने दें तो हर मुद्दे पर चर्चा होगी। हम किसी से नहीं डरते और कुछ नहीं छिपाते। संसद चलने दें तो हर मुद्दे पर चर्चा होगी। लेकिन वंदे मातरम पर चर्चा टालने की यह कोशिश ठीक नहीं। वंदे मातरम के 150 साल पूरे हुए हैं। जब वंदे मातरम के 50 साल हुए, देश आजाद नहीं हुआ था। 1937 में जब स्वर्ण जयंती हुए तो नेहरू जी ने वंदे मातरम के टुकड़े कर दिए। 50वें पड़ाव में वंदे मातरम को तोड़ा गया। यहीं से तुष्टिकरण की शुरुआत हुई और इसी ने विभाजन के बीज बोए। कांग्रेस को पसंद आए न आए, लेकिन अगर वंदे मातरम के नाम पर तुष्टिकरण न होता तो देश एक होता।'

'वंदे मातरम 100 साल का हुआ। सबको हुआ कि 100 साल मनाए जाएंगे। पर इसके महिमामंडन का सवाल ही नहीं था। क्योंकि जो वंदे मातरम बोलने वाले थे, उन्हें इंदिरा जी ने बंद कर दिया। विपक्ष के लोगों को, स्वयंसेवी संगठन के लोगों को जेल में भर दिया गया। अखबारों में ताले लगा दिए गए। आकाशवाणी में किशोर कुमार की आवाज ही नहीं थे। ड्यूएट गाने भी लता जी की आवाज में आते थे। वंदे मातरम 100 साल का हुआ तो पूरे देश को बंदी बनाकर रख दिया गया।'

'150वें साल में लोकसभा में चर्चा हुई। जिस पार्टी के अधिवेशन की शुरुआत गुरुवर टैगोर वंदे मातरम गाकर कराते थे। उस पर जब लोकसभा में चर्चा हुई तो गांधी परिवार के दोनों सदस्य सदन से गायब थे। जवाहरलाल नेहरू से लेकर आज तक कांग्रेस के नेतृत्व ने वंदे मातरम का विरोध किया है। कांग्रेस पार्टी की एक नेता ने कहा है कि वंदे मातरम की आज चर्चा की कोई जरूरत नहीं है। मुझे मालूम नहीं पड़ता कि वंदे मातरम से इन्हें क्या समस्या है। जिस गान को महात्मा गांधी ने राष्ट्र की सुप्रतिम आत्मा से जोड़ा कहा। बिपिन चंद्र पाल ने राष्ट्रधर्म की अभिव्यक्ति बताया, उस वंदे मातरम के टुकड़े करने का काम कांग्रेस ने किया था।'

'वंदे मातरम गान पर कांग्रेस सांसद संसद से बाहर चले जाते हैं'

अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा, 'इस सदन में वंदे मातरम के गान को ही बंद करा दिया गया। 1992 में भाजपा सांसद राम नाईक ने वंदे मातरम को संसद में फिर से गाने का मुद्दा उठाया। तब प्रतिपक्ष के नेता आडवाणी जी ने लोकसभा के स्पीकर से कहा था कि महान सदन के अंदर वंदे मातरम का गान होना चाहिए। 1992 में लोकसभा में राष्ट्रगीत के गान की शुरुआत हुई। जब हमने यह शुरुआत की तब भी इंडिया गठबंधन के ढेरों लोगों ने कहा था कि हम वंदे मातरम नहीं गाएंगे। न बोल दिया। मैंने अपनी आंख से देखा है कि कई सारे सदस्य वंदे मातरम जब होता है तो वे संसद में बैठे होते हैं तो भी संसद से बाहर चले जाते हैं। मैं विश्वास से कह सकता हूं। यह कह रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी पर झूठे आरोप लगाते हैं, लेकिन भाजपा का कोई भी सदस्य वंदे मातरम के गान के समय खड़ा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता।'

'इंडिया के कौन-कौन से सदस्य वंदे मातरम के गान में सदन से उठकर चले गए हैं, उनकी सूची में शाम तक पटल पर रखूंगा। मैं चाहूंगा कि उन्हें रिकॉर्ड पर लिया जाए। देश को इनकी सच्चाई पता चलनी चाहिए। बंकिम चंद्र चटर्जी की 130वीं जयंती पर हमारी सरकार ने, डाक विभाग ने एक टिकट जारी किया। हर घर तिरंगा का अभियान भी हमने किया। हमारे प्रधानमंत्री ने जनता से आह्वान किया था कि तिरंगा फहराते वक्त वंदे मातरम बोलना भूलना नहीं चाहिए। 150वीं वर्षगांठ को भी भारत सरकार बहुत अच्छे तरीके से मनाने का लक्ष्य रखा है।'

उस जमाने में वंदे मातरम देश को आजाद बनाने का कारण बना और अमृतकाल में देश को विकसित और महान बनाने का नारा बनेगा, इसका मुझे विश्वास है। सदन में बैठे सदस्यों की साझा जिम्मेदारी है कि हम हर युवा के मन में वंदे मातरम के नारे को प्रतिस्थापित करें।
 
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