युवा प्रतिभाओं को समर्पित मंच 'काव्य कैफ़े' की अगली कड़ी में शानिवार शाम 5 बजे एक और महफिल का आयोजन किया गया। इस कवि सम्मेलन में देश भिन्न-भिन्न कोनों से कवि और शायरों ने हिस्सा लिया और अपनी- अपनी रचनाओं का पाठ किया। शायरों ने अपने अशआर पढ़े।
गाजीपुर, उत्तर प्रदेश से आए दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थी सुनील 'गाजीपुरी ' ने राष्ट्र को समर्पित गीत से काव्य गोष्ठी की शुरुआत की। उन्होंने अपनी रचना का तरन्नुम में भी पाठ किया-
भिन्नता-विभिन्नता में एकता का नारा है
नींदों का ख्वाब हमारा देश नयन का तारा है
लोहा लेकर खूब लड़ी थी झांसी वाली रानी
हम हिंदुस्तानी...
सुनील के राष्ट्रवादी अह्वान के बाद बलिया, उत्तर प्रदेश से आए आशुतोष विद्यार्थी ने अपने अशआर पढ़े-
ख़ुदकुशी भी न हो जीने का भी रस्ता न बने
कोई हालात का मजबूर मुझ जैसा न बने
कौन सा दिन है तुझे याद किए बिन कट जाए
कौन सी शब है कि मन में तेरा चेहरा न बने
नफ़रतें शहर की रग़ रग़ में घुली जाती हैं
कोई भी शख़्स यहाँ इश्क़ का ज़रिया न बने
देखते रह गए पत्थर हुई आँखों से ज़ुल्म
बन तो सकते थे मगर हम भी मसीहा न बने
अपना जलना भी किसी काम न आया मुर्शिद
ख़ाक में मिल गए अफ़सोस सितारा न बने
अब बारी थी दीपक पाठक की। उत्तर प्रदेश के ज़िले मैनपुरी में छोटे से गॉंव लहरा से ताल्लुक़ रखने वाले दीपक दिल्ली में ही रहते हैं और उर्दू शायरी से उन्हें लगाव है। उन्होंने भी अपने अशआर पढ़े जिस दर्शकों ने खूब तालियां बजाईं। उनके अशआर यूं थे-
तू जब भी सामने मेरे आया पिघल गया
कोई गिला मैं कर नहीं पाया पिघल गया
तुझ से बहुत सी बातें थीं करनी मुझे मगर
तू धूप मैं था मोम का साया पिघल गया
मैं सोच कर ये रूठा मुझे तू मनायेगा
जब अपना हाल तूने सुनाया पिघल गया
ये तय किया था उस से नहीं बात करनी अब
पर फ़ोन उसका जैसे ही आया पिघल गया
अब महफ़िल जम चुकी थी, लोग कविता और शायरी का आनंद ले रहे थे। इस बीच मधुबनी, बिहार के रहने वाले आशुतोष मिश्र 'अजल' ने एक के बाद एक कुल 4 ग़ज़लें पढ़ी और खूब तालियां बटोरी। उनके अशआर इस प्रकार थे-
ये दौलत रुतबा शोहरत और ये ईमान मिट्टी है
लगाया हाथ तब जाना फ़लक बे-जान मिट्टी है
लिखूँ मैं फ़लसफ़े की शाइरी या गीत उल्फ़त के
मैं शाइर हूँ मिरी हर नज़्म का उनवान मिट्टी है
नहीं मालूम हसरत से मैं मिट्टी देखता हूँ क्यों
मुझे शायद ख़बर है कल मेरी पहचान मिट्टी है
दिखाता खेल है सबको ‘अज़ल’ बन कर मदारी और
तमाशा देखता है जो वो हर इंसान मिट्टी है
मंच पर आखिरी कवि के रूप में ग्राम-पिपरसंडी, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश से आए ओज के युवा कवि केशरीनंदन मिश्र उपस्थित हुए और एक से बढ़कर एक कविताएं पढ़ीं। उनकी एक कविता इस प्रकार है-
ऐ सरहद की सुंदरता तू स्वर्ग पुकारी जाती है
इस सरहद पर मौत सभी के हिस्से ना आ पाती है,
आज वो अंतिम बेला है ऐसे कैसे इनकार करूं
आह अपनी रक्त शिराओं से तेरा सोलह सिंगार करूं ।
इन सभी कवियों की कविताएं जल्द ही आपको अमर उजाला काव्य के यू-ट्यूब चैनल और फेसबुक व इंस्टाग्राम पेज पर देखने को मिलेंगी।
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1 month ago
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