राहुल गांधी अब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्षों में शुमार हो गए हैं। अपने चार पेज के इस्तीफे में पद छोड़ने का एलान कर उन्होंने कांग्रेस नेताओं को सन्न कर दिया है। लेकिन राहुल के इस्तीफे से भाजपा का एक चेहरा बहुत खुश है जो संभवतः उनके इस्तीफे का सबसे बड़ा कारण बना। वह नाम है स्मृति इरानी का जिन्होंने अमेठी में राहुल गांधी की परंपरागत सीट पर हराकर उन्हें बुरी तरह हिला दिया।
राहुल गांधी के इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने केवल 'जय श्री राम' कहा। लेकिन यह कहकर भी उन्होंने यह बता दिया कि यह उनके लिए बहुत बड़ी जीत है। कांग्रेस के सबसे मजबूत स्तंभ को आखिरकार उन्होंने अपने पुरुषार्थ से हिलाकर रख दिया और जो काम भाजपा के दिग्गज नेता नहीं कर पाए थे, उन्होंने करके दिखा दिया।
क्यों अहम है अमेठी की जीत
देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी पार्टी रही कांग्रेस इस बार केवल 52 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। उसके तमाम दिग्गज नेता चुनाव हार गए। लेकिन अमेठी लोकसभा क्षेत्र की हार किसी भी अन्य सीटों की हार से बड़ी है। यह किसी एक सीट की हार भर नहीं थी, बल्कि यह कांग्रेस के पूरे रणनीतिक चुनावी कौशल की हार थी।
कांग्रेस को अच्छी तरह पता था कि भाजपा इस सीट को किसी भी कीमत पर जीतना चाहती है, इसलिए पार्टी ने इस सीट को बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। इसके बावजूद अगर वह अपनी सीट नहीं बचा पाई। यही कारण है कि राहुल गांधी अपनी यह हार पचा नहीं पाए और उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
दरअसल, अमेठी की सीट गांधी परिवार के लिए घर की सीट थी। यहां की जमीन में राजीव गांधी की खुशबू बसी हुई थी। वे यहां से चार बार सांसद चुने गए थे। 1967 से यह सीट कमोबेस कांग्रेस के ही पास रही थी। सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी इस सीट से तीन बार सांसद चुने जा चुके थे। ऐसे में यह सीट गांधी परिवार की 'थाती' बन गय़ी थी।
यहां से गांधी परिवार का कोई व्यक्ति हार भी सकता है, यह बात सोचने की भी हिम्मत राजनीतिक पंडितों को नहीं पड़ती थी। इसीलिए अमेठी सीट से राहुल गांधी की हार केवल एक सीट की हार नहीं थी, बल्कि गांधी परिवार के ऊपर से जनता के उठते भरोसे का प्रतीक बन गई। यही कारण है कि पूर्व में तमाम चुनावी झटकों को झेलकर लगातार आगे बढ़ते रहे राहुल ने अमेठी हारने के बाद धनुष-बाण रख दिया।
स्मृति की जय-जयकार
लेकिन यह सब अचानक नहीं हुआ था। इसके लिए स्मृति इरानी ने लगातार पांच सालों तक क्षेत्र में रहकर मेहनत की थी। एक-एक व्यक्ति को खुद से जोड़ने की लगातार कोशिश की थी। सांसद न रहते हुए भी वहां के लोगों की समस्याओं को सुनना और उसे सुलझाने की कोशिश करना उनकी लगातार प्रक्रिया में शामिल था जो लगातार बना रहा। उनके इसी परिश्रम का फल था कि अंततः भाजपा कांग्रेस का यह अभेद्य दुर्ग भेदने में सफल रही।
पिछली सरकार में मानव संसाधन मंत्रालय जैसे महत्त्वपूर्ण महकमे को संभाल चुकीं स्मृति इरानी का बाद का समय अपेक्षाकृत ज्यादा ठीक नहीं रहा था। रोहित वेमुला कांड के बाद उनसे मानव संसाधन मंत्रालय छीनकर अपेक्षाकृत बेहद कम महत्त्वपूर्ण कपड़ा मंत्रालय दे दिया गया था। लेकिन राहुल गांधी को उनके घर में ही हराने का पार्टी ने उन्हें ईनाम दिया और इस बार वे नरेंद्र मोदी सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री का महत्त्वपूर्ण ओहदा संभाल रही हैं।
