आईएसआई और जमात का नया षड्यंत्र: एजेंसियों की नजर से बचकर आतंक की नई पीढ़ी तैयार, नए आतंकियों की ट्रेनिंग जारी
पाकिस्तान की आईएसआई और बांग्लादेश की जमात-ए-इस्लामी ने कश्मीर में नए आतंकियों के लिए डॉक्टर मॉड्यूल तैयार किया है, जिससे स्थानीय युवाओं को जिहाद के नाम पर आतंक में शामिल किया जा रहा है। पिछले वर्षों में रोहिंग्या और बांग्लादेशी युवाओं की संख्या बढ़ी है, जिनका आतंकवाद नेटवर्क में उपयोग किया जा रहा है।
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स्थानीय युवाओं को बरगलाकर कश्मीर में आतंक को फिर से खड़ा करने के लिए पाकिस्तान की आईएसआई और बांग्लादेश की जमात-ए-इस्लामी ने मिलकर नया षड्यंत्र रचा है। इन्होंने इंजीनियर-एमबीए किए युवाओं की जगह आतंक का डाॅक्टर माॅड्यूल खड़ा किया है। ये कश्मीर के युवाओं को जिहाद के नाम पर आतंक में धकेल रहे हैं।
हैरत की बात है कि बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनने के बाद कश्मीर में भारत विरोधी गतिविधियां तेज हुई हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद सफेदपोश आतंकवाद में डाॅक्टरों का मिलना इस गठजोड़ के खतरनाक मंसूबे को उजागर करता है।
रक्षा विशेषज्ञ एवं सेवानिवृत्त बिग्रेडियर विजय सागर धीमान बताते हैं कि बांग्लादेश में शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहने के दौरान जमात-ए-इस्लामी प्रतिबंधित था। मौजूदा अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के सत्ता में आने के बाद यह संगठन फिर सक्रिय हो गया। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर में भी जमात की जिहादी व कट्टरपंथी गतिविधियां तेज हुईं। उन्होंने कहा कि आतंक की नई पाैध को खाद-पानी देने के लिए दक्षिण कश्मीर को चुना गया। यह इलाका जमात का गढ़ रहा है। जम्मू-कश्मीर में बांग्लादेशी व जमात से जुड़े ऐसे लोगों की संख्या 35 से 40 हजार तक हो सकती है।
जम्मू-कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों से जुड़े एक सूत्र ने विजय धीमान की बात को बढ़ाते हुए कहा कि बांग्लादेश के कट्टरपंथियों के निशाने पर कुछ साल पहले तक इंजीनियरिंग व एमबीए की पढ़ाई करने वाले युवा होते थे। अब इन्होंने डाॅक्टरों को निशाने पर लिया है।
डॉक्टर मॉड्यूल इसलिए तैयार किया ताकि किसी को शक न हो। इसकी वजह से एजेंसियों की इन पर पैनी निगाह भी इन पर नहीं रही। पाकिस्तान की आईएसआई, इस्लामिक स्टेट और जमात-ए-इस्लामी के गठजोड़ ने दक्षिण कश्मीर के ऐसे युवाओं को चुना जिनका पहले से कोई आपराधिक रिकॉर्ड न हो।
जम्मू-कश्मीर में लगातार बढ़ रहे रोहिंग्या और बांग्लादेशी
पिछले डेढ़ दशक में जम्मू-कश्मीर में रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों की संख्या लगातार बढ़ी है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ऐसे 13,700 से अधिक विदेशी जम्मू और सांबा जिले में बसे हुए हैं। साल 2008 से 2016 के बीच करीब 6000 रोहिंग्या बढ़ गए हैं।
जानकार बताते हैं कि वर्ष 2009 में रोहिंग्याओं का जम्मू में आना शुरू हुआ। 2012 में इन्हें बठिंडी में रहने की जगह दी गई जिसके बाद से इनकी संख्या लगातार बढ़ी। सरकार ने इन्हें जम्मू से बाहर निकालने के लिए कई प्रयास किए लेकिन खास सफलता नहीं मिली। जम्मू-कश्मीर में रोहिंग्या लड़कियों की तस्करी के मामले भी सामने आए हैं। कश्मीर में ऐसी कई लड़कियों की शादी कराई गई है। चोरी, नशा तस्करी व देह व्यापार में भी रोहिंग्याओं की संलिप्तता सामने आ चुकी है। इस साल 12 जुलाई को रियासी पुलिस ने कटड़ा से फहीम अहमद नाम का बांग्लादेशी पकड़ा था।
निशाने पर बांग्लादेश में पढ़ाई करने वाले कश्मीरी
सूत्रों ने बताया कि वर्ष 2002 तक पीओके के कई युवा बांग्लादेश स्थित एक ट्रेनिंग कैंप में भर्ती होते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर से हर वर्ष बड़ी संख्या में युवा पढ़ाई करने बांग्लादेश जाते हैं। वर्तमान में करीब पांच हजार युवा बांग्लादेश में एमबीबीएस, इंजीनियरिंग व अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में पढ़ाई कर रहे हैं। पाकिस्तान के आतंकी और बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन ऐसे युवाओं को बरगलाकर आतंक बनाने का प्रयास करते हैं।