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रूबिया अपहरणकांड: आतंक की उस शाम का साथी आखिर पकड़ा गया, 36 साल बाद यासीन मलिक का करीबी शफात शांगलू गिरफ्तार

अमर उजाला नेटवर्क, श्रीनगर Published by: निकिता गुप्ता Updated Tue, 02 Dec 2025 11:40 AM IST
सार

सीबीआई ने 36 साल पुराने रूबिया सईद अपहरणकांड में जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक के करीबी और साजिश के आरोपी शफात अहमद शांगलू को श्रीनगर से गिरफ्तार किया है। 1989 में हुए इस अपहरण केस में शफात पर आतंकियों की मदद और वित्तीय प्रबंधन से जुड़ी भूमिका निभाने का आरोप है।

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CBI arrests conspiracy accused Shafat Ahmed Shanglu after 36 years
पूर्व गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद और बेटी रूबिया सईद - फोटो : फाइल फोटो
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विस्तार
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जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री व तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद के अपहरण के 36 साल पुराने मामले में सीबीआई ने एक आरोपी शफात अहमद शांगलू को सोमवार को उसके घर से गिरफ्तार किया है। शफात पर अपहरण की साजिश में शामिल होने का आरोप है।

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वह श्रीनगर के इशबर निशात इलाके का रहने वाला है। बताया जा रहा है कि शफात प्रतिबंधित आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख यासीन मलिक का करीबी और भरोसेमंद है। सीबीआई ने जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ मिलकर शफात को गिरफ्तार किया है। अधिकारियों के अनुसार वह जेकेएलएफ का पदाधिकारी था और वित्त प्रबंधन का काम करता था।
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रूबिया का आठ दिसंबर 1989 को जेकेएलएफ के आतंकियों ने अपहरण कर लिया था। रूबिया को आतंकियों के चंगुल से छुड़ाने के एवज में अपहरण के पांच दिन बाद केंद्र की तत्कालीन वीपी सिंह सरकार को पांच आतंकियों को रिहा करना पड़ा था। फिलहाल रूबिया तमिलनाडु में रहती हैं और इस केस में सीबीआई की गवाह भी हैं। मामले को सीबीआई ने 1990 की शुरुआत में अपने हाथ में लिया था। अपहरण का मुख्य आरोपी यासीन फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद है।

आतंकी फंडिंग मामले में एनआईए की विशेष अदालत उसे सजा सुना चुकी है। बता दें कि रूबिया ने अपहरण में शामिल यासीन व चार अन्य आरोपियों की पहचान की थी। विशेष टाडा अदालत पहले ही यासीन और नौ अन्य के खिलाफ आरोप तय कर चुकी है।

सईद के केंद्रीय गृह मंत्री बनने के 5 दिन बाद ही आतंकियों ने कर लिया था रूबिया का अपहरण
आतंकियों ने 1989 में रूबिया सईद का जिस दिन अपहरण किया उससे पांच दिन पहले ही उनके पिता एवं पीडीपी के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद केंद्रीय गृह मंत्री बने थे। उस समय रूबिया ललदेद अस्पताल में एक मेडिकल इंटर्न के तौर पर काम करती थीं और 23 वर्ष की थीं।

आठ दिसंबर 1989 को शाम करीब पौने चार बजे रूबिया अस्पताल से मिनी बस से घर लौट रही थीं। वह नौगाम स्थित उनके घर से महज आधा किलोमीटर दूर रहीं होगी कि तभी चार आतंकवादियों ने बंदूक के जोर पर उन्हें जबरन बस से उतार लिया। इसके बाद मारुति कार में बैठाकर फरार हो गए। जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ने इस अपहरण कांड की जिम्मेदारी ली थी।

रूबिया को छोड़ने के बदले तत्कालीन भाजपा समर्थित वीपी सिंह सरकार को पांच आतंकी रिहा करने पड़े थे। उस वक्त जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला इलाज के सिलसिले में लंदन में थे। सूचना मिली तो आनन-फानन में वह दौरा बीच में छोड़कर श्रीनगर लौट आए। रूबिया आतंकवादियों के कब्जे में ही थीं। पांच दिन सरकार और आतंकवादियों के बीच बातचीत के बाद सरकार ने आतंकियों के रिहा किया गया था। आतंकियों को छोड़े जाने के तीन घंटे बाद रूबिया को छोड़ा गया।

इस अपहरण में जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक को मुख्य आरोपी है। अपहरण का यह मामला सदर पुलिस स्टेशन श्रीनगर में दर्ज हुआ था। तत्कालीन राज्य सरकार की सिफारिश पर 22 फरवरी 1990 को सीबीआई ने केस अपने हाथ में लिया। 18 सितंबर, 1990 को सीबीआई ने चार्जशीट दायर की थी। 

जेकेएलएफ ने पांच आतंकी छोड़ने की रखी थी शर्त
जेकेएलएफ ने रूबिया को छोड़ने के बदले पांच खूंखार आतंकियों को रिहा करने की शर्त रखी थी। तब केंद्र सरकार ने आतंकवादियों के साथ बातचीत और सौदेबाजी का रास्ता चुना। जेकेएलएफ ने आतंकी अब्दुल हमीद शेख, गुलाम नबी भट, नूर मोहम्मद कलवाल, मोहम्मद अल्ताफ और जावेद अहमद जरगर को छोड़ने की शर्त रखी। बाद में उसने जरगर के बजाय अब्दुल अहद वाजा को छोड़ने की मांग की। उस समय हमीद शेख का श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर अस्पताल में इलाज चल रहा था क्योंकि वह घायल था।

अपहरण के बाद घाटी में बेकाबू होने लगा था आतंकवाद
रूबिया अपहरण कांड के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद ने इतना गंभीर रूप ले लिया कि महज एक साल के भीतर हालात बेकाबू हो गए। घाटी में कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर नरसंहार होने लगा। खुलेआम उन्हें धर्म परिवर्तन करने, भागने या फिर मरने के लिए तैयार रहने की धमकी दी जाने लगी। आखिरकार कश्मीरी पंडितों को अपनी जान बचाने के लिए घर-दुकान, खेत-खलिहान, अचल संपत्तियों को छोड़कर भागना पड़ा।

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