राहुल गांधी अब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्षों में शुमार हो गए हैं। अपने चार पेज के इस्तीफे में पद छोड़ने का एलान कर उन्होंने कांग्रेस नेताओं को सन्न कर दिया है। लेकिन राहुल के इस्तीफे से भाजपा का एक चेहरा बहुत खुश है जो संभवतः उनके इस्तीफे का सबसे बड़ा कारण बना। वह नाम है स्मृति इरानी का जिन्होंने अमेठी में राहुल गांधी की परंपरागत सीट पर हराकर उन्हें बुरी तरह हिला दिया।
राहुल गांधी के इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने केवल 'जय श्री राम' कहा। लेकिन यह कहकर भी उन्होंने यह बता दिया कि यह उनके लिए बहुत बड़ी जीत है। कांग्रेस के सबसे मजबूत स्तंभ को आखिरकार उन्होंने अपने पुरुषार्थ से हिलाकर रख दिया और जो काम भाजपा के दिग्गज नेता नहीं कर पाए थे, उन्होंने करके दिखा दिया।
क्यों अहम है अमेठी की जीत
देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी पार्टी रही कांग्रेस इस बार केवल 52 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। उसके तमाम दिग्गज नेता चुनाव हार गए। लेकिन अमेठी लोकसभा क्षेत्र की हार किसी भी अन्य सीटों की हार से बड़ी है। यह किसी एक सीट की हार भर नहीं थी, बल्कि यह कांग्रेस के पूरे रणनीतिक चुनावी कौशल की हार थी।
कांग्रेस को अच्छी तरह पता था कि भाजपा इस सीट को किसी भी कीमत पर जीतना चाहती है, इसलिए पार्टी ने इस सीट को बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। इसके बावजूद अगर वह अपनी सीट नहीं बचा पाई। यही कारण है कि राहुल गांधी अपनी यह हार पचा नहीं पाए और उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
दरअसल, अमेठी की सीट गांधी परिवार के लिए घर की सीट थी। यहां की जमीन में राजीव गांधी की खुशबू बसी हुई थी। वे यहां से चार बार सांसद चुने गए थे। 1967 से यह सीट कमोबेस कांग्रेस के ही पास रही थी। सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी इस सीट से तीन बार सांसद चुने जा चुके थे। ऐसे में यह सीट गांधी परिवार की 'थाती' बन गय़ी थी।
यहां से गांधी परिवार का कोई व्यक्ति हार भी सकता है, यह बात सोचने की भी हिम्मत राजनीतिक पंडितों को नहीं पड़ती थी। इसीलिए अमेठी सीट से राहुल गांधी की हार केवल एक सीट की हार नहीं थी, बल्कि गांधी परिवार के ऊपर से जनता के उठते भरोसे का प्रतीक बन गई। यही कारण है कि पूर्व में तमाम चुनावी झटकों को झेलकर लगातार आगे बढ़ते रहे राहुल ने अमेठी हारने के बाद धनुष-बाण रख दिया।
स्मृति की जय-जयकार
लेकिन यह सब अचानक नहीं हुआ था। इसके लिए स्मृति इरानी ने लगातार पांच सालों तक क्षेत्र में रहकर मेहनत की थी। एक-एक व्यक्ति को खुद से जोड़ने की लगातार कोशिश की थी। सांसद न रहते हुए भी वहां के लोगों की समस्याओं को सुनना और उसे सुलझाने की कोशिश करना उनकी लगातार प्रक्रिया में शामिल था जो लगातार बना रहा। उनके इसी परिश्रम का फल था कि अंततः भाजपा कांग्रेस का यह अभेद्य दुर्ग भेदने में सफल रही।
पिछली सरकार में मानव संसाधन मंत्रालय जैसे महत्त्वपूर्ण महकमे को संभाल चुकीं स्मृति इरानी का बाद का समय अपेक्षाकृत ज्यादा ठीक नहीं रहा था। रोहित वेमुला कांड के बाद उनसे मानव संसाधन मंत्रालय छीनकर अपेक्षाकृत बेहद कम महत्त्वपूर्ण कपड़ा मंत्रालय दे दिया गया था। लेकिन राहुल गांधी को उनके घर में ही हराने का पार्टी ने उन्हें ईनाम दिया और इस बार वे नरेंद्र मोदी सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री का महत्त्वपूर्ण ओहदा संभाल रही हैं।